हिमाचल प्रदेश अर्थव्यवस्था के बुरे दौर से गुजर रहा है. इस बदहाल स्थिति के लिए राज्य की कांग्रेस सरकार की नीतियों और फैसलों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. अब सुक्खू सरकार अपने एक और फैसले के कारण विवादों में घिर गई है, जिसने न केवल धार्मिक भावनाओं को आहत किया है, बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मचा दी है.
यह फैसला है, चूड़धार मंदिर की पवित्र यात्रा पर श्रद्धालुओं और ट्रेकिंग करने वालों से टैक्स वसूलने का है. इस यात्रा के तहत सरकार ने श्रद्धालुओं के लिए अलग-अलग दरें तय की हैं. हालांकि, अब तक चूड़धार मंदिर में या ट्रेकिंग पर जाने वालों से कोई भी टैक्स नहीं लिया जाता था. ऐसा पहली बार हुआ है, जब हिमाचल प्रदेश में किसी हिंदू धार्मिक स्थल पर जाने के लिए लोगों को प्रवेश शुल्क देना पड़ेगा. यह फैसला चूड़धार वाइल्ड लाइफ सेंचुरी और ईडीसी (EDC) ने कुछ दिनों पहले बैठक करने के बाद लिया था.
क्या है चूड़धार यात्रा?
चूड़धार यात्रा, हिमाचल प्रदेश में स्थित चूड़धार पर्वत की चोटी पर शिरगुल महाराज मंदिर की एक धार्मिक यात्रा है. यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और स्थानीय लोगों के लिए बहुत महत्व रखता है. “चूड़धार” का अर्थ है “चूड़ियों वाली चोटी” और इसे “चुर चांदनी धार” (बर्फ की चूड़ियों वाली चोटी) के नाम से भी जाना जाता है. चूड़धार पर्वत शिवालिक पर्वतमाला की सबसे ऊंची चोटी है, जिसकी ऊंचाई लगभग 3,647 मीटर (11,965 फीट) है. यह सिरमौर और शिमला जिलों की सीमा पर स्थित है.
चूड़धार यात्रा की पौराणिक कथा और महत्व
चूड़धार यात्रा का पौराणिक महत्व भगवान शिव और उनके भक्त चूरू की कथा से जुड़ा हुआ है. स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, प्राचीनकाल में चूरू नामक भगवान शिव का एक परम भक्त अपने पुत्र के साथ चूड़धार पर्वत से गुजर रहा था. रास्ते में एक विशाल सांप उनके पीछे पड़ गया और उन्हें काटने की कोशिश करने लगा. अपने और अपने बेटे के प्राणों की रक्षा के लिए, चूरू ने भगवान शिव का स्मरण किया और उनसे प्रार्थना की. भक्त की पुकार सुनकर, भगवान शिव ने चमत्कार किया और एक विशाल पत्थर उस सांप के ऊपर गिर गया, जिससे वह मर गया. इस प्रकार, भगवान शिव ने अपने भक्त और उसके पुत्र के प्राणों की रक्षा की.
इस घटना के बाद से, भक्त चूरू की भक्ति और भगवान शिव की कृपा के प्रतीक के रूप में इस स्थान का नाम ‘चूड़धार’ पड़ा. यहां भगवान शिव की पूजा शिरगुल महाराज के रूप में की जाती है, जिन्हें सिरमौर और चौपाल क्षेत्र का देवता माना जाता है.
मंदिर के पास दो पवित्र जल के कुंड भी हैं, जिनके बारे में मान्यता है कि भगवान शिरगुल महाराज ने स्वयं मानसरोवर से लाए थे. इन कुंडों के जल को बहुत पवित्र माना जाता है और भक्तों का मानना है कि इनमें स्नान करने या इनका जल अपने सिर पर डालने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
महाभारत से भी है संबंध
कुछ किंवदंतियां चूड़धार को महाभारत काल से भी जोड़ती हैं. माना जाता है कि इस क्षेत्र में पांडवों ने भी कुछ समय बिताया था और यहां भगवान शिव की पूजा की थी. यह स्थान अपनी प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक महत्व के कारण सदियों से श्रद्धालुओं को आकर्षित करता रहा है.
क्या है पूरा मामला?
चूड़धार, भगवान शिरगुल महाराज का मंदिर है, जो सदियों से कई भक्तों की आस्था का केंद्र रहा है. हिमाचल सरकार के इस पवित्र स्थल पर पहली बार टैक्स लगाने के निर्णय ने राज्य में असंतोष और विरोध की लहर फैला दी है.
