हिमाचल के मेडिकल कालेजों में रैगिंग पर कड़ा कानून न होने पर छात्रों की हिम्मत बढ़ी
हिमाचल के मेडिकल कालेजों में रैगिंग का रोग बढ़ता जा रहा है। सख्त कानून लागू करने के बावजूद भी मेडिकल कालेज दिन-प्रतिदिन इस बीमारी की चपेट में आते जा रहे है। दुर्भाग्यवश न तो संबंधित प्रशासन और न ही छात्र इसे रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठा रहे हैं। एक महीने के अंदर राज्य के तीन प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में जमकर रैगिंग हुई, लेकिन इसके खिलाफ कोई बड़ा कदम नहीं उठाया गया है। अगर सीनियर छात्रों के होंसले ऐसे ही बुलंद होते गए, तो आने वाला समय कठिनाई भरा हो सकता है । खासकर टांडा मेडिकल कालेज जो अमन काचरू रैगिंग प्रकरण की आग में खुद को झुलसा चुका है।
मार्च 2009 में एमबीबीएस प्रथम वर्ष के छात्र अमन काचरू को रैगिंग के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी थी। उसके बाद देश भर में नए कानून बने और ऐसा लगा था कि अब रैगिंग का रोग नष्ट हो जाऐगा लेकिन, हिमाचल में अब तक रैगिंग की तीन घटनाएं घट चुकी है। 11 अगस्त का मामला छह सितंबर को आईआईटी मंडी में उजागर हुआ था। 15 सितंबर को मेडिकल कालेज नेरचौक तथा 16 सितंबर को टीएमसी तीसरी घटना घटी। क्या प्रदेश सरकार भी रैगिंग के प्रति गंभीर है या नहीं? एमबीबीएस डाक्टरों को भी भविष्य का कोई खौफ नहीं है, जो कि अपने मां-बाप की जीवन भर की पूंजी की भी परवाह नहीं कर रहे।
2009 में अमन काचरू की घटना से टांडा मेडिकल कालेज सहित अन्य कालेजों ने क्या सीख ली। टीएमसी तथा एसएलबीएस राजकीय मेडिकल कालेज नेरचौक मंडी में हुई इस रैगिंग की घटनाओं ने शांतप्रिय हिमाचल को फिर अशान्तिपूर्ण कर दिया है।
अति प्रतिष्ठत शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग के मामले लगातार आ रहे हैं पर न तो प्रदेश सरकार और न ही संबंधित संस्थानों के प्रशासन पर कोई असर हो रहा है। अनुशासहीन छात्र बेलगाम हो रहे हैं और जिन अफसरों पर रैगिंग रोकने की जिम्मेदारी है वे अपनी सुस्ती जगजाहिर कर रह हैं। अगर ऐसे ही हालत रहे तो हिमाचल राष्ट्रीय स्तर पर फिर बदनाम हो जाएगा।
अभी हाल ही में देश की बड़ी आईआईटी मंडी में रैगिंग की घटना घटी थी। इसके बाद हिमाचल के एसएलबीएस राजकीय मेडिकल कालेज नेरचौक मंडी में 2022 बैच के छह डाक्टरों के द्वारा 2023 के नए प्रशिक्षु डाक्टरों के साथ रैगिंग करने पर 25 हजार रुपए के जुर्माने के साथ छह महीने के लिए होस्टल से तथा तीन महीनों के लिए कक्षाओं से निष्कासित किया है। वर्ष 2009 में हिमाचल सरकार ने एक आदेश जारी किए थे कि रैगिंग के आरोपियों को 50 हजार रुपए का जुर्माना व तीन साल की जेल की सजा दी जाएगी। लेकिन सवाल यह है कि इस तरह की रैगिंग की घटनाओं को जिम्मेदार कौन है।
टांडा मेडिकल कालेज में 7 मार्च, 2009 को हुई रैगिंग की घटना ने पूरे भारत को झकझोर कर रख दिया था। इस रैगिंग की घटना में 19 वर्षीय प्रशिक्षु डाक्टर अमन काचरू गंभीर चोटों के बाद काल के ग्रास में समा गया था। आज भी अमन काचरू के परिजनों के आंसू इस घटना को याद कर छलक पड़ते है । अमन काचरू के पिता राजेंद्र काचरू को इस घटना के बाद गहरा आघात लगा था और उन्होंने 2009 में एंटी रैगिंग कैंपेन के लिए इसे बड़ा सेटबैक बताया था और कुछ सवाल भी उठाए थे कि एंटी रैगिंग कैंपेन के अंतर्गत युवाओं का भविष्य क्या सुरक्षित है। हालांकि अमन काचरू के चार दोषियों को चार की सजा दी गई थी परंतु क्या रैगिंग करने वाले व सहने वाले युवाओं का भविष्य सुरक्षित है।