तेलंगाना विधानसभा चुनाव का ऐलान हो गया है. राज्य की सभी 119 विधानसभा सीटों पर 30 नवंबर को वोट डाले जाएंगे. इससे चलते ही सियासी दल अपने-अपने चुनावी अभियान को धार देने में जुट गए हैं. भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के मुखिया केसीआर सत्ता की हैट्रिक लगाने के लिए हरसंभव कोशिश में जुटे हैं, लेकिन इस बार 2014 और 2019 की तरह सियासी राह आसान नहीं दिख रही है. कांग्रेस और बीजेपी दोनों पूरे दमखम के साथ किंग बनाने के लिए चुनावी मैदान में उतर चुकी हैं जबकि बसपा और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM भी किंगमेकर बनने के लिए बेताब हैं.
आंध्र प्रदेश से अलग होकर तेलंगाना 2013 में अलग राज्य बना था, जिसके बाद से केसीआर का दबदबा रहा है. केसीआर 2014 और 2019 में लगातार दो चुनाव प्रचंड बहुमत के साथ जीतकर सत्ता पर काबिज हैं और अब तीसरी बार जीत दर्ज करने के लिए जद्दोजहद में जुटे हैं. केसीआर तेलंगाना के अभी तक ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में एक मजबूत आधार से साथ खड़ी रही है, लेकिन इस बार सत्ता विरोधी लहर से जुझना पड़ रहा है.
हालांकि, केसीआर अपनी कल्याणकारी योजना के दम पर सत्ता में वापसी की उम्मीदें लगाए हुए हैं. केसीआर ने चुनाव की तारीखों के ऐलान से करीब डेढ़ महीने पहले ही 119 सीटों में से 105 सीट पर अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर रखा है. ओवैसी की पार्टी के साथ उनका बेहतर तालमेल बनाकर मुस्लिम वोटों को साधने के लिए की कवायद कर रखी है. इसके बावजूद जिस तरह से तेलंगना में इस बार कांग्रेस और बीजेपी चुनौती बनकर खड़े हैं, उससे मुकाबला त्रिकोणीय होने के आसार दिख रहे हैं.
केसीआर के सामने सबसे बड़ी चुनौती इस बार कांग्रेस से मिल रही है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव के साथ ही कांग्रेस तेलंगाना की सियासी जंग फतह करने में जुट गई थी. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रेंवथ रेड्डी की जनयात्राओं को मिली सफलता से पार्टी उत्साहित है और पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ रही. प्रियंका गांधी वाड्रा, राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की जनसभाएं हो चुकी हैं.
हैदराबाद में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के बाद हुई रैली में सोनिया गांधी को सुनने उमड़ी भीड़ ने बीआरएस के मुकाबले कांग्रेस को ला दिया है. कांग्रेस का मानना है कि बीआरएस के खिलाफ एक मजबूत सत्ता विरोधी लहर है जो उसके सत्ता में आने के लिए मदद साबित हो सकता है. पिछले दिनों बीआरएस के कई नेता कांग्रेस में शामिल हुए हैं. कांग्रेस ने मुफ्त बिजली, पेंशन सहित तमाम लोक लुभावने वादे कर रखे हैं.
बीजेपी 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद से ही तेलंगाना में सक्रिय है. प्रदेश अध्यक्ष जी किशन रेड्डी आक्रामक तरीके से चुनावी प्रचार में जुटे हैं. 3 अक्टूबर को निजामाबाद में पीएम नरेंद्र मोदी की जनसभा, जिसमें उन्होंने केसीआर पर एनडीए में शामिल होने की कोशिश करने का आरोप लगाया था. बीजेपी हिंदुत्व के पिच पर खुल कर खेल रही है.
पिछले चुनाव में बीजेपी ने एक सीट जीती थी, जो बढ़कर फिलहाल 3 हो गई है, लेकिन इस बार बीजेपी की कोशिश दहाई के अंक में विधायकों की संख्या को पहुंचाने का है. 2018 के विधानसभा चुनावों में केवल एक सीट जीती थी, लेकिन 2019 में 4 लोकसभा सीटें जीती थीं. यही वजह है कि बीजेपी इस उम्मीद है कि उसकी सीटें बढ़ सकती हैं.
तेलंगाना में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) का अपना सियासी आधार है. पार्टी हैदराबाद में मुस्लिम मतों के सहारे पिछले 2 चुनाव से सात-सात सीटें जीतने में सफल रही है. हैदराबाद के पुराने शहर की विधानसभा सीटों पर ओवैसी की पार्टी जीत हासिल करती है. ऐसे में उनकी कोशिश किंगमेकर बनने की है, जिसके लिए मुस्लिम मतों को अपने साथ एकमुश्त जोड़े रखना चाहते हैं.
इस तरह तेलंगाना में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिलने पर उन्हें लगता है कि उनकी भूमिका अहम हो सकती है. वहीं, ओवैसी की नक्शेकदम पर बसपा भी चल रही है और उसकी कोशिश दलित समुदाय के सहारे किंगमेकर बनने की है.