बता दें कि नई दरें चूड़धार की ईको डेवलपमेंट कमेटी द्वारा तय की गई हैं. शुल्क दरों की कुल 10 कैटेगरी निर्धारित हुई हैं. चूड़ाधार यात्रा पर जाने वाले सभी रास्तों पर गुमटियां (स्टॉल) बनाए जाएंगे. जिसमें कमेटी के 6 पंचायतों के युवा तैनात होंगे, जो टैक्स वसूलने का कार्य करेंगे. नौहराधार के रास्ते पर जमनाला और पुलवाहल के रास्ते में खड़ाच में गुमटियां बनाने का प्रस्ताव रखा गया है. इस यात्रा शुल्क का 75 प्रतिशत हिस्सा सरकार के खाते में जमा किया जाएगा. बाकी का 25 प्रतिशत नवयुवक मंडलों के युवाओं को मिलेगा. इस मामले पर चूड़धार वाइल्ड लाइफ के वन रेंज अधिकारी वीरेंद्र कुमार ने जानकारी दी कि टेंटिंग साइट से लिए जाने वाले टैक्स में से 60 प्रतिशत नवयुवक मंडल को मिलेगा और 40 प्रतिशत सरकार के खाते में जाएगा.
ईको डेवलपमेंट कमेटी चूड़धार द्वारा निर्धारित की गई शुल्क की दरें इस प्रकार हैं:
- हिमाचल के श्रद्धालु – 20 रुपये प्रति व्यक्ति
- गैर हिमाचली श्रद्धालु – 50 रुपये प्रति व्यक्ति
- विदेशी श्रद्धालु/यात्री – 200 रुपये प्रति व्यक्ति
- ट्रैकर/हाइकर्स – 100 रुपये
- कैमरा टैक्स– फोन कैमरे हटाकर बाकी कैमरों के लिए 50-100 रुपये
- मूवी/डाक्यूमेंट्री शूटिंग – 10,000-15,000 रुपये प्रतिदिन
- शादी की शूटिंग – 3,000 रुपये प्रतिदिन
- टेंटिंग टैक्स (भारतीय नागरिक) – 200, 300 और 400 रुपये प्रति टेंट
- टेंटिंग टैक्स (विदेशी नागरिक) – 500 रुपये प्रति टेंट/दिन
- खच्चर और घोड़े से यात्रा – 100 रुपये
हालांकि बता दें की सोलन, शिमला, और सिरमौर जिले के यात्रियों को स्वैच्छिक छूट दी गई है. इसके साथ-साथ चूड़धार यात्रा पर जाने वाली जातर (धार्मिक समूह यात्रा) से किसी भी प्रकार का कोई शुल्क नहीं वसूला जाएगा. शिरगुल महाराज के मंदिर में जाने वाले सामान, खच्चर-घोड़े और लोगों से भी कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा.
क्यों लगाया गया चूड़धार पर टैक्स?
चूड़धार, जहां भारी मात्रा में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं, अब यहां आने के लिए शुल्क देना हेगा. सरकार का तर्क है कि यह टैक्स पर्यावरण सुरक्षा और इस स्थान की स्वच्छता के उद्देश्य से लगाया गया है, और इससे स्थानीय युवाओं को रोजगार मिलेगा. हालांकि, श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों का मानना है कि यह एक धार्मिक यात्रा है, न कि कोई पर्यटन गतिविधि, जिस पर टैक्स लगाना उचित है. उनका कहना है कि यह उनकी धार्मिक भावनाओं का अनादर है.
विपक्ष ने की फैसले की निंदा
इस मुद्दे को लेकर विपक्षी दल भाजपा ने मुख्यमंत्री सुक्खू पर आरोप लगाया कि सीएम कभी हिंदू विरोधी बयान देते हैं, तो कभी हिंदुओं के खिलाफ कोई न कोई योजना ले आते हैं.
बीजेपी प्रवक्ता प्रेम शुक्ला ने भी इस मामले पर प्रतिक्रिया देते कहा कि ‘चूड़धार मंदिर में शिरगुल महाराज वहां के लोगों के ईष्ट हैं. चूड़धार में सोलन, शिमला, सिरमौर उत्तराखंड और आस पास के क्षेत्रों के लोग दर्शन के लिए जाते हैं. शिरगुल महाराज के दर्शन करने वाले दर्शनार्थियों पर सुक्खू सरकार ने टैक्स लगा दिया है. औरंगजेब तो सिर्फ भक्तों से टैक्स लेता था. जजिया मुगल सिर्फ हिंदू भक्तों से लेते थे, लेकिन जिन घोड़ों और खच्चरों पर सवार होकर भक्त जाएंगे उन घोड़ो और खच्चरों पर भी टैक्स लादने का कुकर्म कांग्रेस की सुक्खू सरकार ने किया है. इससे पहले भी सुक्खू सरकार 35 हिंदू मंदिरों से धन वसूलने का काम कर चुकी है.’
