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भीमाकाली मंदिर: जहां गिरे देवी सती के कान, श्री कृष्ण और पांडवों से भी है कनेक्शन

1800 साल पुराना मां काली को समर्पित यह मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है.

Yenakshi Yadav by Yenakshi Yadav
Apr 29, 2025, 04:12 pm GMT+0530
भीमाकाली मंदिर: जहां गिरे देवी सती के कान, श्री कृष्ण और पांडवों से भी है कनेक्शन

भीमाकाली मंदिर: जहां गिरे देवी सती के कान, श्री कृष्ण और पांडवों से भी है कनेक्शन

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राजधानी शिमला से करीब 180 किमी दूर सराहन में मां भीमाकाली विराजमान हैं. यह हिमाचल का एक ऐसा आध्यात्मिक और अनमोल रत्न है, जो सदियों से भक्तों और कला प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है. 1800 साल पुराना मां काली को समर्पित यह मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां पुराणों के अनुसार देवी सती का कान गिरा था. भीमाकाली मंदिर अपनी खास वास्तुकला और पौराणिक कथाओं के लिए भी विश्वभर में प्रसिद्ध है. सराहन गांव की प्राकृतिक सुंदरता, आसपास के अद्भुत दृश्य, ब्यास नदी, उंचे पहाड़ इस मंदिर की यात्रा को और भी यादगार बनाते हैं.

भीमाकाली मंदिर है शक्ति, शांति, मनोकामना का धाम:

मंदिर में देश-विदेश से भारी मात्रा में श्रद्धालु माता के दर्शन करने और उनका आशीर्वाद लेने यहां पहुंचते हैं. भक्तों का अटूट विशवास है कि मां के दरबार में सकारात्मक ऊर्जा और शांति का अनुभव होता है. भक्तों का मानना है कि मां भीमाकाली शक्ति और साहस प्रदान करती हैं. मुश्किल समय में उनका स्मरण करने से हर समस्या का समाधान होता है. श्रद्धालुओं की अटूट आस्था है कि यहां आने और सच्चे मन से प्रार्थना करने से सभी दुख-तकलीफें दूर होती हैं, मां भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती हैं.

पौराणिक महत्व और इतिहास:

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, इसी स्थान पर भगवान कृष्ण और बाणासुर के बीच युद्ध हुआ था. और किवदंती है कि आज भी मंदिर के प्रवेश द्वार पर बाणासुर राक्षस का सिर दफन है. इससे मंदिर की ऐतिहासिक महत्वता और बढ़ जाती है. माना जाता है कि मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण 13वीं शताब्दी में हुआ था, हालांकि इस पवित्र स्थल पर सदियों से देवी की पूजा अर्चना होती आ रही है.

मां भीमाकाली को बुशहर राजवंश की कुलदेवी के रूप में अत्यधिक सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त है. बुशहर रियासत के शासकों द्वारा मां भीमाकाली की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजा-आराधना की जाती है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. आज भी स्थानीय लोगों और राजवंश के वंशजों के लिए यह मंदिर उनकी गहरी आस्था का प्रतीक है. मंदिर का इतिहास भी बुशहर रियासत के इतिहास से जुड़ा हुआ है.

मां भीमाकाली बुशहर राजवंश की कुल माता हैं. इसलिए नवरात्रों के दौरान राज परिवार के सदस्य विशेष रूप से मंदिर में पूजा-अर्चना करने आते हैं, जो मां के प्रति उनकी गहरी श्रद्धा को दर्शाता है.

भीमाकाली मंदिर हिंदू और बौद्ध शैली का अनूठा संगम:

भीमाकाली मंदिर की वास्तुकला एक अद्भुत मिश्रण है. इसमें हिंदू मंदिर शैली के शिखर के साथ-साथ बौद्ध मठों की तरह लकड़ी के ढलुआ गलियारे भी दिखाई देते हैं. पत्थर और लकड़ी का कुशलतापूर्वक उपयोग मंदिर को एक विशिष्ट और आकर्षक रूप प्रदान करता है. मंदिर परिसर में कई छोटे-बड़े मंदिर स्थापित हैं, जो विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित हैं. इनमें भगवान रघुनाथजी, नरसिंहजी और लंकड़ा वीर के मंदिर प्रमुख हैं. लंकड़ा वीर को इस स्थान का संरक्षक देवता माना जाता है और उनकी पूजा यहां विशेष रूप से की जाती है.

मुख्य मंदिर में देवी भीमाकाली की दो मुख्य मूर्तियां स्थापित हैं. ऊपरी मंजिल पर देवी का कन्या रूप है, जो मासूमियत और पवित्रता का प्रतीक है, जबकि निचले मंजिल पर विवाहित रूप में माता चांदी के सिंहासन पर विराजमान हैं, जो शक्ति और मातृत्व का प्रतिनिधित्व करती हैं. इसके अलावा, मंदिर में भगवान भैरव की एक प्राचीन और अनोखी प्रतिमा भी है. साथ ही देवी दुर्गा के नौ अवतारों की मूर्तियां भी यहां स्थापित हैं.

मंदिर के प्रवेश द्वार पर भगवान शंकर, माता पार्वती और श्री गणेश की कलाकृतियां बनी हैं. स्थानीय मंदिर संस्थान इसको सुंदर और आकर्षक बनाने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है. मंदिर परिसर में सुंदर फूलों की वाटिका और बच्चों के मनोरंजन के लिए पार्क का निर्माण किया गया है. साथ ही नीचे की ओर शेर की सुंदर मूर्ति भी है.

मंदिर आने वाले भक्तों-पर्यटकों के लिए गाड़ी पार्किंग की बहुत अच्छी व्यवस्था की गई है. मंदिर का वर्तमान विकास देख ऐसा प्रतीत होता है कि यह जगह धार्मिक स्थल के साथ-साथ एक ऐसा स्थान है जहां सुंदरता, शांति और इतिहास का संगम है.

मंदिर परिसर में ब्यास नदी के किनारे एक सुंदर उद्यान है, जहां पांडवों की आकर्षक मूर्तियां स्थापित की गई हैं, जो भक्तों को भीमाकाली मंदिर और पांडवों के कनेक्शन की याद दिलाता है. द्वापर युग में पांडवों ने वनवास के दौरान अपना कुछ समय यहां बिताया था.

ऐसे पहुंचें मां भीमाकाली मंदिर:

सड़क मार्ग: भीमाकाली मंदिर शिमला से लगभग 180 किमी दूर है. शिमला और आसपास के शहरों से बस और टैक्सी सेवाएं आसानी से उपलब्ध हैं. रामपुर बुशहर से मंदिर की दूरी लगभग 40 किमी है. ज्योरी से मंदिर के लिए एक अलग रास्ता है, जिसकी दूरी 17 किमी है. सड़क मार्ग अच्छी स्थिति में है.

हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डे भुंतर हवाई अड्डा है. यहां से आप बस या टैक्सी के माध्यम से मंदिर तक पहुंच सकते हैं.

शक्तिपीठ भीमाकाली मंदिर न केवल एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, बल्कि शक्ति और कला का अद्भुत संगम है. जो हर व्यक्ति के दिल और दिमाग पर एक गहरी छाप छोड़ता है. इसकी अनूठी वास्तुकला, पौराणिक कथाएं और शांत वातावरण इसे एक ऐसा स्थान बनाते हैं जो भक्तों, पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों को समान रूप से अपनी ओर खींचता है.

Tags: Bhima Kali TempleHimachal PradeshHimachal ShaktipeethsHimachal TourismSarahanShimlaTOP NEWS
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