विजयलक्ष्मी सिंह | महाराष्ट्र
बेहोश बालक के शरीर पर ज्यों–ज्यों डॉक्टर की उंगलियां चल रहीं थीं, बच्चे में हो रही हलचल को देखकर मां की आंखों की चमक बढ़ती जा रही थी। बेटे के इलाज में पानी की तरह पैसा बहाने के बाद भी ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं थी, फिर डॉ परलकर ने तो फीस के रूप में एक रूपया भी नहीं लिया था। जाने ये चमत्कार परलकर जी के हाथों की मसाज का था या उस नि:स्वार्थ सेवाभाव का जो माधवराव जी की रगों में लहु की तरह बह रहा था। गम्भीर पैरालिसिस से ग्रस्त बालक 6 घंटे में ही उठकर बैठ गया। आज वही बालक मुंबई के सबसे प्रतिष्ठित चार्टेड़ एकाऊटेंट में से एक है।
सी.ए. कंचन नारंग जैसे कितने ही मरीजों व उनके परिजनों के लिए माधवरावजी ईश्वर का अवतार थे। डॉ परलकर संघ के ऐसे प्रचारक थे, जिनका जीवन सेवा की वो अविरल गंगोत्री है जिसने कितने ही रोगियों व उनके परिजनों के कष्ट हर लिए। मुंबई में इलाज कराने वाले गरीब रोगियों के लिए नाना पालकर रूग्ण सेवासदन एक वरदान है जिसकी स्थापना डॉ परलकर जी ने की थी।
बाल्यकाल से संघ के स्वयंसेवक माधवराव परलकर एक मेधावी छात्र थे। 1947 में आयुर्वेद में चिकित्सक डिग्री प्राप्त कर कुछ दिन क्लीनिक चलाने के बाद वे संघ के प्रचारक बन गए। उन दिनों वे बांद्रा से विरार व चैम्बुर साईकिल से प्रवास किया करते थे। अपनी वाकपुटता व आकर्षक व्यक्तित्व के धनी परलकर जी युवाओं में बेहद लोकप्रिय थे। आप कई वर्ष विद्यार्थी परिषद के अखिल भारतीय संगठन मंत्री रहे। किंतु उनके मन में मरीजों के लिए सेवाभाव देखकर तत्कालीन सरसंघचालक परम् पूज्य श्री गोळवलकर गुरुजी ने डॉ परलकर को गरीब मरीजों एवं उनके परिजनों को रहने व खाने की सुविधा के लिए एक सेवासदन स्थापित करने की जिम्मेदारी दी।
कैंसर एवं टी.बी. जैसी गंभीर बीमारियों का ईलाज मंहगा व लंबा होता है। मरीज को तो हॉस्पीटल में ही खाना मिल जाता है। किंतु परिजनों के पास इस महानगर में रहने व खाने का खर्च उठाना बहुत मुश्किल होता है। आज टाटा मेमोरियल कैंसर हास्पीटल से आधा किलोमीटर दूरी पर बना दस मंजिला भवन नाना पालकर स्मृति रूग्ण सेवासदन सैकडों मरीजो के लिए घर व परिजनों की भूमिका निभाता है। 10 रू में भोजन व 1 माह तक नि:शुल्क रहने की सुविधा इन परिवारों के लिए बहुत बड़ा सहारा है। अपने अनवरत परिश्रम व नि:श्छ्ल सेवाभाव के बल पर ईंट से ईंट जोड़कर परलकर जी ने इस सेवासदन को खड़ा किया है।
परलकर जी ने समाज के हर वर्ग से सहयोग लिया सामान्य स्वयंसेवक परिवारों से सालाना 500 रूपये लिए तो बिरला फाउंडेशन के मालिक आदित्य बिरला से 75 लाख की लिथोट्रेस्पी मशीन दान में ली। वहीं डॉ अजीत फड़के को अपने हास्पीटल में रखने व गरीब मरीजों के लेजर आपरेशन फ्री में करने के लिए राजी कर लिया। परलकर जी की अथक मेहनत से शुरू हुए गोखले डायलिसिस सेंटर में आज 14 मशीनों पर कई शिफ्टों में गरीब मरीजों को निःशुल्क डायलिसिस सुविधा दी जाती है। सेवासदन के ट्रस्टी व परलकर जी के सहयोगी रहे विवेक छत्रे की मानें तो मुंबई के मेडिकल तबके में परलकर जी सबसे प्रतिष्ठित लोगो मे से एक थे। उनके इस अप्रतिम सेवाभाव के चलते मुंबई हास्पीटल के डीन गोयल से लेकर सारे बडे डॉक्टर धोती कुर्ता पहने इस साधारण से आयुर्वेदिक डॅा की हर तरह से मदद करने को तैयार रहते थे।
माधवरावजी के अथक प्रयासों से शुरू हुए गोखले डायलिसिस सेंटर में आज माधवराव जी ने अपने जीवन के एक-एक पल का उपयोग समाज के हित में किया था। आपातकाल में जेल में रहते हुए कैदियों के लिए योग सिखाया एवं मसाज की अद्भुत कला से सैकडों रोगियों को बिना पैसे लिए ठीक किया। 22 फरवरी 2008 में 81 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस लेने से पहले वे नाना पालकर स्मृति संस्थान को सात मंजिल तक बनवा चुके थे।