शैलजा शुक्ला | हिमाचल | हिमाचल प्रदेश
पर्वतीय क्षेत्रों में कुछ दिन सैरसपाटा करने आए पर्यटकों के लिए बर्फ़बारी जहाँ अलौकिक आनंद सरीखा है, वहीं इन हॉट टूरिस्ट्-डेस्टिनेशन्स से थोड़ा दूर अनाम से पर्वतीय इलाकों में रहने वाले ग्रामीणों के लिए बर्फबारी एक ऐसा संकट है, जो उन्हें तमाम लौकिक साधन-संसाधनों से वंचित कर देता है। हिमाचल प्रदेश के पांगी और व्यारा दो ऐसे ही गांव हैं, जिनका संपर्क वर्ष में नौ महीने भारी हिमपात के चलते बाकी दुनिया से कटा रहता है। पांगी चम्बा जिले से 20 मील दूर है, तो व्यारा शिमला से 50 कोस दूर है। न तो यहाँ टूरिस्ट आते हैं और न ही स्थानीय प्रशासन को यहां की कोई फिक्र होती है।
भारी हिमपात वाले इन इलाकों में शिक्षा, चिकित्सा, व रोज़गार की उपलब्धता किस तरह से बरसों पुरानी निष्ठुर बर्फ की मोटी परत के नीचे दबकर जड़ हो चुकी है, इसे यहीं के दो किशोरों पांगी गांव के बजीरुराम व व्यारा के आदर्श से बेहतर और कौन जान सकता है। इन दोनों ने तब तक स्कूल का मुंह तक नहीं देखा था, जब तक हिमाचल सेवाभारती द्वारा इस क्षेत्र में 2012 में विवेकानंद छात्रावास स्थापित नहीं किया गया। इससे पूर्व इनके जीवन में नाउम्मीदी की ठिठरन के सिवा कुछ न था। छात्रावास में आने के पश्चात दोनों के सपनों को पंख लग गए। बजीरुराम ने इन्टर में 90% अंक प्राप्त किये, आज ये दोनों किशोर ग्रेजुएशन कर रहे हैं। नज़दीकी लुधबाड़ा गाँव की रिम्पी और उसकी छोटी बहिन के माता-पिता की अकाल मृत्यु हो गयी। इन अनाथ बहिनों की जानकारी जब सेवाभारती नगर अध्यक्ष विनोद अग्रवाल और अशोक जी को हुई, तो इनके प्रयासों से सेवाभारती ने इन बालिकाओं को गोद ले लिया। आज ये दोनों पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हैं। इंसान को पंगु बना कर रख देनें वाले फिजिकल डिस्ट्राफी जैसे भयानक रोग से जूझ रही इसी इलाके की पवना और उसके चार बच्चों की दयनीय स्थिति देख सेवाभारती के कार्यकर्त्ता डॉ तिलकराज और जोगिन्दर सिंह राणा नें इस रोगग्रस्त दुखयारी माँ का इलाज डाक्टर राजेंद्रप्रसाद मेडिकल कॉलेज में करवाया।
सन् 1998 में पास ही स्थित कांगड़ा में एक भयंकर बस दुर्घटना हुई। घायलों को समय से उचित चिकित्सीय सुविधाएं उपलब्ध न होने से मानवीय जीवन की जो दर्दनाक हानि हुई, उससे उपजी पीड़ा ने कांगड़ा सेवाभारती को इस ओर सोचने पर मजबूर कर दिया। वर्ष 2005 आते-आते तत्कालीन स्थानीय सेवाभारती अध्यक्ष रामसुख गुप्त जी के प्रयासों से सेवाभारती ने अपनी दो एम्बुलेंस खरीद लीं, जो आज ऑक्सीजन सिलेंडरों से लैस हो चुकीं हैं। आप यदि कभी मेडिकल कॉलेज जाएँ तो ‘May I Help You’ के बैनर तले सेवा भारती के कार्यकर्ता आपकी हर सहायता करने के लिए मौजूद मिलेंगे। यहां प्रतिदिन सुबह मरीजों को 2 ब्रेड के साथ 1 कप चाय वितरित होती है। तीमारदारों के लिए मुफ्त में गद्दे-कम्बल भी उपलब्ध हैं और मरीजों के लिए व्हीलचेयर व बैसाखियाँ भी। इन पर्वतीय इलाकों में सेवाभारती के सेवावृतियों के सेवा समर्पण को यदि मानवीय संवेदना के धरातल पर समझना हो, तो क्रोशियाई पर्यटक जोरिका काहा (JORICA KAHA) के उदाहरण से समझा जा सकता है। वह हिमालय दर्शन के लिए यहाँ आए थे और अचानक धर्मशाला में बीमार पड़ गए। सेवाभारती कार्यकर्ताओं की सेवा उन्हें बचा तो न सकी परंतु पूरे सम्मान के साथ न सिर्फ उनका अंतिम संस्कार किया गया बल्कि उनकी अस्थियाँ भी क्रोऐशियाई दूतावास के अधिकारियों को सौंपी गई।
सेवाभारती व्यापक स्तर पर इन दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों संस्कार केंद्र और सिलाई केंद्र चलाकर यहां शिक्षा और रोजगार पर ज़मीं बर्फ को तेजी से हटा रहा है। सेवाभाव की अविरल शक्ति ने पहाड़ी जीवन पर जमी निष्ठुर बर्फ के भी पसीने छुड़ा दिए हैं। सेवावर्तियों के सेवा संकल्प की उष्मा से यहाँ के लोगों का जीवन भी शेष संसार के साथ कदमताल करने की स्थिति में आ खड़ा हुआ है।
सेवा भारती अध्यक्ष
विनोद अग्रवाल जी
9816043398