“तुम मुझे खून दो, मैं तुझे आज़ादी दूँगा” का जयघोष कर देश की आज़ादी के लिए आज़ाद हिंद फौज का गठन वाले क्रांतिकारी नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने युवा शक्ति को संगठित कर किए संघर्ष ने आज़ादी आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान डाला। मेजर दुर्गा मल्ल आजाद हिन्द फौज के प्रथम गोरखा सैनिक थे जिन्होने भारत की स्वतन्त्रता के लिये अपने प्राणों की आहुति दी। शहीद दुर्गा मल्ल का जन्म उत्तर प्रदेश के देहरादून (अब उत्तरांचल) जिले में डोईवाला नामक गांव में 1जुलाई 1913 में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री गंगाराम मल्ल ,जो गोरखा राइफल्स में नायब सूबेदार थे और माता का नाम श्रीमती पार्वती देवी मल्ल था। दुर्गा मल्ल बाल्यकाल से ही गांव के अन्य लड़कों से भिन्न दिखाई देते थे। वे माता-पिता के आज्ञाकारी, पढ़ने और खेलकूद के शौकीन थे। इन्होने गोरखा मिलिटरी मिडिल स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा हासिल की, जिसे अब गोरखा मिलिट्री इंटर कॉलेज के नाम से जाना जाता है।
इन्हें अपने गोरखा समाज की दुर्दशा देखकर दु:ख होता था। उन दिनों गोरखा समाज की स्थिति ठीक नहीं थी। दुर्गा मल्ल विद्यार्थी जीवन से ही पराधीन भारत के प्रति व्यथित रहते थे। अत: विद्यार्थी जीवन में ही स्वाधीनता संग्राम में शामिल हो गए थे। उनके आदर्श थे ठाकुर चन्दन सिंह, वीर खड्ग बहादुर सिंह बिष्ट, पंडित ईश्वरनन्द गोरखा, अमर सिंह थापा इत्यादि। उन पर गांधीवादी स्वतंत्रता संग्रामियों का भी प्रभाव था। गोरी सरकार का दमनचक्र स्वतंत्रता संग्रामियों पर तेजी से होने लगा था। अत: सभी आंदोलनकर्ता पुलिस की आंखों में धूल झोंककर देहरादून छोड़कर अन्य स्थानों पर चले गए।
दुर्गा मल्ल भी अपने रिश्तेदार के यहां धर्मशाला चले गए, इस कारण दुर्गा मल्ल की पढ़ाई छूट गई। कुछ समय पश्चात् वे 1931 में 18 वर्ष की आयु
में स्थानीय पलटन 2/1 गोरखा राइफल्स में भर्ती हो गए। उन्हें संकेत प्रशिक्षण के लिए महाराष्ट्र भेज दिया ही गया। लगभग 10 वर्ष तक सेना में सेवारत रहने के पश्चात् जनवरी, 1941 में युद्ध के लिए विदेश जाने से पूर्व अपने घरवालों से विदा लेने धर्मशाला गए, और वहीं (धर्मशाला) ठाकुर परिवार की कन्या शारदा देवी के साथ उनका विवाह हो गया। अप्रैल 1941 में दुर्गा मल्ल की टुकड़ी सिकन्दराबाद पहुंची जहां से उसे आगे विदेश रवाना होना था। 2/1 गोरखा बटालियन के अतिरिक्त अन्य गोरखा बटालियनें भी सिंगापुर पहुंच चुकी थीं। वहीं ठकुरि परिवार की अपने सैनिक धर्म को निभाते हुए 23 अगस्त 1941 को बटालियन के साथ मलाया रवाना हुए। दिसम्बर 1941 में जापानियों ने दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र में तैनात मित्र सेना पर हमला करके युद्ध की घोषणा कर दी।
8 दिसंबर 1941 को मित्र देशों पर जापान के आक्रमण के बाद युद्ध की घोषणा हो गई थी। इसके परिणामस्वरूप जापान की मदद से 1 सितम्बर 1942 को सिंगापुर में आजाद हिन्द फौज का गठन हुआ। भारत को आजाद कराने के आह्वान पर दुर्गा मल्ल भी आजाद हिन्द फौज में शामिल हो गए। जिसमें दुर्गा मल्ल की बहुत सराहनीय भूमिका थी। जिसमें तीन प्रमुख गोरखा बटालियनों की भूमिका रही थी। आजाद हिन्द फौज में पन्द्रह हजार अधिकारी और सिपाही थे। इसके लिए मल्ल को मेजर के रूप में पदोन्नत किया गया। इनकी कार्य कुशलता देखकर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने दुर्गा मल्ल को गुप्तचर विभाग का कार्य भार सौंपकर कप्तान बनाया। बाद में उन्हें विशेष अभियान के लिए भारत-बर्मा सीमा पर नियुक्त किया। मणिपुर के उखरूल नामक स्थान पर 27 मार्च, 1944 के दिन मेजर दुर्गा मल्ल शत्रु के घेरे में फंस गए। 15 अगस्त 1944 को उन्हें लाल किले की सेंट्रल जेल लाया गया और युद्धबन्दी के रूप में बन्दीगृह में रखा गया। युद्धबंदी बनाने और मुकदमे के बाद इन्हें बहुत यातना दी गई। इनके विरुद्ध सैनिक अदालत में मुकदमा चलाया गया। 25 अगस्त, 1944 को दुर्गा मल्ल को फांसी दी गई। और इस तरह उन्हें आजाद हिन्द फौज के प्रथम शहीद होने का गौरव प्राप्त हआ।