रंगों का पर्व होली देशभर में हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है. भारत के हर राज्य में होली का त्योहार बड़े ही अनोखे और अलग अंदाज में मनाया जाता है. इस साल होली 14 मार्च को मनाई जाएगी. लेकिन हिमाचल प्रदेश की छोटी काशी यानी मंडी में सदियों से यह त्योहार एक दिन पहले मनाने की परंपरा रही है. जिले में एक दिन पहले होली मनाने के पीछे ज्योतिष शास्त्र सहित कई प्रमुख कारण मने जाते हैं. इसको लेकर कई दंतकथाएं प्रचलित हैं. होली से एक दिन पूर्व होलिका दहन का मनाने की परंपरा है. लेकिन मंड़ी में होलिका दहन होली वाले दिन रंग खेलने के बाद शाम को आयोजित किया जाता है.
भगवान शिव और विष्णु से है सम्बन्ध
वरिष्ठ साहित्यकार धर्मपाल के अनुसार, होली का त्योहार मंडी में एक दिन पहले मनाने की वजह है कि यहां शैव और वैष्णव एक साथ नजर आते है. 18वीं सदी से पूर्व मंडी में केवल भगवान शिव के ही मंदिर थे. लेकिन 18वीं सदी के दौरान वर्तमान राजा सूरज सोन के 18वें बेटे के देहांत के बाद उन्होंने अपना पूरा राजपाठ श्री कृष्ण के रूप राज माधव राय को सौंपा था. इनका मंदिर मंडी में स्थित है. इसके बाद से मंडी शैव और वैष्णव परंपरा का प्रमुख स्थान बन गया. यहां एक साथ बनी भगवान शिव और विष्णु की मूर्तियां भी इस बात का प्रमाण देती हैं. यही कारण है कि छोटी काशी में होली का पर्व सबसे पहले मनाना स्वाभाविक और अनिवार्य है.
साहित्यकार धर्मपाल ने आगे बताया कि दुनिया में जहां भी शैव और वैष्णव परंपरा एक साथ देखी जाती है, वहां होली का पर्व एक दिन पहले ही मनाते हैं. उनका कहना है कि ज्योतिष शास्त्र में भी यही कारण बताया गया है.
सेरी मंच पर गाजे-बाजे के साथ मनती है होली
बदलते समय के साथ मंडी की प्राचीन परंपराओं वाली होली अब नए और सामूहिक तौर से मनाई जाती है. शहर के सेरी मंच पर युवा डीजे की धुन में डांस करते दिखाई देते है. साथ ही लोग यहां स्थानिए गीत गाते भी नजर आते हैं. यहां कुर्ता फाड़ होली मनाई जाती है. जहां पहले लोग केवल गली-मुहल्लों में लोग एक-दूसरे को रंगते थे, वहीं अब मंडी के सेरी मंच पर एकजुट होकर रंगों का त्योहार होली मनाते हैं.