रामायण की रचना करके जन-जन को उनके राम से मिलाने वाले महर्षि वाल्मीकि का आश्रम बागपत में है. इस आश्रम का इतिहास अनादि काल से जुड़ा हुआ है. पश्चिमी यूपी का यह धाम देश में लोगों की आस्था का बड़ा केंद्र है और लोग रामायण कालीन इतिहास जानने के लिए यहां पर पहुंचते हैं. मान्यताओं के मुताबिक लव कुश का जन्म यहीं पर हुआ था. भगवान राम ने जब सीता माता का त्याग किया था, तो उन्हें लक्ष्मण यहीं पर छोड़ कर गए थे. लव कुश की शिक्षा भी यहीं पर हुई थी और माता सीता भी इसी स्थान पर सती हुई थी.
बागपत शहर मुख्यालय से करीब 25 किमी दूर मेरठ बागपत हाइवे पर स्थित बालैनी गांव में हिंडन नदी के किनारे बाल्मीकि आश्रम स्थिति है. उधर मेरठ से भी इस मंदिर की दूरी 25 किलोमीटर है. महंत श्री आनंदेश्वर गिरी जी महाराज ने बताया कि ब्रह्मऋषि वाल्मीकि आश्रम है जो की कृष्णा नदी के किनारे पर बालैनी गांव में स्थित है. यह ब्रह्म ऋषि वाल्मीकि का आश्रम है. जब श्री रामचंद्र ने सीता जी का परित्याग किया था, लक्ष्मण जी इसी स्थान पर माता सीता को छोड़कर गए थे.
महंत ने बताया कि लव कुश का जन्म भी इसी स्थान पर हुआ था. लव कुश की पाठशाला, शिक्षा भी यहीं पर हुई थी और ब्रह्म ऋषि वाल्मीकि ने पंचमुखी महादेव को यहां पर स्थापित किया था और माता सीता सती भी यहीं पर हुई थी. इस आश्रम की बहुत ही मान्यता है, यहां से देश के हर कोने से भक्त आते है.
नवरात्र पर दूर-दराज के श्रद्धालु भी यहां पूजा-अर्चना को आते हैं. नवरात्र पर लगातार नौ दिन अनुष्ठान होता है. हर साल आखा तीज का बहुत बड़ा मेला लगता है. आखा तीज का मेला इसलिए लगता है कि लव-कुश का जन्म भी तीज को हुआ था. आखातीज के अवसर पर इस मंदिर में दूर-दराज से श्रद्धालु आते हैं और विशेष पूजा पाठ करते हैं और मंदिर का इतिहास जानते है.