जिस हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने चुनाव के दौरान 300 यूनिट बिजली मुफ्त में देने का वादा किया था लेकिन सत्ता में आने के बाद एक भी यूनिट बिजली मुफ्त नहीं दी, उल्टा बिजली पर जो सब्सिडी मिलती थी उसे भी वापस ले लिया.. pic.twitter.com/lydl7ebNgD
— Office of Prem Shukla (@PremBJPOfficial) May 2, 2025
जिस हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने चुनाव के दौरान 300 यूनिट बिजली मुफ्त में देने का वादा किया था लेकिन सत्ता में आने के बाद एक भी यूनिट बिजली मुफ्त नहीं दी, उल्टा बिजली पर जो सब्सिडी मिलती थी उसे भी वापस ले लिया.. pic.twitter.com/lydl7ebNgD
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श्रद्धालु और स्थानीय लोग भी हैं इस फैसले से नाराज
इस फैसले के बाद राज्य में काफी विरोध और असंतोष देखने को मिल रहा है. स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं ने सरकार के इस फैलसे का कड़ा विरोध किया है. उनका कहना है कि चूड़धार एक धार्मिक स्थल है, न कि कोई पर्यटन स्थल, और श्रद्धालुओं से शुल्क वसूलना गलत है. चूड़धार मंदिर की व्यवस्था देखने वाली चूड़ेश्वर सेवा समिति ने भी सरकार के इस फैसले का कड़ा विरोध किया है. उनका कहना है कि सरकार को श्रद्धालुओं के लिए बेहतर सुविधाएं जुटानी चाहिए. समिति का कहना है कि श्रद्धालुओं से शुल्क वसूलना सही नहीं है. उन्होंने सरकार से तुरंत अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की है.
सीएम सुक्खू बोले हिमाचलियों से नहीं ली जाएगी कोई फीस
इस मुद्दे पर सीएम सुक्खू ने बचाव करते हुए कहा है कि इको टूरिजम को लेकर हाईकोर्ट अपने निर्देश जारी करता है. चूड़धार मंदिर में किसी भी हिमाचली व्यक्ति पर कोई टैक्स नहीं लगेगा, इस संबंध में पहले ही निर्देश दे दिए गए हैं. बाहर से आने वाले लोग पानी की बोतलें और चिप्स के पैकेट ले जाकर वहां फेंक देते हैं, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है. इसलिए उनके लिए शुल्क लगाया गया है.
इको टूरिज़म को लेकर हाईकोर्ट अपने निर्देश जारी करता है। चूड़धार मंदिर में किसी भी हिमाचली व्यक्ति पर कोई टैक्स नहीं लगेगा, इस संबंध में पहले ही निर्देश दे दिए गए हैं।
बाहर से आने वाले लोग पानी की बोतलें और चिप्स के पैकेट ले जाकर वहाँ फेंक देते हैं, जिससे पर्यावरण को नुकसान… pic.twitter.com/IRWAdxbSMx
— Sukhvinder Singh Sukhu (@SukhuSukhvinder) May 3, 2025
इससे पूर्व भी हिमाचल सरकार ने मंदिर ट्रस्टों से मांग था फंड
ऐसा पहली बार नहीं है जब कांग्रेस सरकार का हिंदू विरोधी रवैये सामने आया है. इससे पूर्व सुक्खू सरकार ने हिमाचल के मंदिर ट्रस्टों से फंड मांगा था. बता दें कि हिमाचल सरकार के भाषा, कला एवं संस्कृति विभाग ने जिला उपायुक्तों के नाम एक पत्र जारी किया था. जिसके अनुसार कुल्लू और किन्नौर को छोड़कर बाकी सभी जिला उपायुक्तों को पत्र लिखकर सरकार की सुख आश्रय योजना कोष और मुख्यमंत्री सुख शिक्षा योजना कोष में योगदान देने की बात कही गई थी. उपायुक्तों को लिखे गए इस पत्र में 29 जनवरी 2025 की तारीख है जबकि ये चिट्ठी फरवरी महीने के आखिरी दिनों में सामने आई थी. (जिलों में वर्तमान सरकार के तहत आने वाले मंदिरों का जिम्मा जिला उपायुक्त का होता है. डीसी टेंपल कमिश्नर होते हैं और इसलिए इस चिट्ठी में जिला उपायुक्तों को संबोधित किया गया था.)
इस विवाद ने हिमाचल प्रदेश की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है. एक तरफ, सरकार पर्यावरण संरक्षण और विकास का हवाला दे रही है, वहीं दूसरी तरफ श्रद्धालु और विपक्षी दल इसे धार्मिक आस्था पर चोट बता रहे हैं. यह मुद्दा सुक्खू सरकार की नीतियों पर एक बड़ा सवालिया निशान खड़ा कर रहा है. हिमाचल सरकार अपनी नई नीतियों के कारण पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रही है.