हिमाचल प्रदेश की सुंदर और शांत वादियों में, कांगड़ा से लगभग 30 किमी दूर ज्वालामुखी नामक शहर में एक अद्भूत स्थान है जो अपनी अलौकिक ऊर्जा के लिए विश्व प्रसिद्ध है. इस स्थान का नाम है ज्वाला देवी मंदिर. इसे जोता वाली मां, ज्वालामुखी माता और नगरकोट के नाम से भी जाना जाता है. यह मंदिर देवी सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है. यहां माता की जीभ गिरी थी. माना जाता है कि कोई अगर सच्चे मन से यहां प्रार्थना करे तो उसकी मनोकामनाएं जरूर पूरी होती हैं.जहां अन्य मंदिरों में भगवान की भव्य मूर्तियों की पूजा होती है, वहीं ज्वालाजी मंदिर में देवी को ज्योति के रूप में पूजा जाता है. पृथ्वी की गर्भ से स्वतः प्रकट हुईं 9 पवित्र ज्वालाएं हैं, जो आज भी यहां लगातार प्रज्जवलित हैं. यह 9 ज्योतियां देवी मां के 9 रूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं. दूर-दूर से श्रृद्धालु मां की इस रहस्मय ज्योति के दर्शन करने के लिए खिंचे चले आते हैं. इस पवित्र स्थान की ऐसी अटूट मान्यता है कि अगर कोई भक्त ज्वाला मां से सच्चे मन से प्रार्थना करे तो उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं. मंदिर परिसर में एक छोटा सा मंच है और एक बड़ा मंडप है, जहां नेपाल के राजा द्वारा दान की गई एक बड़ी पीतल की घंटी लटकी हुई है.
मां की दिव्य शक्ति, 9 ज्वालाओं के रहस्य और प्रकृति के अनोखे चमत्कार को विज्ञान भी अब तक पूरी तरह से सुलझा नहीं पाया है.इतिहास और पौराणिक कथा
इस मंदिर का प्राथमिक निर्माण राजा भूमि चंद के द्वारा किया गया था. जिसके बाद 1835 में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह और हिमाचल के राजा संसारचंद ने मंदिर का पूरा निर्माण कराया था.
अकबर भी दिव्य शक्ति को देख हुआ नतमस्तक
मुगल बादशाह अकबर ने जब इस अद्भुत मंदिर के बारे में सुना तो वो हैरान रह गया. उसने मंदिर में प्रज्वलित 9 ज्वालाओं को पानी से बुझाने का प्रयास किया. इसके अलावा उसने उन्हें लोहे के तवे से भी ढका. लेकिन तवे में भी छेद हो गए. अंत में उसने हार मान ली. और वो मंदिर से वापस लौट गया. देवी मां की अपार महिमा को देखते हुए उसने 50 किलो के सोने का छतर देवी मां के दरबार में चढ़ाया, लेकिन माता ने उसकी भेंट कबूल नहीं की. और वह छतर गिर कर किसी अन्य पदार्थ में बदल गया. बता दें कि आज भी अकबर द्वारा भेंट चढ़ाया हुआ वो छतर ज्वालाजी मंदिर में रखा हुआ है. एक अन्य कथा के अनुसार, जब राक्षस हिमालय के पहाड़ों पर देवताओं को परेशान कर रहे थे, तो भगवान विष्णु के नेतृत्व में देवताओं ने अपनी शक्ति केंद्रित की, जिससे एक विशाल ज्वाला प्रकट हुई और एक छोटी बच्ची का जन्म हुआ, जिसे आदि शक्ति माना गया.
कैसे पहुंचे मां ज्वाला जी के दरबार
सड़क मार्ग: ज्वालामुखी शहर कांगड़ा जिले में स्थित है और धर्मशाला, पालमपुर और अन्य प्रमुख शहरों से सड़क द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है.
रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन ज्वालामुखी रोड (रानीताल) है, जो मंदिर से लगभग 20 किमी दूर है. यहाँ से टैक्सी या बस द्वारा मंदिर तक पहुंचा जा सकता है.
वायु मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा कांगड़ा (गग्गल) है, जो ज्वालामुखी से लगभग 50 किमी दूर है. यहाँ से टैक्सी या बस द्वारा मंदिर तक पहुंचा जा सकता है.
ज्वालाजी के आसपास के आकर्षण स्थल
कांगड़ा किला: ज्वालामुखी से लगभग 30 किमी दूर स्थित एक ऐतिहासिक किला. माना जाता है कि इसे 3500 वर्ष पहले कटोच वंश के महाराजा सुशर्मा चंद्र ने बनवाया था. ये भारत के सबसे प्राचीन और हिमालय के सबसे बड़े किलों में से एक.
कांगड़ा का ज्वाला देवी मंदिर केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक ऐसा अनुभव है जो आपको प्रकृति की अलौकिक शक्ति और अटूट आस्था के सामने नतमस्तक कर देता है. इसकी रहस्यमयी ज्वालाएं हमेशा से भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करती रही हैं और आगे भी करती रहेंगी.