अफगानिस्तान में तालिबान शासन के आने के बावजूद भारत में पुरानी सरकार का दूतावास काम कर रहा था। लेकिन अब दूतावास को बंद करने का फैसला किया गया है। एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान के दूतावास से भारत में अपने परिचालन को बंद करने का फैसला किया है। बयान में कहा गया, ‘बेहद दुख, अफसोस और निराशा के साथ नई दिल्ली में अफगानिस्तान का दूतावास अपना परिचालन बंद करने के इस फैसले की घोषणा करता है।’
दूतावास को बंद करने के पीछे मेजबान सरकार से समर्थन की कमी और अफगानिस्तान के हितों की पूर्ति की अपेक्षाओं को पूरा ना कर पाने का हवाला दिया गया। बयान में कहा गया, ‘दूतावास ने मेजबान सरकार से महत्वपूर्ण समर्थन की उल्लेखनीय कमी का अनुभव किया है, जिससे हमारी क्षमता और कर्तव्य में प्रभावी ढंग से बाधा पैदा हुई।’ दूतावास ने कहा कि यह निर्णय बेहद अफसोसजनक है। बयान में कहा गया कि अफगानिस्तान और भारत के बीच ऐतिहासिक संबंधों और दीर्घकालिक साझेदारी को ध्यान में रखते हुए सावधानीपूर्वक विचार-विमर्श के बाद फैसला लिया गया।
दूतावास ने भारत में राजनयिक समर्थन की कमी का जिक्र किया और कहा कि काबुल में वैध कामकाजी सरकार का अभाव है। दूतावास को बंद करने की घोषणा के साथ अफगान दूतावास ने कर्मियों और संसाधनों की कमी जैसी चुनौतियों का हवाला दिया। इसमें कहा गया कि राजनयिकों का वीजा समय पर रिन्यू नहीं किया गया, जिसके कारण टीम में निराशा पैदा हुई। बयान में कहा गया कि अफगान नागरिकों के लिए आपातकालीन कांसुलर सेवाएं दूतावास को मेजबान देश को स्थानांतरित होने तक चालू रहेंगी।
दूतावास की ओर से यह बयान तब आया है जब अफगान दूतावास के राजदूत और अन्य वरिष्ठ राजनयिक भारत छोड़कर यूरोप और अमेरिका चले गए, जहां उन्होंने शरण ली। अधिकारियों ने कहा कि पांच अफगान राजनयिकों ने देश छोड़ा। दूतावास ने कहा कि उन्होंने विदेश मंत्रालय को पहले नई दिल्ली में परिचालन बंद करने के अपने फैसले से अवगत कराया गया था। इसके साथ सरकार से भारत में रहने, काम करने, अध्ययन करने, व्यापार करने और विभिन्न गतिविधियों में शामिल होने वाले अफगानों के हितों की रक्षा का आग्रह किया गया।