हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सुक्खू की सरकार को झटका दिया है. उप मुख्यमंत्री और मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिकाएं रद्द करने के लिए सरकार के आवेदन को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया. हिमाचल प्रदेश सरकार ने याचिकाओं की गुणवत्ता पर सवाल उठाए थे. इस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि नियुक्तियों के खिलाफ सुनवाई मेरिट के आधार पर होगी. हिमाचल प्रदेश सरकार ने उच्च न्यायालय से अनुरोध किया था कि याचिकाओं में त्रुटि के चलते इसे अनमेंटेबल करार दिया जाए.
इस मामले को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने बयान जारी कर कहा है कि हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने प्रदेश सरकार की उस अपील को खारिज कर दिया है, जिसमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विधायकों द्वारा सीपीएस नियुक्ति के खिलाफ याचिका दायर की गयी थी। उन्होंने कहा कि कानूनी लड़ाई की शुरुआत में ही विपक्ष की यह बड़ी जीत सरकार के लिए एक बड़ा झटका है। उन्होंने कहा कि सलाहकारों की फौज होने के बावजूद मुख्यमंत्री इस मामले में गलत सलाह के शिकार हैं। उन्होंने कांग्रेस नेता पर जानबूझकर अपने दोस्तों के राजनीतिक भविष्य को खतरे में डालने का आरोप लगाया। उन्होंने एक अदालती मामले (इसके विधायक द्वारा अदालत के समक्ष दायर) के रखरखाव के बारे में कल उच्च न्यायालय के फैसले को सरकार के लिए एक झटका करार दिया।
सीपीएस की नियुक्तियों से सत्ताधारी दल में राजनीतिक समीकरण गरमा गए हैं। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत के स्पष्ट आदेशों के बावजूद सरकार द्वारा सीपीएस नियुक्त करने का यह निर्णय पूरी तरह से आश्चर्यजनक है। श्री ठाकुर ने कहा कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने छह विधायकों को सीपीएस नियुक्ति किया है। इनमें रोहड़ू से मोहन लाल ब्राक्टा, कुल्लू से सुंदर सिंह ठाकुर, अर्की से विधायक संजय अवस्थी, दून से राम कुमार चौधरी, पालमपुर से आशीष बुटेल और बैजनाथ से किशोरी लाल शामिल हैं। सरकार ने उन्हें दफ्तर से लेकर वाहन समेत अन्य सुविधाएं भी मुहैया कराई हैं।