विजयलक्ष्मी सिंह | हरिद्वार | उत्तराखंड
हरिद्वार के चंडी घाट पर गंगा स्नान करने आए लाखों श्रद्धालुओं में एक युवक ऐसा भी था जिसने अलकनंदा की आंखों में आंसू देखे । मां गंगा की ये पीड़ा उसके घाट पर भीख मांग कर जीवन गुजारा करने वाले कुष्ठ रोगियों के लिए थी। टेढ़ा – मेढा शरीर, घावों से गिरता मवाद व उस पर भिनभिनाती मक्खियां, जीते जी नरक भोग रहे इन अभिशप्त रोगियों की पीड़ा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इस युवा प्रचारक से देखी नहीं गई। अक्टूबर 1996 को रात्रि विश्राम के लिए आशीष गौतम हरिद्वार के जिस चंडी घाट पर रुके वही उनका कर्मक्षेत्र बन गया। घाट के समीप कुष्ठ रोगियो़ की बस्ती थी। इनमें से किसी का हाथ गलकर टूट चुका था तो किसी का पैर।
आठ रोगी ऐसे भी थे जिनको दिखाई नहीं देता था, किंतु जब उन्होंने इनका इलाज कराया तो इनमें से सात की रोशनी वापस आ गई। इसे प्रभु का संकेत मान आज से 22 वर्ष पहले 12 जनवरी 1997 को संजय चतुर्वेदी, प्रशांत खरे, विश्वास शर्मा एवं अर्पित सहित आशीष जी ने आठ युवा स्वयंसेवक साथियों के साथ मिलकर कुष्ठ रोगियों के लिए पाँच सौ रुपए में खरीदी एक झोपड़ी में दिव्य प्रेम सेवा मिशन की नींव रखी। शुरुआत में इसी झोपड़ी में रहकर कुष्ठ रोगियों की मरहम पट्टी करने से यह कार्य शुरू हुआ।
विगत् 22 वर्षों में हजारों कुष्ठ रोगियों के इलाज व उनके सैकड़ों बच्चों के उज्जवल भविष्य की नींव रखी इस संस्थान ने। आज कुष्ठ रोगियों के स्वस्थ बच्चों के लिए 300 से अधिक छात्रों की क्षमता वाला छात्रावास, वन्देमातरम् कुंज हो या फिर इनकी पढ़ाई के लिए स्थापित किया गया माधवराव देवले शिक्षा मंदिर यह सारा कार्य बगैर सरकारी सहायता से चल रहा है। यहीं से पढ़कर हिमांशु जैसा छात्र आज एस.एस.आर. मेडिकल कॉलेज मॉरीशस से एम.बी.बी.एस कर रहा है। यह कहानी शुरू होती नेवादा से उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के इस छोटे से कस्बे में 22 अक्टूबर 1962 में जन्मे श्री आशीष गौतम से। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में एम.ए., एल.एल.बी करने के बाद संघ के प्रचारक बन गए।
1988 से 1997 तक 8 वर्षों तक प्रचारक रहने के बाद वे ईश्वर की तलाश में हिमालय की कंदराओं में निकल गए। उसी दौरान गंगोत्री में उनसे मिलने पहुंचे उनके कुछ युवा स्वयंसेवक साथियों को हरिद्वार छोड़ने आए आशीष गौतम चंडी घाट की एक धर्मशाला में रुके व यहीं से उनके जीवन की दिशा बदल गई। नर सेवा को नारायण सेवा मान उन्होंने इन्हीं कुष्ठ रोगियों में ईश्वर को देखा व अपना जीवन इसी कार्य के लिए समर्पित कर दिया। यह वह दौर था जब लोग यह मानते थे कि कुष्ठ रोग छूने से फैलता है। समाज न तो इन रोगियों को स्वीकार करता था और ना ही उनके बच्चों को। मजबूरन रोगी अपने बच्चों को ईसाई मिशनरियों को सौंप देते थे जिसे वे कहते थे कि हमने अपने बच्चे को जमा कर दिया। किंतु इन बच्चों को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी मिशनरियों ने भी नहीं उठाई ऐसे में 15 बच्चों के साथ वन्दे मातरम् कुंज की स्थापना की गई।
इन 23 वर्षों में सैकड़ों बच्चे यहां से शिक्षित व संस्कारित होकर अपने उज्जवल भविष्य की नींव रख चुके हैं। दिव्य प्रेम सेवा मिशन के संयोजक संजय चतुर्वेदी बताते हैं कि- यहीं पला बढ़ा मनोहर आज विद्यालय के कंप्यूटर सेक्शन का इंचार्ज है। यहां बच्चों को शिक्षा व संस्कार के साथ देश का अच्छा नागरिक बनने की प्रेरणा भी दी जाती है। कुष्ठ रोगियों के लिए शुरू किये गए समिधा सेवार्थ चिकित्सालय में अब सामान्य गरीब मरीजों का इलाज भी नि:शुल्क होता है जहां नगर के जाने-माने चिकित्सक सेवाएं देते हैं। इतना ही नहीं; महात्मा गांधी राष्ट्रीय सम्मान समेत 23 पुरस्कारों से सम्मानित दिव्य प्रेम मिशन द्वारा कुष्ठ रोगी महिलाओं के साथ साथ अन्य निर्धन परिवारों की महिलाओं को भी रोजगार परक प्रशिक्षण देकर स्वावलंबी बनाया जा रहा है। सेवा को अपना सौभाग्य मानने वाले आशीष कहते हैं कि- हमारी सबसे बड़ी सफलता यह है कि कुष्ठ रोगियों के इन बच्चों को समाज ने स्वीकार कर लिया है। वंदेमातरम् कुंज में हरिद्वार के संभ्रांत परिवारों के लोग अपने बच्चों का जन्मदिन मनाते हैं।
संकलनकर्ता संपर्क :- संजय चतुर्वेदी
पारितोष बंगवाल 98370 88910