हिमाचल प्रदेश सरकार का स्टोन क्रशर बंद करने का फरमान अब लोगों के लिए आफत बन गया है. स्टोन क्रशर बंद होने से कई वर्ग इससे बेहाल हो चुके है. हर हफ्ते अढ़ाई करोड़ का नुकसान हो रहा है. लोगों का कहना है कि जिला कांगड़ा के क्रशर बंद है, जबकि दूसरे जिला में क्रशर चालू है और इसका फायदा उठा कर क्रशर संचालक रेत-बजरी को तीन से चार गुना दामों पर बेच रहे है. एक अनुमान के अनुसार बंद क्रशरों से प्रदेश को रोजाना करीब 40 लाख, हफ्ते में दो करोड़ 80 लाख और महीने में करीब 12 करोड़ रुपए का नुकसान झेलना पड़ रहा है. क्रशर बंद होने से लोगों को भवन निर्माण सामग्री नहीं मिल पा रही है. अगर मिल भी रही है, तो वह भी दोगुने दामों पर, जिससे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. सबसे बड़ी परेशानी ठेकेदारों को झेलनी पड़ रही है क्योंकि उन्होंने विभिन्न विकास कार्यों के टेंडर ले रखे है. कुछ ठेकेदारों ने बताया कि जब उन्हें काम अवार्ड हुए थे, उस समय रेट कुछ और थे और अब दोगुने से अधिक हो गए है ऐसे में काम रोकने पड़ रहे है.
चाहे वे क्रशर पर काम करने वाले कर्मचारी हो या ट्रांसपोर्टर, टिप्पर, ट्रैक्टर वाले, मजदूर, राजमिस्त्री या ढाबेे-चाय से लेकर पेट्रोल पंप वालों पर भी परोक्ष रूप से क्रशर बंद होने की मार पड़ रही है. कई लोग बेरोजगार होकर दिहाड़ी लगाने को मजबूर है.
रेत के रेत 45 रुपए प्रति क्यूबिक थे, जो इन दिनों बढक़र 85 रुपए तक पहुंच चुके है. बजरी के रेट भी 35 से बढक़र 52 रुपए प्रति क्यूबिक तक है. इस तरह से उनका आर्थिक तौर पर नुकसान भी झेलना पड़ेगा क्योंकि निर्माण लागत डबल हो जाएगी. क्रशर बंद होने से न केवल ठेकेदार प्रभावित है, बल्कि हर वर्ग पर इसकी मार पड़ रही है.
चार महीने पहले जब हिमाचल प्रदेश को आपदा की पहली मार पड़ी थी, तब विक्रमादित्य सिंह ने कुल्लू में कहा था कि यह नुकसान ब्यास नदी व अन्य सहायक नदी-नालों में किए जा रहे अवैध खनन से हुआ है. अवैध खनन से नदियों का रुख मुड़ रहा है और नदी-नालों में अवैध खनन करने वाले अब बख्शे नहीं जाएंगे. विक्रमादित्य के बयान को जनता का समर्थन मिला और जब हिमाचल को आपदा की दूसरी मार पड़ी तो मजबूरन सरकार को दबाव में आकर ब्यास व इसकी सहायक नदियों के साथ लगे स्टोन क्रशर को बंद करने का फैसला लेना पड़ा.