नई दिल्ली । वैश्विक रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने भारत की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान बढ़ा दिया है। रेटिंग एजेंसी ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) ग्रोथ के अनुमान को छह प्रतिशत से बढ़ा कर 6.40 प्रतिशत कर दिया है। वहीं, वित्त वर्ष 2024-25 के लिए जीडीपी ग्रोथ रेट को 6.9 प्रतिशत से घटा कर 6.40 प्रतिशत कर दिया है।
एसएंडपी ग्लोबल ने मंगलवार को जारी रिपोर्ट में वित्त वर्ष 2023-24 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को 6 प्रतिशत से बढ़ा कर 6.40 प्रतिशत कर दिया। रेटिंग एजेंसी ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार के आसार दिख रहे हैं। एसएंडपी का कहना है कि घरेलू स्तर पर अर्थव्यवस्था को जोरदार सपोर्ट मिल रहा है। ऐसे में महंगाई और कमजोर एक्सपोर्ट भी अर्थव्यवस्था की विकास दर को कमजोर नहीं कर पाएगा और भारत के जीडीपी में जबरदस्त उछाल आएगा।
एसएंडपी के मुताबिक भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट चालू वित्त वर्ष 2023-24 में अनुमान से तेज गति से बढ़ेगी, लेकिन आगामी वित्त वर्ष 2022-4-25 में इसकी रफ्तार थोड़ी सुस्त हो सकती है। एजेंसी ने कहा कि इसलिए इस वित्त वर्ष में जीडीपी ग्रोथ के अनुमान को 6.9 प्रतिशत से घटा कर 6.40 प्रतिशत कर रहे हैं। इससे पहले फिच रेटिंग्स ने हाल ही में वित्त वर्ष 2023-24 के लिए भारत की विकास दर 6.30 प्रतिशत रहने की उम्मीद जताई थी।
उल्लेखनीय है कि 31 मार्च, 2023 को समाप्त वित्त वर्ष 2022-23 में भारतीय अर्थव्यवस्था 7.2 प्रतिशत की दर से बढ़ी। वहीं, चालू वित्त वर्ष 2023-24 की दूसरी तिमाही (अप्रैल-जून) में भारत की जीडीपी ग्रोथ 7.8 प्रतिशत रही थी। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने मौजूदा वित्त वर्ष के लिए आर्थिक वृद्धि दर 6.50 रहने का अनुमान जताया है।
इस महीने की शुरुआत में रेटिंग एजेंसी फिच ने भारत के मिड टर्म ग्रोथ अनुमान को 0.7 प्रतिशत बढ़ाकर 6.2 प्रतिशत कर दिया था. इससे पहले ग्लोबल एजेंसी का अनुमान 5.5 प्रतिशत का था. फिच ने कहा कि 2023-24 के लिए भारत की विकास दर 6.3 प्रतिशत रहने की उम्मीद है.
अमेरिका के लिए एसएंडपी ग्लोबल को अमेरिकी फेडरल रिजर्व के 2 प्रतिशत के लक्ष्य के मुकाबले मुद्रास्फीति में धीरे-धीरे गिरावट का अनुमान है. हालांकि उसे उम्मीद है कि दिसंबर की फेड मीटिंग में दरों में एक और बढ़ोतरी होगी और पहली कटौती 2024 के मध्य में ही होगी.
एजेंसी ने कहा “कुल मिलाकर, एशिया-पैसिफिक बाजारों और मुद्राओं पर उच्च अमेरिकी ब्याज दरों का दबाव 2024 तक बना रहेगा.”