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418 घंटे और 41 जिंदगियां : चट्टानों का सीना चीर बाहर निकले सभी श्रमवीर, जानिए कितना कठिन रहा मिशन ‘उत्तरकाशी’ 

param by param
Nov 29, 2023, 07:22 pm GMT+0530
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बीते 17 दिनों से उत्तरकाशी के निर्माणधीन सिलक्यारा टनल में फंसे 41 मजदूरों को 28 नवंबर की रात सकुशल बाहर निकाल लिया गया। मौके पर मौजूद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सभी 41 मजदूरों का स्वागत पुष्प मालाओं के साथ किया। उत्तरकाशी के इस रेस्क्यू ऑपरेशन को राज्य और केंद्र सरकार की सभी एजेंसियां, अधिकारी और कर्मचारियों ने अपनी कड़ी मेहनत और जज्बे से सफल बनाया है। 

केंद्र और राज्य सरकार की तमाम टीमें पूरे 17 दिन तक पूरी तत्परता से रेस्क्यू में जुटी रहीं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी निरंतर स्थलीय निरीक्षण करने साथ ही रेस्क्यू टीमों की हौसला-अफजाई करते रहे। रेस्क्यू ऑपरेशन में एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, बीआरओ, आरवीएनएल, एसजेवीएनएल, ओएनजीसी, आईटीबीपी, एनएचएआईडीसीएल, टीएचडीसी, उत्तराखंड शासन, जिला प्रशासन, थल सेना, वायुसेना समेत तमाम संगठनों के अधिकारियों और कर्मचारियों ने अहम भूमिका निभाई।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद इस रेस्क्यू ऑपरेशन पर अपनी नजर बनाकर रखी। वहीं, जब सभी मजदूरों को बाहर निकाला गया तो पीएम ने उन सभी से फोन पर बातचीत की और टनल के अंदर वह इतने दिनों तक कैसे रहे और उन्होंने कैसे खुद का आत्मविश्वास बनाए रखा इसका अनुभव लिया। 

अब एक टाइमलाइन के जरिए बताते हैं कि यह पूरा रेस्क्यू ऑपरेशन कितना चुनौतीपूर्ण रहा:- 

12 नवंबर: निर्माणाधीन सिल्कयारा टनल ढह गया, जिसमें 41 मजदूर फंस गए। जिसके बाद एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, बीआरओ, एनएचआईडीसीएल और आईटीबीपी द्वारा बचाव कार्य शुरू किया। उन्होंने फंसे हुए लोगों को पानी निकालने के लिए बिछाए गए पाइप से ऑक्सीजन, दवा, भोजन और पानी अंदर भेजने का काम किया। 

13 नवंबर: शाम तक टनल के अंदर से 25 मीटर तक मिट्टी के अंदर पाइप लाइन डाली जाने लगी। दोबारा मलबा आने से 20 मीटर बाद ही काम रोकना पड़ा। मजदूरों को पाइप के जरिए लगातार ऑक्सीजन और खाना-पानी मुहैया कराया जाना शुरू हुआ।

14 नवंबर: टनल में लगातार मिट्टी धंसने से नॉर्वे और थाईलैंड के एक्सपर्ट्स से सलाह ली गई। ऑगर ड्रिलिंग मशीन और हाइड्रोलिक जैक को काम में लगाया। लेकिन लगातार मलबा आने से 900 एमएम की पाइप डालकर मजदूरों को बाहर निकालने का प्लान बना। इसके लिए ऑगर ड्रिलिंग मशीन और हाइड्रोलिक जैक की मदद ली गई, लेकिन ये मशीनें भी असफल हो गईं।  

15 नवंबर: रेस्क्यू ऑपरेशन के तहत कुछ देर ड्रिल करने के बाद ऑगर मशीन के कुछ पार्ट्स खराब हो गए। वहीं, टनल के बाहर मजदूरों के परिजनों में  रेस्क्यू ऑपरेशन में देरी के कारण नाराजगी देखने को मिली। पीएमओ के हस्तक्षेप के बाद दिल्ली से एयरफोर्स का हरक्यूलिस विमान हैवी ऑगर मशीन लेकर चिल्यानीसौड़ हेलीपैड पहुंचा। ये पार्ट्स विमान में ही फंस गए, जिन्हें तीन घंटे बाद निकाला जा सका।

