कंगना रनौत की फिल्म ‘तेजस’ सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है. कंगना हिंदी सिनेमा की उन एक्ट्रेसेस में से हैं जिनके नाम से दर्शक थिएटर्स में फिल्में देखने जाते हैं. अपनी बेहतरीन परफॉर्मेंसेस के जरिए कई बार तारीफें पा चुकीं और राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकीं कंगना रनौत अब ‘तेजस’ लेकर आई हैं. लेकिन इंडियन एयरर्फोस की ऑफिसर तेजस गिल की इस काल्पनिक कहानी में क्या कंगना फिर अपना जादू चला पाई हैं? क्या वो ‘धाकड़’ से निराश अपने फैंस को ‘तेजस’ के रूप में एक अच्छी फिल्म का तोहफा दे पाई हैं? आइए आपको इस रिव्यू के जरिए बताती हूं.
फिल्म ‘तेजस’ कहानी है फ्लाइंग ऑफिसर तेजस गिल की जो एक बेहतरीन फाइटर पायलेट है. इंडियन एयरफोर्स की ये पायलेट टीवी पर नजर आ रहे एक बंदी की आंखों से उसके कोड समझ लेती है, अपनी ट्रेनिंग के टाइम से पहले ही हवाई जहाज उड़ाने लगती है. ये एक्स्ट्रा-ऑर्डिनरी है और कुछ भी कर सकती है. देश के एक जवान को बचाने के लिए वो सीनियर्स के ऑर्डर भी नहीं मानती और खुद इनक्वायरी तक झेलने को तैयार हो जाती है. भारत का एक जासूस पाकिस्तानी आतंकियों के कब्जे में आ जाता है. उसे टॉर्चर करने का वीडियो न्यूज चैनल्स पर दिखाया जा रहा है. इसे देखते ही तेजस गिल तय करती है कि पाकिस्तान से इस भारतीय जासूस को वापस लाएगी. यही है मिशन तेजस. इस नामुमकिन से लगने वाले मिशन पर भारत की 2 पायलेट ऑफिसर जाती हैं तेजस और ऑफिया. अब उनका ये मिशन सक्सेस होता है या नहीं, ये आपको फिल्म में देखना होगा.
तेजस का फर्स्ट हाफ काफी ढीला और बोरिंग है. कहानी में कोई भी एक्साइटमेंट पैदा नहीं होता. इंटरवेल से पहले के 10 मिनट छोड़कर कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे देखकर लगे कि अब आगे क्या होगा. फिल्म में कई जगह लगता है कि जैसे बस सीन-सीन जोड़े गए हैं. उनका आपस में कोई कनेक्शन नहीं है. तेजस के बॉयफ्रेड का इंट्रोडक्शन सीधा गाने से होता है और वो भी पूरे 4-5 मिनट तक चलता है. इतना बड़ा कान्सर्ट करने वाला सिंगर यूं ही घूम रहा है और अचानक एयरफोर्स का फ्लाइंग शो देखने पहुंच जाता है, वो वहां ऑडियंस के बीच खड़ा है. फिल्म के सीक्वेंस इतने अचानक बदल रहे हैं कि समझ ही नहीं आता. हालांकि सेकंड हाफी की स्पीड ठीक है. कहानी में कुछ हाई पॉइंट्स भी हैं.
देशभक्ति से ओत-प्रोत फिल्मों की सबसे बड़ी ताकत होती है उसके डायलॉग, जो आपको अपनी कुर्सी से खड़ा करने की ताकत रखते हैं. पर इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी ही वहीं हैं. फिल्म का एक भी डायलॉग ऐसा नहीं है जो आपके रोंगटे खड़ा कर दे. फिल्म का जो सबसे जोशीला डायलॉग है, वो है ‘हम उड़ते-उड़ते जाएंगे, देश के काम आएंगे.’ अब आप खुद ही अंदाजा लगा लीजिए. सर्वेश मेवाड़ा इस फिल्म के निर्देशक और लेखक दोनो हैं और वो इन दोनों ही मोर्चां पर पूरी तरह कमजोर साबित हुए हैं. सिर्फ क्रिएटिव मोर्चों पर ही नहीं, बल्कि टेक्निकल और वीएफएक्स के मामले में भी फिल्म काफी कमजोर पड़ गई है. क्लाइमैक्स आपको किसी वीडियो गेम जैसा लगेगा. सैनिकों के सम्मान की इतनी बात इस फिल्म के प्रमोशन में दौरान कंगना रनौत ने की. पर दुखद है कि उन्होंने इंडियन एयरफोर्स के ऊपर बन रही इस फिल्म में ही इंडियन एयरफोर्स से जुड़ी कई बारीकियों का ध्यान नहीं रखा. इंडियन एयरफोर्स इससे कहीं बेहतर फिल्म डिजर्व करती है.
परफॉर्मेंस की बात करें तो कंगना रनौत हमें कई बार अपने अभिनय से चौंका चुकी हैं. लेकिन इस फिल्म में कंगना कई बार अपने इमोशंस के साथ ‘अति’ करते हुए नजर आई हैं. उदाहरण के लिए एक सीन है जब कंगना रेस्तरां में जैसे ही बाथरूम जाती हैं, आतंवादी गोलियां बरसा देते हैं. इस सीन में कंगना से जिस इमोशन की दरकार थी, वो आप फील ही नहीं कर पाते. इतनी गोलियों के बीच वो अपने परिवार को नहीं बल्कि एक बच्ची को देखती हैं, उसकी तरफ दौड़ते हुए जाती हैं और हाथ से गोलियों को खुद के ऊपर आने से रोकने की कोशिश करते हुए उस बच्ची को बाथरूम में बचा कर ले जाती हैं. इस सारे सीन में वो अपना दुपट्टा भी संभालती हैं. ये पूरा सीन दर्शकों को अंदर तक हिला सकता था लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता. कंगना जब स्क्रीन पर होती हैं, तब शायद ही किसी और पर आपका ध्यान जाता है. पर ‘तेजस’ में परफॉर्मेंस के तौर पर सबसे ज्यादा इंप्रैस करती हैं आफिया के किरदार में नजर आ रहीं एक्ट्रेस अंशुल चौहान. अंशुल अपने हर सीन में इतनी रीयल लगी हैं कि क्या कहें. उनके अलावा फिल्म में हर कोई ‘तेजस गिल’ के तेज के आगे भौचक्का सा नजर आया है.