हिमाचल सरकार बेशक प्रशासनिक ट्रिब्यूनल को फिर से खोलने जा रही हो, लेकिन इसकी प्रक्रिया अभी उतनी आसान नहीं है। राज्य सरकार की तरफ से केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय से एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल एक्ट 1985 के तहत राज्य के कर्मचारियों के सेवा संबंधी मामलों को सुनने के लिए ट्रिब्यूनल के गठन की अनुमति मांगी गई है, लेकिन केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय ने तीन तरह की औपचारिकताएं पहले पूरी करने को कहा है। राज्य सरकार को अब यह ड्राफ्ट भारत सरकार को भेजना होगा कि प्रस्तावित प्रशासनिक ट्रिब्यूनल में कितने सदस्य होंगे या कितने बेंच होंगे? साथ ही स्टाफिंग पैटर्न और सेवा शर्तों को लेकर भी स्थिति स्पष्ट करनी होगी। पूर्व जयराम सरकार ने 2019 में ऑर्डिनेंस के जरिए ट्रिब्यूनल को जब बंद किया था, तो इसमें मौजूद कर्मचारियों को हाईकोर्ट को दे दिया था।
अब एक विचार यह है कि हाईकोर्ट को पत्र लिखा जाए ताकि उन कर्मचारियों को वापस ले लिया जाए। हाईकोर्ट में भी इसके बाद बढ़े काम को देखते हुए कर्मचारी वापस मिलेंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है। फिलहाल कार्मिक विभाग केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय द्वारा मांगी गई जानकारी के अनुसार अब ड्राफ्ट बनाने में लगा है। यहां यह भी जानना रोचक है कि जयराम सरकार के समय जब ट्रिब्यूनल को खत्म करने और इसमें लंबित मामलों को हाईकोर्ट को ट्रांसफर करने से संबन्धित विधेयक विधानसभा में रखा गया, तो उसमें इसके चार कारण बताए गए थे। तब की सरकार ने कहा था कि ट्रिब्यूनल को स्थापित करने के बाद राज्य में सरकारी कर्मचारियों को न्याय के लिए थ्री टियर सिस्टम लग गया है। इससे न्याय में देरी हो रही है और यह कर्मचारियों के हित में नहीं है। दूसरी वजह थी कि हिमाचल छोटा राज्य है और जब हाईकोर्ट मौजूद है तो अलग से ऐसी संस्था रखने की जरूरत नहीं है। तीसरा कारण था कि पड़ोस के राज्यों में भी इस तरह का कोई ट्रिब्यूनल नहीं है। चौथी वजह बताई गई थी कि ट्रिब्यूनल में ही 21000 केस कर्मचारियों की लंबित हैं, जिन्हें अब हाईकोर्ट को ट्रांसफर करना पड़ रहा है। यह प्रमाण है कि ट्रिब्यूनल के बनने के बाद भी कर्मचारियों को जल्दी न्याय नहीं मिल रहा।
मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना ने बताया कि बदली हुई परिस्थितियों में राज्य सरकार प्रशासनिक ट्रिब्यूनल को खोलना चाहती है। मंत्रिमंडल ने इस बारे में प्रक्रिया को शुरू करने के निर्देश दिए थे, जिसके बाद अभी यह प्रक्रिया चल रही है। अभी शुरुआती स्टेज है और ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता। मकसद राज्य के सरकारी कर्मचारियों के सेवा नियमों संबंधी मामलों की सुनवाई का अलग से प्लेटफार्म तैयार करना है। अभी भारत सरकार से क्लीयरेंस के बाद ही अगली स्टेज आएगी।