बैंकरप्सी को एक लीगल कंडीशन के रूप में देख सकते है. जिसमें कोई इंसान या बिजनेस अपने कर्ज को चुकाने में सक्षम नहीं होता. ज्यादातर कंडीशन में इसे लोन को देने वाला शुरु करता है. जिसे कोर्ट के आदेश पर घोषित किया जाता है. इसको इस तरह से समझ सकते हैं, कोई एक इंसान या बिजनेस खुद को कॉर्पोरेट या इंडिविजुअल बैंकरप्सी के तहत दिवालिया होने की घोषणा कर सकता है.
भारत की कानूनी प्रणाली में बैंकरप्सी का कानून, सेशन बोनारम के रोमन प्रिंसिपल पर आधारित है. जिसका मतलब है डेटर अपने क्रेडिटर के फायदे के लिए इम्युनिटी के बदले अपने सामान को सरेंडर करता है. इस लॅा को ब्रिटिश इंडिया में लाया गया था. इसमें दो कानून हैं जो कंज्यूमर इनसॉल्वेंसी से निपटते हैं. इसे द प्रेसीडेंसी-टाउन इन्सॉल्वेंसी एक्ट ऑफ 1909 और द प्रोविंशियल इनसॉल्वेंसी एक्ट ऑफ़ 1920 के माध्यम से एप्लाई किया गया था. वहीं कॉरपोरेट इनसॉल्वेंसी को कंपनी एक्ट 1956 के तहत डील किया जाता है.
काफी समय से व्यापार के दिवालिया होने से लेकर व्यक्तियों के बैंकरप्ट होने से रिलेटेड कई पुराने कानूनों में सुधार की जरुरत देखी जा रही थी. इस कारण भारत सरकार ने इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड 2016 पेश किया. इसके तहत पुराने कानूनों को बदल दिया गया. इसमें व्यक्तियों, कंपनियों, सीमित देयता भागीदारी और साझेदारी फर्मों को भी शामिल किया गया है. इसके लागू होने से पहले खुद को दिवालिया घोषित करने और कंपनी को बंद करने की प्रोसेस काफी लंबी थी.
लेकिन इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड 2016 के आने के बाद ये Debt Recovery Tribunal के तहत इंडिविजुअल और पर्टनरशिप फर्मों के लिए फैसला करता है. जबकि राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण कंपनियों और लिमिटेड लाएबिलिटी पार्टनरशिप के मामलों में फैसला करता है. इसमें ये माना गया है कि कॉरपोरेट देनदारों के लिए इनसॉल्वेंसी प्रक्रिया शुरू करने के लिए कम से कम 100,000 रुपये का डिफॉल्ट होना चाहिए. इसमें न्यूनतम डिफॅाल्ट की राशि 1000 रुपये है. इस तरह के व्यक्तियों और अनलिमिटेड पर्टनरशिप के सभी मामलों पर इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड लागू होता है.
आप अकेले नहीं हैं ऐसे लाखों लोग हैं जिन्होंने इस समस्या का सामना किया है, और इससे बाहर आए हैं. इससे बाहर आने के लिए एक सेल्फ-इवेल्यूशन करना जरुरी है. कि आप क्या गलत कर रहे हैं और कौन सी आदतें इस कंडीशन को पैदा कर रहीं हैं. अपना बजट प्लान करें. और समय पर अपने बिलों को पे करें. इसके साथ ही अपनी क्रेडिट रिपोर्ट की निगरानी भी जरुर करें.