मुस्लिम बहुल देश मलेशिया में हिंदू सभ्यता और आस्था का प्रतीक एक ऐतिहासिक मंदिर कट्टरपंथी मंसूबों के घेरे में है. 130 वर्ष पुराना यह मंदिर जिसमें श्री पार्थ कालीअम्मा देवी की पूजा की जाती है. अब विवाद के केंद्र में है क्योंकि सरकारी जमीन पर बना यह मंदिर अब एक मुस्लिम व्यापारिक समूह ‘जकेल’ द्वारा खरीदा गया है और वहां मस्जिद बनाने की योजना बनाई जा रही है.
130 साल पुराना मंदिर या सिर्फ एक ‘अवैध निर्माण’?
मलेशिया की धरती पर जब भारत से अंग्रेज रबर, रेलवे और कृषि के लिए श्रमिकों को लाए थे, तब उन्होंने अपने देवता भी अपने साथ लाए थे. ये मंदिर उस संस्कृतिक विरासत के प्रमाण हैं. यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि भारतीय मूल के लाखों मलेशियाई नागरिकों की पहचान भी है.
अब व्यावसायिक समूह जकेल ने उस जमीन को खरीदा और स्पष्ट कहा है कि वे वहां पर एक भव्य मस्जिद बनाएंगे. इस प्रक्रिया में मंदिर को हटाया जाना तय है, और “स्थानांतरण का खर्च” उठाने की पेशकश भी की गई है.
कट्टरपंथियों का दबाव और धर्मनिरपेक्षता की चुप्पी
कट्टरपंथियों ने अपने तर्क में कहा कि मंदिर सरकारी जमीन पर बना था, अब वह व्यक्तिगत स्वामित्व में है, इसलिए मंदिर को हटाना होगा.
मंदिर समिति और स्थानीय हिंदू समुदाय की मांग किया है कि हमारा मंदिर यहीं रहेगा. आप मस्जिद बगल में बना सकते हैं. मलेशिया की धार्मिक सहिष्णुता इसी में है.
लेकिन कट्टरपंथी नेताओं का दावा है कि यह मंदिर अवैध है और मस्जिद के लिए जमीन खाली करनी चाहिए.
मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहीम कहते हैं कि उनका इससे कोई लेना-देना नहीं, पर 27 मार्च को मस्जिद की आधारशिला कार्यक्रम में शामिल की जाएगी.
भारतीय मूल की आवाजें उठीं
मलेशिया की भारतीय मूल की पार्टी उरीमाई के नेता और पेनांग के पूर्व डिप्टी सीएम पी. रामासामी ने कहा कि यह मंदिर सिर्फ ईंट-पत्थर का नहीं, बल्कि हमारी आस्था और पहचान का प्रतीक है. इसे हटाना मलेशिया की बहुधार्मिक परंपरा के खिलाफ है.
लॉयर्स फॉर लिबर्टी के जैद मलेक ने भी सवाल उठाया
उन्होंने कहा कि क्या प्रधानमंत्री अनवर इतना भी समय नहीं दे सकते कि बिना किसी विवाद के सम्मानजनक समाधान निकले?