16 नवंबर: 200 हॉर्स पावर वाली हैवी अमेरिकन ड्रिलिंग मशीन ऑगर का इंस्टॉलेशन पूरा हुआ। शाम 8 बजे से रेस्क्यू ऑपरेशन दोबारा शुरू हुआ। रात में टनल के अंदर 18 मीटर पाइप डाले गए। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने रेस्क्यू ऑपरेशन की रिव्यू मीटिंग की। 

17 नवंबर: सुबह दो मजदूरों की तबीयत बिगड़ी। उन्हें दवा दी गई। दोपहर 12 बजे हैवी ऑगर मशीन के रास्ते में पत्थर आने से ड्रिलिंग रुकी। मशीन से टनल के अंदर 24 मीटर पाइप डाला गया। नई ऑगर मशीन रात में इंदौर से देहरादून पहुंची, जिसे उत्तरकाशी के लिए भेजा गया। रात में टनल को दूसरी जगह से ऊपर से काटकर फंसे लोगों को निकालने के लिए सर्वे किया गया। 

18 नवंबर: दिनभर ड्रिलिंग का काम रुका रहा। खाने की कमी से फंसे मजदूरों ने कमजोरी की शिकायत की। पीएमओ के सलाहकार भास्कर खुल्बे और डिप्टी सेक्रेटरी मंगेश घिल्डियाल उत्तरकाशी पहुंचे। पांच जगहों से ड्रिलिंग की योजना बनी। 

19 नवंबर: सुबह केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और सीएम पुष्कर धामी उत्तरकाशी पहुंचे, रेस्क्यू ऑपरेशन का जायजा लिया और फंसे लोगों के परिजन को आश्वासन दिया। शाम चार बजे सिल्क्यारा एंड से ड्रिलिंग दोबारा शुरू हुई। खाना पहुंचाने के लिए एक और टनल बनाने की शुरुआत हुई। टनल में जहां से मलबा गिरा है, वहां से छोटा रोबोट भेजकर खाना भेजने या रेस्क्यू टनल बनाने का प्लान बना। 

20 नवंबर: इंटरनेशनल टनलिंग एक्सपर्ट ऑर्नल्ड डिक्स ने उत्तरकाशी पहुंचकर सर्वे किया और वर्टिकल ड्रिलिंग के लिए 2 स्पॉट फाइनल किए। मजदूरों को खाना देने के लिए 6 इंच की नई पाइपलाइन डालने में सफलता मिली। ऑगर मशीन के साथ काम कर रहे मजदूरों के रेस्क्यू के लिए रेस्क्यू टनल बनाई गई। BRO ने सिल्क्यारा के पास वर्टिकल ड्रिलिंग के लिए सड़क बनाने का काम पूरा किया।

21 नवंबर: एंडोस्कोपी के जरिए कैमरा अंदर भेजा गया और फंसे हुए मजदूरों की तस्वीर पहली बार सामने आई। उनसे बात भी की गई। मजदूरों तक 6 इंच की नई पाइपलाइन के जरिए खाना पहुंचाने में सफलता मिली। ऑगर मशीन से ड्रिलिंग शुरू हुई।

22 नवंबर: मजदूरों को नाश्ता, लंच और डिनर भेजने में सफलता मिली। सिल्क्यारा की तरफ से ऑगर मशीन से 15 मीटर से ज्यादा ड्रिलिंग की गई। मजदूरों के बाहर निकलने के मद्देनजर 41 एंबुलेंस मंगवाई गईं। डॉक्टरों की टीम को टनल के पास तैनात किया गया। चिल्यानीसौड़ में 41 बेड का हॉस्पिटल तैयार करवाया गया। 

23 नवंबर: अमेरिकी ऑगर ड्रिल मशीन तीन बार रोकनी पड़ी। देर शाम ड्रिलिंग के दौरान तेज कंपन होने से मशीन का प्लेटफॉर्म धंस गया। इसके बाद ड्रिलिंग अगले दिन की सुबह तक रोक दी गई। इससे पहले 1.8 मीटर की ड्रिलिंग हुई थी। 

