विजयलक्ष्मी सिंह | तमिलनाडू
वे सभी अनपढ़ थे, अपने बच्चों को भी अपने साथ दिनभर इसी काम में लगाए रखना उनकी मजबूरी थी। पूरा परिवार काम करता था तब जाकर कहीं इनको दो जून की रोटी नसीब हो पाती थी। विडंबना ये थी कि सिल्क वीविंग जैसे महीन काम में दिनभर लगे रहने के बाद जब मजदूरी लेने की बारी आती, तो ये बुनकर अकसर ठगे जाते। जिन्हें हस्ताक्षर करना भी नहीं आता था, वो भला आमदनी का हिसाब–किताब कैसे रखते? कांचीपुरम के बुनकर समाज में पीढ़ियों से यही होता आ रहा था।अशिक्षा ने इनके विकास के सारे दरवाजे बंद कर रखे थे। ये दरवाजे तब खुले जब इनके बीच थिरूवल्लवुर रात्रि पाठशाला शुरू हुई। 1981 में जब संघ के सेवाविभाग की रचना भी नहीं हुई थी, तब तमिलनाडु में काँचीपुरम के विभागप्रचारक धनुषजी के प्रयासों से बुनकर समाज के लिए शाम 6.30 बजे से 9.30 तक नाईटक्लासेस शुरू की गईं। लगातार 35 साल चली इन कक्षाओं से इन परिवारों के 4000 बुनकरों को पढ़ने व बढ़ने में मदद की। इतना ही नहीं स्वयंसेवकों के इस अक्षरा अभियान से प्रेरित होकर तमिलनाडू सरकार ने भी इन बस्तियों के लिए 33 रात्रि पाठशालाएं शुरू की।
चिन्ना कांचीपुरम में रहनेवाले प्रकाश को आज भी वो दिन याद है जब वे पहली बार इन नाईट क्लासेस में आए थे। 11 बरस के प्रकाश अपने दोनों भाईयों रमेश व बालाजी के साथ यहां पढ़ने आते थे। इस रात्रि पाठशाला में आने से पहले तक ये तीनों भाई उस दिन तक कभी स्कूल नहीं गए थे। इन कक्षाओं में वहाँ के शाखा कार्यवाह मूर्तिजी तमिल, अंग्रेजी व गणित ये तीन विषय पढ़ाते थे, साथ ही गीत–प्रर्थना मंत्र व कभी–कभी मॉरल स्टोरीस भी सुनाई जाती थी। अपने जीवन के 20 अनमोल वर्ष मूर्तिजी ने इस काम के लिए दिए। उन जैसे स्वयंसेवकों की तपस्या का ही फल है कि आज यहां का बुनकर समाज हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है। प्रकाश व उनका पूरा परिवार बिजनेस में ही नहीं जीवन के हर क्षेत्र में अब आगे बढ़ चुका है ।पहले जहां वो दूसरों के लिए बुनते थे, अब वे खुद मालिक हैं व अपने व्यवसाय से प्रतिमाह 30 से 35 हजार रूपए कमा लेते हैं। प्रकाश राधाकृष्णम अब संघ में उत्तर तमिलनाडू प्रांत के प्रांत सहसेवाप्रमुख की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहे हैं। वे मानते हैं कि, इस छोटे से सेवाकार्य ने सैकड़ों परिवारों का जीवन बदल दिया।
चैन्नई से महज 72 किलोमीटर दूर इस नगर में में जब इस अक्षरा अभियान की शुरूआत हुई तब इस इलाके का लिट्रेसी रेट महज 15 प्रतिशत था यानी यहाँ की 85 प्रतिशत जनसंख्या साक्षर भी नहीं थी। आज यहाँ 60 प्रतिशत लोग साक्षर हैं। इस अभियान के समय तमिलनाडू के प्रांत सेवाप्रमुख रहे व वर्तमान में संघ के अखिल भारतीय अधिकारी सुंदरलक्ष्मण जी की मानें तो अब यहाँ के बुनकर समाज की दूसरी पीढ़ी में तो अब कई युवक ग्रेजुएट हो गए हैं। वे इस बात पर खुशी जताते हैं कि अब ये लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजने लगे हैं ।
संपर्क : प्रकाश राधाकृष्णनन
संपर्क नंबर : 094440 87778