जापान में मार्च 2011 में आए भीषण भूकंप और सुनामी से लगभग तबाह हुए फुकुशिमा दायची परमाणु संयंत्र से संशोधित रेडियोएक्टिव जल को प्रशांत महासागर में छोड़ने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई. जापानी समाचार पत्र के रिपोर्ट के अनुसार, पहले दिन 2 लाख लीटर पानी छोड़ा जाएगा, उसके बाद रोजाना 4.60 लाख लीटर छोड़ा जाएगा. अगले 30 सालों तक 133 करोड़ लीटर रेडिएक्टिव पानी समुद्र में छोड़े जाने की प्लानिंग है.
परमाणु संयंत्र के नियंत्रण कक्ष से एक वीडियो जारी किया गया, जिसमें टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी (तेपको) के एक कर्मचारी को माउस का बटन दबा कर समुद्री जल के पंप को चालू करते दिखाया गया. मुख्य संचालक ने कहा,‘समुद्रीजल पंप “ए” चालू हो गया.’ तेपको ने बाद में पुष्टि की कि समुद्रीजल पंप को स्थानीय समयानुसार दोपहर 01 बजकर 03 मिनट पर चालू किया गया. तेपको ने कहा कि अतिरिक्त अपशिष्ट निकासी पंप को 20 मिनट के बाद प्रारंभ किया गया. संयंत्र के अधिकारियों ने बताया कि अब तक सब कुछ निर्बाध चल रहा है.
शोधित जल को समुद्र में छोड़ने की योजना का देश में और अन्य देशों से काफी विरोध का सामना करना पड़ा था. जापान के मछुआरा समुदाय ने इस योजना का यह कहते हुए विरोध किया था कि इससे ‘सीफूड’ की का बिजनेस काफी प्रभावित होगा. चीन और तथा दक्षिण कोरिया ने भी इस योजना पर शंका जताई थी. इसे राजनीतिक तथा राजनयिक मुद्दा बनाया था.
जापान की सरकार तथा तेपको का कहना है कि जल को छोड़ना इसलिए आवश्यक है ताकि स्थान को सुरक्षित बनाया जा सके और दुर्घटनावश जल का रिसाव होने की किसी भी घटना को रोका जा सके. उनका कहना है कि उपचारित करने से तथा इसे पतला करने से अपशिष्ट जल अंतरराष्ट्रीय मानकों से भी अधिक सुरक्षित हो जाएगा और पर्यावरण पर इसका प्रभाव नगण्य होगा.
एडिलेड विश्वविद्यालय में ‘सेंटर फॉर रेडिएशन रिसर्च, एजुकेशन, इनोवेशन’ के निदेशक टोनी हुकर ने कहा कि फुकुशिमा संयंत्र से छोड़ा गया पानी सुरक्षित है. उन्होंने कहा,‘यह निश्चित रूप से विश्व स्वास्थ्य संगठन के पेयजल दिशानिर्देशों से काफी कम है. लेकिन य