भागवत राम की तपोस्थली चित्रकूट में भगवान महादेव की महिमा अपरम्पार है. तीर्थों के तीर्थ प्रभु राम की तपोस्थली चित्रकूट के राजा भगवान शिव को माना जाता है. प्रभु राम ने उनकी आज्ञा के बाद ही चित्रकूट में निवास किया था. मंदाकिनी नदी के रामघाट पर महाराजाधिराज मत्यगजेंद्र नाथ का भव्य मंदिर बना हुआ है. जहां पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु जल चढ़ाने आते हैं.
महाराजाधिराज मत्यगजेंद्र नाथ के नाम से प्रसिद्ध भगवान शिव के मंदिर में स्थापित शिवलिंग की बहुत मान्यताएं हैं. मंदिर में चार शिवलिंग स्थापित हैं, जिनका बहुत महत्व माना जाता है. माना जाता है कि यहां पर ब्रह्मा जी ने स्वयं शिवलिंग की स्थापना की थी. मान्यता यह भी है कि सावन के महीने में इस मंदिर में जल चढ़ाने से मनचाहा वरदान प्राप्त होता है.
मान्यता के अनुसार सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी को पता था कि चित्रकूट में प्रभु राम पहुंचकर इस धरती को शुद्ध करेंगे. क्योंकि चित्रकूट में सबसे ज्यादा राक्षसों का राज सतयुग में और त्रेता युग में था, इसीलिए चित्रकूट के यज्ञ वेदी मंदिर में ब्रह्मा जी ने 108 कुंड बनाकर हवन किया था.
तब जाकर चित्रकूट की धरती शुद्ध हुई. जिसके बाद स्वयं ब्रह्मा जी ने चित्रकूट के राजा मत्यगजेंद्र नाथ को घोषित किया और शिवलिंग की स्थापना इस मंदिर में कर दी थी. जिसपर लोग सावन के महीने में बम बम भोले के जयकारे के साथ जल चढ़ाने आते हैं. यदि आप इस स्थान में जल नहीं चढ़ाते तो आपकी यात्रा अधूरी मानी जाती है.
मान्यता के अनुसार जब चित्रकूट का वनवास हुआ था तब भगवान श्री राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को चित्रकूट के राजा मत्यगजेंद्र नाथ के पास भेजा और चित्रकूट में रहने के लिए स्थान पूछा, तब भोलेनाथ ने बताया सिर्फ लक्ष्मण जी को उंगली हिलाकर गायब हो गए. जब छोटे भाई लक्ष्मण ने प्रभु राम को इस बारे में बताया कि चित्रकूट के राजा मत्यगजेंद्र जी सिर्फ उंगली घुमा कर चले गए हैं. तब प्रभु राम ने बताया कि उन्होंने इशारा कर दिया कि चित्रकूट में कहीं भी निवास कर सकते हैं, तभी भगवान श्री राम ने अपना वनवास चित्रकूट में काटा था.