होली का पर्व केवल रंगों और आनंद का उत्सव नहीं है, बल्कि यह धार्मिक, आस्थागत और आध्यात्मिक महत्व भी रखता है. होलिका दहन, जिसे ‘छोटी होली’ भी कहा जाता है, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इस दिन अग्नि प्रज्वलित कर बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाया जाता है.

तिथि और शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास की पूर्णिमा 13 मार्च 2025 को सुबह 10:35 बजे से प्रारंभ होगी. हालांकि, भद्राकाल के कारण होलिका दहन का आयोजन 13 मार्च की रात 11:27 बजे से किया जाएगा. इसी दिन पूर्णिमा का व्रत भी रखा जाएगा.

होलिका दहन की पौराणिक कथा
होलिका दहन की परंपरा भक्त प्रह्लाद और उसके दुष्ट पिता राजा हिरण्यकशिपु से जुड़ी हुई है. हिरण्यकशिपु भगवान विष्णु का कट्टर शत्रु था, जबकि उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु का अनन्य भक्त था. उसने प्रह्लाद को विष्णु की भक्ति से विमुख करने के लिए अनेक प्रयास किए, लेकिन जब वह असफल रहा, तो उसने अपनी बहन होलिका की सहायता ली. होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जल सकती. उसने प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश किया, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहा और होलिका जलकर भस्म हो गई. इस घटना की स्मृति में हर वर्ष होलिका दहन का आयोजन किया जाता है.

धार्मिक महत्व
बुराई पर अच्छाई की विजय – यह पर्व हमें सिखाता है कि सत्य और भक्ति की हमेशा जीत होती है.
नकारात्मक ऊर्जा का नाश – ऐसा माना जाता है कि होलिका दहन की अग्नि नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करती है.
नई फसल का उत्सव – यह पर्व कृषि से जुड़ा हुआ है, क्योंकि इस समय नई फसल तैयार होती है और किसान इसका स्वागत करते हैं.
सामाजिक समरसता – होली एक ऐसा पर्व है जो लोगों को भेदभाव भुलाकर प्रेम और सौहार्द्र बढ़ाने का संदेश देता है.