केरल हाईकोर्ट की एक पूर्ण पीठ ने माना है कि विवाह के विघटन के बाद भी पति को उन संपत्तियों के संबंध में विश्वास में रखने वाला व्यक्ति (होल्ड इन ट्रस्ट ) माना जाएगा,जो दहेज के रूप में शादी से पहले पत्नी द्वारा उसको सौंपी गई थी.
इसका मतलब यह है कि लिमिटेशन एक्ट 1963 की धारा 10, जो ट्रस्ट और ट्रस्टियों के खिलाफ लिमिटेशन पीरियड के आवेदन से छूट देती है, विवाह के विघटन के बाद भी ऐसी संपत्ति पर लागू रहेगी. इसलिए पति या ससुराल वालों को सौंपी गई संपत्ति की वापसी के दावे के संबंध में विवाह के विघटन के बाद भी लिमिटेशन पीरियड शुरू नहीं होगा.जस्टिस एएम शफीक, जस्टिस सुनील थॉमस और जस्टिस पी गोपीनाथ की 3-जजों वाली बेंच इस मुद्दे पर फैसला कर रही थी कि क्या पत्नी द्वारा अपने पति को अपनी संपत्ति सौंपते समय बनाया गया विश्वास शादी के विघटन के बाद खत्म हो जाता है ? और क्या वह समय की किसी लिमिटेशन के बिना लिमिटेशन एक्ट 1963 की धारा 10 को लागू करने के लिए कार्यवाही शुरू कर सकती है?
इस मुद्दे को पूर्ण पीठ के पास एक डिवीजन बेंच द्वारा संदर्भित किया गया था जिसने बिंदू के.पी. बनाम सुरेन्द्रन सी. के (2018) मामले में अपनाए गए विचार की शुद्धता पर संदेह किया था. जिसमें यह ठहराया गया था कि दहेज के लिए पत्नी या पूर्व पत्नी द्वारा किए जाने वाले दावा समय की किसी भी सीमा से बंधा या वर्जित नहीं है.
पूर्ण खंडपीठ ने कहा कि यह तय कानून है कि जब पत्नी पति को अपनी कोई संपत्ति सौंपती है, तो एक ट्रस्ट बन जाता है और पति इस संपत्ति को अपनी पत्नी को वापस करने के लिए बाध्य होता है. लिमिटेशन एक्ट की धारा 10 इंगित करती है कि इस तरह की कार्रवाई शुरू करने के लिए कोई लिमिटेशन नहीं है, क्योंकि कोई ऐसा अन्य कानून उपस्थित नहीं है जो कोई लिमिटेशन तय करता हो. इसलिए कोई भी ट्रस्टी यह दलील नहीं दे सकता है कि वह किसी भी लिमिटेशन पीरियड के कारण ट्रस्ट संपत्ति को वापिस नहीं करेगा. पीठ ने बिंदू के.पी. बनाम सुरेन्द्रन सी. के मामले में दिए गए फैसले पर अपनी सहमति जताई और उसी अनुसार संदर्भ का उत्तर दिया.