चामुंडा देवी मंदिर, कांगड़ा जिले में स्थित भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है. यह पवित्र स्थान हिंदुओं की आस्था का प्रतीक है. यहां मां दुर्गा के उग्र रूप की पूजा की जाती है. मान्यता के अनुसार यहीं देवी सती के शरीर के अंग गिरे थे. यह मंदिर मां काली, चामुंडा को समर्पित है. यहां एक गुफा भी है जहां, भगवान शिव पिंडी रूप में विराजमान हैं, इसलिए यह स्थान चामुंडा नंदिकेश्वर धाम के नाम से प्रसिद्ध है. स्थानीय लोगों की मान्यता है कि चामुंडा देवी मंदिर शिव और शक्ति का निवास स्थान है.

चामुंडा देवी मंदिर धर्मशाला से करीब 15 किलोमीटर, पालमपुर से 19 किलोमीटर, मैक्लोडगंज से 24 किलोमीटर और कांगड़ा शहर से लगभग 30 किलोमीटर दूर है. इसकी ऊंचाई समुद्र तल से करीब 1000 मीटर है. यह मंदिर बाणगंगा नदी के किनारे स्थित है.
मंदिर के गर्भगृह में देवी की मूर्ति है. मंदिर के प्रवेश द्वार पर एक मंडप है जिसमें घंटियां लगी हुई हैं और छत पर विस्तृत नक्काशी की गई है. मंदिर परिसर में भगवान भैरव और हनुमान की मूर्तियां भी स्थापित हैं, जो देवी के रक्षक माने जाते हैं. मंदिर के पीछे एक गहरी गुफा में भगवान शंकर का एक छोटा सा मंदिर भी है, जिसमें एक समय में केवल एक ही भक्त प्रवेश कर सकता है.

नवरात्र के समय मंदिर में उत्सव का माहौल रहता है. इस दौरान यहां विशेष मेले का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें बड़ी मात्रा में श्रद्धालु शामिल होते हैं. उत्तर भारत की नौ देवियों की यात्रा में चामुंडा देवी दूसरे नंबर पर आती हैं. माना जाता है कि मां के दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूरी होती है. देश के कोने-कोने से भक्त यहां माता का आशीर्वाद लेने आते हैं.
चामुंडा देवी मंदिर न केवल एक महत्तवपूर्ण धार्मिक स्थल है, बल्कि यह जगह अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण से पर्यटकों और श्रद्धालुओं दोनों के लिए एक आदर्श स्थान है.
इतिहास और पौराणिक कथा:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह मंदिर मां काली को समर्पित है. जो शक्ति और संहार की देवी का स्वरूप है. माना जाता है कि माता ने चंड और मुंड नामक दो राक्षसों का वध किया था, जिसके बाद इस स्थान का नाम चामुंडा पड़ गया.
लोक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 16वीं शताब्दी में हुआ था. राजा उम्मेद सिंह ने 1762 में इसका निर्माण करवाया था. करीब 400 साल पहले, एक राजा और एक पुजारी ने चामुंडा देवी से प्रार्थना की और उनसे मूर्ति को उचित स्थान पर स्थानांतरित करने की अनुमति मांगी. जिसके बाद देवी पुजारी के सपने में आईं और मूर्ति का सही स्थान बताया. जब उस स्थान की खुदाई हुई तो वहां चामुंडा देवी की मूर्ति मिली, जिसके बाद उस मूर्ति को उसी स्थान पर स्थापित कर दिया गया.

ऐसे पहुंचे चामुंडा देवी धाम:
सड़क मार्ग: चामुंडा देवी मंदिर धर्मशाला, पालमपुर और कांगड़ा जैसे प्रमुख शहरों से सड़क द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है. हिमाचल पथ परिवहन निगम की बसें और निजी बसें नियमित रूप से उपलब्ध रहती हैं. आप टैक्सी या अपनी निजी गाड़ी से भी यहां पहुंच सकते हैं.
रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन पठानकोट है, जो लगभग 90 किलोमीटर दूर है. यहां से आप बस या टैक्सी द्वारा चामुंडा देवी मंदिर तक पहुंच सकते हैं. कांगड़ा मंदिर रेलवे स्टेशन भी पास है, लगभग 30 किलोमीटर दूर है.
हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा कांगड़ा हवाई अड्डा (गग्गल) है, जो चामुंडा देवी मंदिर से लगभग 24 किलोमीटर दूर है.
आसपास के आकर्षण:
चामुंडा देवी मंदिर के आसपास कई अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं, जिनमें बज्रेश्वरी मंदिर, कुमारवाह झील (करेरी झील के पास) और धर्मशाला और मैक्लोडगंज शामिल हैं.