24 नवंबर: सुबह ड्रिलिंग का काम शुरू हुआ तो ऑगर मशीन के रास्ते में स्टील के पाइप आ गए, जिसके चलते पाइप मुड़ गया। स्टील के पाइप और टनल में डाले जा रहे पाइप के मुड़े हुए हिस्से को बाहर निकाल लिया गया। ऑगर मशीन को भी नुकसान हुआ था, उसे भी ठीक कर लिया गया। इसके बाद ड्रिलिंग के लिए ऑगर मशीन फिर मलबे में डाली गई, लेकिन टेक्निकल ग्लिच के चलते रेस्क्यू टीम को ऑपरेशन रोकना पड़ा। उधर, एनडीआरएफ ने मजदूरों को निकालने के लिए मॉक ड्रिल की।

25 नवंबर: शुक्रवार को ऑगर मशीन टूटने के चलते रुका रेस्क्यू का काम शनिवार को भी रुका रहा। इंटरनेशनल टनलिंग एक्सपर्ट अरनॉल्ड डिक्स ने कहा है कि अब ऑगर से ड्रिलिंग नहीं होगी, न ही दूसरी मशीन बुलाई जाएगी।

मजदूरों को बाहर निकालने के लिए दूसरे विकल्पों की मदद ली जाएगी। बी प्लान के तहत टनल के ऊपर से वर्टिकल ड्रिलिंग की तैयारी हो रही है। एनडीएमए का कहना था कि मजदूरों तक पहुंचने के लिए करीब 86 मीटर की खुदाई करनी होगी। 

26 नवंबर: उत्तरकाशी की सिल्क्यारा टनल में फंसे 41 मजदूरों को बाहर निकालने के लिए पहाड़ की चोटी से वर्टिकल ड्रिलिंग शुरू हुई। रात 11 बजे तक 20 मीटर तक खुदाई हुई। वर्टिकल ड्रिलिंग के तहत पहाड़ में ऊपर से नीचे की तरफ बड़ा होल करके रास्ता बनाया जा रहा है। अधिकारियों ने कहा- अगर कोई रुकावट नहीं आई तो हम 100 घंटे यानी 4 दिन में मजदूरों तक पहुंच जाएंगे। 

27 नवंबर: सुबह 3 बजे सिल्क्यारा की तरफ से फंसे ऑगर मशीन के 13.9 मीटर लंबे पार्ट्स निकाल लिए। देर शाम तक ऑगर मशीन का हेड भी मलबे से निकाल लिया गया। इसके बाद रैट माइनर्स ने मैन्युअली ड्रिलिंग शुरू कर दी। रात 10 बजे तक पाइप को 0.9 मीटर आगे पुश भी किया गया। साथ ही 36 मीटर वर्टिकल ड्रिलिंग हो गई थी।

28 नवंबर: टनल से दोपहर 1.30 बजे के करीब ब्रेकथ्रो मिला। मजदूरों तक पहुंचने की खबर मिली। इसके बाद शाम 7.30 बजे सभी 41 मजदूरों को बाहर निकाल लिया गया। 

29 नवंबर: सीएम पुष्कर सिंह धामी ने अस्पताल में 41 मजदूरों से मुलाकात की और मुआवजे के रूप में उन्हें 1-1 लाख रुपए का चेक सौंपा। सीएम ने उत्तरकाशी सिल्क्यारा टनल बचाव में शामिल आईटीबीपी जवानों से भी मुलाकात की।

इस पूरे रेस्क्यू ऑपरेशन में रैट माइनर्स ने भी अहम भूमिका निभाई। बता दें कि रैट का मतलब है चूहा, होल का मतलब है छेद और माइनिंग मतलब खुदाई। इसमें पतले से छेद से पहाड़ के किनारे से खुदाई शुरू की जाती है और पोल बनाकर धीरे-धीरे छोटी हैंड ड्रिलिंग मशीन से ड्रिल किया जाता है और हाथ से ही मलबे को बाहर निकाला जाता है। जो लोग यह कार्य करते हैं उन्हें रैट माइनर्स कहा जाता है। हालांकि रैट होल माइनिंग को बैन किया जा चुका है क्योंकि इस प्रकिया का इस्तेमाल आमतौर पर कोयले की माइनिंग में खूब होता रहा है। झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तर पूर्व में रैट होल माइनिंग जमकर होती है, लेकिन रैट होल माइनिंग काफी खतरनाक काम है।

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