विजयलक्ष्मी सिंह | यमगरवाड़ी | महाराष्ट्र
हनुमान मंदिर की चौखट पर अपने दो छोटे भाई बहनों के साथ आज की सर्द रात भी रेखा शायद बिना कंबल के ठिठुरते हुए भूखे –पेट गुजार देती, यदि उसे लेने… कुछ भले लोग न पहुँचे होते। महाराष्ट्र के नाँदेड़ जिले में किनवट के नजदीक एक छोटा सा गाँव है पाटोदा…. जहाँ रेखा अपने माता-पिता के साथ रहती थी। पारधी जनजाति के इस परिवार का पेशा ही चोरी डकैती या लूटपाट था… पारधी ही क्यों डोंबरी कोलहाटी, गोंधी महाराष्ट्र की ये घुमंतु जनजातियाँ समाज में गुनहगार मानी जाती हैं। शायद इसीलिए, जब रेखा के माता-पिता नहीं रहे तो इन बच्चों को अपनाने के लिए न रिश्तेदार राजी हुए, न हीं समाज इनकी मदद के लिए आगे आया।
पर आज सबकुछ बदल गया है, कभी चेस में राज्य स्तर पर चैंपियन रही रेखा, आज बंबई के फोर्टिज अस्पताल में जाँब कर रही है, व उसके छोटे भाई अर्जुन के 10 वी में 85 परसेंट मार्कस आए हैं। रेखा व अर्जुन की तरह 350 बच्चे… भटके विमुक्त विकास परिषद के स्कूल में पढ़कर पढ़ाई, गेम्स एक्टिंग हर फील्ड में बहुत अच्छा कर रहे हैं।
गत 25 सालों से परिषद के कार्यकर्ता इन बंजारा जाति के बच्चों पर मेहनत कर रहे हैं। संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता व पूर्व प्रचारक गिरीश प्रभुणे के प्रयासों से 23 अगस्त 1993 में यमगरवाड़ी में कुँए के पास पेड़ काटकर खड़ी की गई झोपड़ी में 6 बच्चों के साथ इस होस्टल की शुरूआत हुई। समाज के सहयोग व महादेव गायकवाड, चंद्रकांत गडेकर व रावसाहेब कुलकर्णी जैसे कार्यकर्ताओं की मेहनत रंग लाई, व आज संस्था के पास एक अपना एक बड़ा होस्टल ही नहीं एक शानदार स्कूल है जहाँ बच्चों को पढ़ाई के साथ प्रोफेशनल ट्रेनिंग भी दी जाती है।