मंडी: श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह 22 जनवरी को होने जा रहा है. मगर आज से करीब 33-34 साल पूर्व इसी मंदिर के शिलान्यास समारोह में शामिल कोने के लिए मंडी के हेमंतराज वैद्य अपनी जान हथेली पर रखकर श्रीराम की नगरी अयोध्या पहुंचे थे. यही नहीं शिलान्यास समारोह में अग्रिम पंक्ति में सुरक्षा घेरे के सदस्य बनकर कार्यक्रम पूरा करवाया था. आज हेमंतराज वैद्य उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच गए हैं.जहां स्वास्थ्य भी साथ नहीं देता है. इसके बावजूद उनके मन में उस राम मंदिर के दर्शन करने की लालसा है.जिसका शिलान्यास उन्होंने अपनी आंखों से होते हुए देखा था.
बात वर्ष 1989 की है. जब भगवान श्रीराम के मंदिर के लिए गांव-गांव में शिलाओं का पूजन करवाकर. उन्हें शिलान्यास समारोह में अयोध्या पहुंचाना था. उन दिनों मंडी के एडवोकेट हेमंतराज वैद्य विश्व हिंदू परिषद की शाखा बजरंग दल के क्षेत्रीय संयोजक थे. हेमंतराज वैद्य बताते हैं कि मंडी से बीस लोगों का एक जत्था पुलिस की देखरेख में ट्रक पर रामशिलाओं के साथ अयोध्या के लिए रवाना हुआ. कीरतपुर पहुंचने परे उन्हें पंजाब पुलिस की सुरक्षा मिल गई. यहां से और गाड़ियां भी उनके काफिले में शामिल हो गई. इस तरह कुल 24 गाड़ियां उनके काफिले में शामिल हो गई.
वे बताते हैं उन दिनों देश में एक तरह से राम लहर चल रही थी. उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी उनके काफिले पर फूल बरसाए जा रहे थे और स्वागत किया जा रहा था. शहाजहांपुर और बरेली में रात एक बजे भी लोगों की भीड़ जमा थी और खीर बांटी जा रही थी. अयोध्या पहुंचने पर विश्व हिंदू परिषद की ओर से उनके रहने की व्यवस्था टैंटों में की गई थी और पवित्र सरयू नदी में स्नान करते थे.
हेमंतराज ने बताया कि अयोध्या पहुंचने पर उन्हें बुखार आ गया था. इसलिए सरयू के ठंडे पानी में नहाने से डर लग रहा था. मगर फिर मन में आया मरना तो है ही फिर क्यों न स्नान कर ही लिया जाए. उन्होंने बताया कि सरयू के जल में स्नान करने के बाद उनकी तबीयत एकदम ठीक हो गई.
उन्होंने बताया कि उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे. शिलान्यास को लेकर अनिश्चितता का माहौल था, शिलान्यास होगा भी या नहीं .. विश्व हिंदू परिषद की ओर से निर्देश थे की अपने-अपने टैंटों में ही रहें. मगर हम बाहर निकल कर शिलान्यास स्थल की ओर गए तो हमें वापस लौटा दिया गया. मगर फिर न जाने क्या सोच कर वापस बुलाया और शिलान्यास स्थल की आंतरिक सुरक्षा में हमें भी शामिल कर लिया. हालांकि वहां पर सुरक्षा एजेंसियां तैनात थी. हमें विहिप व अन्य संगठनों के बड़े नेताओं की पहचान के लिए रखा गया था.
बलराज मधोक को भी रोक दिया
हेमंतराज वैद्य ने बताया कि जनसंघ के संस्थापक बलराज मधोक भी शिलान्यास स्थल पर आए तो सुरक्षा एजेंसियों ने उन्हें रोक दिया. वे लोग उन्हें पहचानते नहीं थे कि ये कौन है. जब मैंने उन्हें देखा तो कहा कि ये तो बलराज मधोक हैं. जनसंघ के संस्थापक, तब कहीं उन्हें आने दिया. शिलान्यास से पूर्व बहुत बड़े संत देवराह बाबा ने प्रधानमंत्री राजीव गांधी को फटकार लगाई, इसके बाद राजीव गांधी ने शिलान्यास करने की अनुमति दी. इसके बाद शांतिपूर्वक श्रीराम मंदिर का शिलान्यास हो गया. इसी दौरान उन्हें एक संत निर्माणी बाबा मिले जो अक्सर मंडी के ब्यास नदी के घाट पर आते थे. उन्होंने हेमंतराज और उनके साथी धर्मपाल को पहचान लिया और उन्हें अपने साथ मेहमान बनाकर ले गए तथा खूब आवभगत की. शिलान्यास समारोह में भागीदारी निभाने बाद हेमंत राज और उनके साथी वापस मंडी लौट आए थे.
गुड़ व चना पहचान थी कारसेवक की
इसके बाद वे दोबार वर्ष 1990 के आसपास अयोध्या गए. मगर पहुंच नहीं पाए उन्हें बुलंदशहर में हिरासत में ले लिया गया और 15 दिन तक पांच हजार कारसेवकों के साथ एक अस्थाई जेल में रखा गया. हेमंतराज ने बताया कि उस दौरान कार सेवकों के पास गुड़ और चना होता था यही उनकी पहचान थी. गुड़ चना मिलने पर उन्हें पकड़ लिया जाता था और जंगलों में छोड़ देते थे. इसलिए तय किया गया कि जैसे ही कोई कार सेवक पकड़ा जाएगा तो वो जय श्रीराम का नारा लगाएगा. इसके साथ ही बाकी कार सेवक भी उस जगह पर उतर जाएंगे. बुलंदशहर में उनके साथ इसी तरह की घटना घटी तो वे भी ट्रेन से उतर गए. उन्हें बुलंदशहर के इंटर कालेज में अस्थाई जेल बनाकर रखा गया. मगर यहां पर भी स्थानीय लोगों ने उनकी खूब आवभगत की. उन्हें चार-पांच की संख्या में अपने-अपने घर ले जाते. वहीं बाजार में खाना खाने जाते तो दुकानदार कारसेवकों से पैसे लेने को मना कर देते. हेमंतराज वैद्य जैसे कारसेवकों के संघर्ष और समर्पण की वजह से ही श्रीराम मंदिर का शिलान्यास संभव हो पाया था. जिसकी बुनियाद पर आज भव्य मंदिर बनकर तैयार हुआ है. अगर स्वास्थ्य ने साथ दिया तो इस बार भी अयोध्या जरूर जाएंगे.
साभार- हिन्दुस्थान समाचार