धर्मशाला। हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के गणित, कंप्यूटर और सूचना विज्ञान स्कूल के तहत श्रीनिवास रामानुजन गणित विभाग के आर्यभट्ट मैथक्लब की ओर से ‘तनाव और चिंता के प्रबंधन’ विषय पर रविवार को एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य विश्वविद्यालय के छात्रों और संकाय सदस्यों के बीच शैक्षणिक तनाव के स्तर का आकलन करना और तनाव तथा चिंता के प्रबंधन के लिए उपचारात्मक उपायों पर चर्चा करना और सलाह प्रदान करना रहा।
कुलपति प्रोफेसर सत प्रकाश बंसल इस कार्यशाला के मुख्य संरक्षक रहे और डीन अकादमिक प्रो. प्रदीप कुमार कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि रहे। डॉ. विकेश गुप्ता, सहायक प्रोफेसर, मनोचिकित्सा विभाग, राजकीय मेडिकल कॉलेज टांडा ने इस कार्यशाला में अतिथि वक्ता के रूप में उपस्थिति दर्ज की।
इस मौके पर प्रो. प्रदीप ने कहा कि तनाव हर व्यक्ति का अपरिहार्य हिस्सा बन गया है और आजकल कोई भी इससे अछूता नहीं है। तनाव और इसके लक्षणों को कम करने के लिए व्यक्ति को भगवत गीता को पढ़ना चाहिए और उसके नियमों का पालन करना चाहिए। कार्यशाला के संयोजक और विभागाध्यक्ष प्रो. राकेश कुमार ने कहा कि आजकल हर व्यक्ति तनाव, चिंता और इसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले संबंधित परिणामों का सामना कर रहा है। हमारी व्यस्त दिनचर्या, आपसी प्रतिस्पर्धा और लगातार बढ़ती मांगों के साथ आधुनिक जीवन शैली तनाव संबंधी विकारों का मुख्य कारण है।
राजकीय मेडिकल कॉलेज टांडा से विशेषज्ञ वक्ता डॉ. विकेश गुप्ता ने अपने भाषण में तनाव और चिंता के दुष्प्रभावों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने तनाव का पता लगाने में संज्ञानात्मक और व्यवहार संबंधी लक्षणों की भूमिका को अच्छी तरह से समझाया और कुबलर रॉस की भावना के पांच चरणों इनकार, क्रोध, सौदेबाजी, अवसाद और स्वीकृति पर विचार रखे।
उन्होंने यह भी कहा कि तनाव काफी हद तक चिंता विकार, अवसाद, आत्महत्या के प्रयास और यहां तक कि मधुमेह, हृदय रोग और तनाव अल्सर जैसी जीवनशैली संबंधी बीमारियों को भी जन्म दे सकता है। उनके अनुसार तनाव से निपटने के लिए और इसे चिंता विकारों में बदलने से रोकने के लिए समय प्रबंधन पर ध्यान देना चाहिए। व्यवहार और सोच में बदलाव लाना चाहिए। अनुकूल रणनीतियों को अपनाना चाहिए। गहरी सांस लेने का अभ्यास करना चाहिए। ध्यान और योग करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अगर हम वास्तव में तनाव कम करना चाहते हैं तो हमें इनडोर और आउटडोर गतिविधियां करनी चाहिए, खेलों में सक्रिय भाग लेना चाहिए, दूसरों को माफ करना तथा आलोचना स्वीकार करना सीखना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि अगर हम चाहते हैं कि तनाव और चिंता में न फंसे तो हमें यथार्थवादी होना चाहिए, जीवन के हर क्षेत्र में पूर्णतावादी बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, अपनी भावनाओं को अपने प्रियजनों के साथ व्यक्त करना चाहिए और अपने तथा दूसरों के प्रति दयालु रवैया अपनाना चाहिए। उन्होंने सलाह दी कि व्यक्ति को शराब, धूम्रपान और नशीली दवाओं से दूर रहना चाहिए क्योंकि ये किसी भी समस्या का समाधान नहीं हैं। उन्होंने कहा कि यद्यपि तनाव अपरिहार्य है लेकिन चिंता विकार में परिवर्तित होने से पहले इसे प्रबंधित किया जा सकता है।