रश्मि दाधीच | औरंगाबाद | महाराष्ट्र
औरंगाबाद के पास एक छोटे से गांव खामखेडा में 65 वर्ष की भामा आजी की आंखें भर आई जब आज पहली बार वह सरकारी कागजों पर अंगूठे की जगह अपनी कलम से हस्ताक्षर कर रही थी। बरसों से अपने गांव को जानती है पर आज बस पर लिखे अपने गांव के नाम “खामखेडा “” को जोर जोर से पढ़कर सभी गांव वालों को ये बता रही थीं कि अब उन्हें पढ़ना लिखना आता है।शायद उन्हें अब भी विश्वास नहीं हो रहा था कि वह पढ़ना सीख चुकी है।तो वहीं दूसरी ओर औरंगाबाद के इंदिरा नगर की रहने वाली आशा जब शराबी पति के कारण दाने-दाने को मजबूर थी व हालात सुधरने की उम्मीद छोड़ चुकी थी