भगवान कृष्ण की नगरी मथुरा में होली का उत्सव किसी चमत्कारी लोककथा से कम नहीं है. रंगों की यह पावन भूमि जब होली के रंग में सराबोर होती है, तो मानो पूरी दुनिया कृष्णमय हो जाती है. बरसाना, वृंदावन और नंदगांव की होली के अलग-अलग रंग, अलग-अलग रस हैं, लेकिन इनमें सबसे अनूठी होती है लट्ठमार होली, जिसका आज यानि 8 मार्च शुभारंभ हो चुका है.
कैसी होती है लट्ठमार होली?
लट्ठमार होली में स्त्रियां (हुरियारिनें) अपने हाथों में मजबूत लाठियां (लट्ठ) लेकर पुरुषों (हुरियारों) को हंसी-ठिठोली भरे अंदाज में पीटती हैं और पुरुष अपनी ढालों से बचाव करते हैं, लेकिन यह खेल सिर्फ प्रतीकात्मक होता है, जिसमें प्रेम और हंसी-मजाक की धाराएं बहती हैं. इस दौरान माहौल भक्तिरस से ओत-प्रोत हो जाता है. पूरे गांव में कृष्ण और राधा के गीत गूंजने गाए जाते हैं, चारों ओर गुलाल उड़ता है, और लोग भगवान कृष्ण के भक्ति, प्रेम और मस्ती में झूम उठते हैं.
पौराणिक कथा: क्यों मनाते हैं लट्ठमार होली?
मान्यता है कि होली वाले दिन भगवान श्रीकृष्ण अपने सखाओं के साथ बरसाना गए थे, जहां उन्होंने राधा जी और उनकी सखियों को छेड़ा. इस पर राधा जी और गोपियों ने लाठियां उठाकर कृष्ण और ग्वालों को पीटना शुरू कर दिया. कृष्ण और उनके साथी अपनी ढालों से खुद को बचाने लगे, और यह नटखट खेल होली का अभिन्न हिस्सा बन गया. कहा जाता है कि 5000 साल पहले हुई इस घटना की स्मृति में ही बरसाना और नंदगांव में हर साल लट्ठमार होली खेली जाती है.
क्या है इसका आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व?
लट्ठमार होली भक्तिरस और प्रेम का प्रतीक है, जहां प्रेम के इशारों में ठिठोली और हास्य भी समाहित होता है. यह होली राधा-कृष्ण के अप्राकृतिक प्रेम और अद्वितीय रासलीला की झलक दिखाती है. मथुरा और वृंदावन में होली केवल एक पर्व नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा है, जहां लोग श्रीकृष्ण के युग को फिर से जीने की कोशिश करते हैं.
देश-विदेश से आते हैं श्रद्धालु
हर साल इस दिव्य नजारे को देखने के लिए भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया से लोग मथुरा-बरसाना पहुंचते हैं. श्रद्धालु श्रीकृष्ण की भक्ति में विलीन हो जाते हैं और इस अलौकिक होली का आनंद उठाते हैं.
इस वर्ष भी होली का यह रंगीन उत्साह प्रेम, भक्ति और आनंद के रंगों से सराबोर रहेगा. बरसाना में और लाठियों की यह अनूठी होली कृष्ण प्रेमियों के लिए एक दिव्य अनुभव साबित होगी.