शिमला के आईजीएमसी अस्पताल में स्टेट ऑर्गन एंड टिशु ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन (सोटो) हिमाचल प्रदेश व आई बैंक की ओर से शुक्रवार, (17 नवंबर) को अंगदान व नेत्रदान के प्रति जागरूकता अभियान चलाया गया. न्यू ओपीडी ब्लॉक और मेडिसिन आईसीयू के बाहर मरीज के तीमारदारों को अंगदान में नेत्रदान की महत्वता के बारे में जानकारी दी गई है.
नेत्र रोग विभाग के असिस्टेंट प्रो. डॉ तरुण सूद व सोटो की टीम ने जानकारी देते हुए कहा कि नेत्रदान कोई भी व्यक्ति कर सकता है चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, समुदाय और लिंग का हो. नेत्रदान करने और उसके बाद प्रत्यारोपण करने की प्रक्रिया में किसी प्रकार की फीस नहीं ली जाती.
उन्होंने कहा कि आईजीएमसी का नेत्र बैंक 25 किलोमीटर के दायरे में घर पर हुई मृत्यु के बाद 6 घंटे के भीतर दान किए गए नेत्र एकत्रित करता है. डॉक्टर सूद ने बताया कि नेत्र निकालने के बाद व्यक्ति के शरीर में आर्टिफिशियल नेत्र लगाए जाते हैं ताकि वह भद्दा दिखाई ना दे. मरने के बाद नेत्रदान करना दूसरों की जिंदगी में उजाला लेकर आता है.
उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति का जीवन बचाने के लिए डॉक्टर होना ही जरूरी नहीं है बल्कि लोग मृत्यु के बाद भी अपने अंगदान करके जरूरतमंद का जीवन बचा सकते हैं. अंगदान करने वाला व्यक्ति ऑर्गन के जरिए 8 लोगों का जीवन बचा सकते हैं. जीवित अंगदाता किडनी, लीवर का भाग, फेफड़े का भाग और बोन मैरो दान दे सकते हैं, वहीं मृत्युदाता यकृत, गुर्दे, फेफड़े, पेनक्रियाज, कॉर्निया और त्वचा दान कर सकते हैं.
उन्होंने कहा कि गंभीर बीमारी से जूझ रहे मरीजों और दुर्घटनाग्रस्त मरीजों के ब्रेन डेड होने के बाद यह प्रक्रिया अपनाई जा सकती है. अस्पताल में मरीज को निगरानी में रखा जाता है और विशेष कमेटी मरीज को ब्रेन डेड घोषित करती है. मृतक के अंग लेने के लिए पारिवारिक जनों की सहमति बेहद जरूरी रहती है. उन्होंने लोगों से अनुरोध करते हुए कहा कि समाज के विभिन्न वर्गों में अंगदान को लेकर जागरूकता फैलाएं ताकि जरूरतमंद को नई जिंदगी मिल सके.