धर्मशाला। भारत और तिब्बत एक साझी सांस्कृतिक विरासत के वाहक हैं. यह सांकृतिक विरासत दोनों समुदायों को एक परिवार के रूप में जोड़कर रखती है. यह उद्गार रविवार को मैक्लोडगंज के टिप्पा में इण्डो-तिब्बतन फ्रेंडशिप एसोसिएशन द्वारा मनाये जाने वाले हिमालयन फेस्टिवल के 27वें संस्करण में बतौर मुख्यातिथि शिरकत करते हुए पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष व पर्यटन विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष (कैबिनेट रैंक) आर.एस. बाली ने व्यक्त किए. इस दौरान केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के प्रधानमंत्री पेंपा सेरिंग भी उपस्थित रहे.
बता दें, इण्डो-तिब्बतन फ्रेंडशिप एसोसिएशन दलाई लामा को नोबल शांति पुरस्कार मिलने की खुशी में हर वर्ष हिमालयन फेस्टिवल कार्यक्रम का आयोजन करता है. बाली ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि परमपावन दलाई लामा को 1989 में नोबल शांति पुरस्कार से नवाजा गया था.
उन्होंने कहा कि वैसे तो दलाई लामा का व्यक्तित्व किसी भी सम्मान से ऊपर है, फिर भी उनको सम्मान मिलने की जितनी प्रसन्नता तिब्बती समुदाय को है, उतनी ही भारत और यहाँ के लोगों को भी है. उन्होंने कहा कि उनको यह सम्मान मिलने की खुशी में दोनों समुदायों के लोग इण्डो-तिब्बतन फ्रेंडशिप एसोसिएशन के बैनर तले हर वर्ष इसे मनाते हैं.
आर.एस बाली ने कहा कि दलाई लामा ने भारत और धर्मशाला को अपना घर माना और यहाँ के लोगों ने भी पूरे तिब्बती समुदाय को परिवार के रूप में स्वीकार किया. उन्होंने कहा कि आपको अपने परिवार के रूप में यहां पाकर हम स्वयं को सौभाग्यशाली महसूस करते हैं.
आर.एस बाली ने कार्यक्रम में तिब्बती समुदाय द्वारा रखी गई मांगों को पूरा करने का आश्वासन दिया. उन्होंने कहा कि तिब्बती समुदाय ने उन्हें बताया कि वे परमपावन दलाई लामा के आवास की परिक्रमा करते हैं तथा उस मार्ग पर बहुत अंधेरा रहता है. बाली ने परिक्रमा मार्ग में 15 फरवरी से पूर्व 40 लाइटें लगाने की घोषणा की.
कार्यक्रम में तिब्बती समुदाय ने मैक्लोडगंज मॉनेस्टरी के बाहर द्वार बनाने की मांग रखी. आर.एस बाली ने उनकी इस माँग पर मोहर लगाते हुए गेट के निर्माण के लिए टूरिज्म विभाग की ओर से 20 लाख रूपये देने की घोषणा की.