शिमला: हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन की बढ़ती आवृत्ति से निपटने के लिए राज्य सरकार ने बायो-इंजीनियरिंग पहल शुरू की है. मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने कहा कि वेटिवर घास की खेती के लिए एक पायलट परियोजना शुरू की गई है, जो अपनी गहरी और घनी जड़ों के कारण मिट्टी को मजबूती से बांधती और भूमि कटाव को रोकती है.
मुख्यमंत्री ने कहा कि वेटिवर घास का उपयोग विशेष रूप से भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों, राजमार्ग तटबंधों और नदी किनारों पर मिट्टी संरक्षण के लिए किया जाता है. इसकी क्षमता को पहचानते हुए हिमाचल प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने वेटिवर फाउंडेशन-क्लाइमेट रेजिलिएंस एंड सस्टेनेबिलिटी इनिशिएटिव्स (सीआरएसआई) तमिलनाडु के सहयोग से भूस्खलन से निपटने के लिए स्थायी शमन रणनीति विकसित करने के लिए यह परियोजना शुरू की है.
इस पहल के तहत प्राधिकरण ने सीआरएसआई से वेटिवर नर्सरी उपलब्ध करवाने का आग्रह किया है ताकि 2025 के मानसून सीजन से पहले पर्याप्त मात्रा में पौधे उपलब्ध हो सकें. सीआरएसआई ने 1,000 वेटिवर घास के पौधे निःशुल्क उपलब्ध करवाए हैं, जिन्हें कृषि विभाग के सहयोग से सोलन जिले के बेरटी में स्थापित नर्सरी में लगाया गया है.
मुख्यमंत्री ने बताया कि एचपीएसडीएमए वेटिवर घास की सफल खेती और आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए पायलट परियोजना की बारीकी से निगरानी कर रहा है. प्रारंभिक परिणाम उत्साहजनक हैं, जिसमें पौधों की उच्च जीवित रहने की दर का संकेत है और वे स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल हो रहे हैं.
उन्हाेंने कहा कि वेटिवर घास 3-4 मीटर गहराई तक जड़ें विकसित कर सकती है. ये एक मजबूत नेटवर्क बनाती है जो मिट्टी को बांधती है और भूस्खलन का खतरा कम करती है. यह पानी के बहाव को धीमा कर, खासकर खड़ी ढलानों पर भूमि के कटाव को रोकने में मदद करती है. पारंपरिक समाधानों की तुलना में वेटिवर घास ढलानों की सुरक्षा के लिए कम लागत और टिकाऊ विकल्प प्रदान करती है.
सुक्खू ने कहा कि हिमाचल प्रदेश की खड़ी और भौगोलिक रूप से युवा पहाड़ियों की भूस्खलन के प्रति संवेदनशीलता हाल के वर्षों में बढ़ रही है, खासकर भारी मानसूनी बारिश और भूकंपीय गतिविधि के कारण. इससे निपटने के लिए प्रदेश सरकार वैज्ञानिक और जैव-इंजीनियरिंग तकनीकों को अपनाकर आपदा प्रबंधन को और मजबूत बना रही है और लोगों तथा बुनियादी ढांचे की सुरक्षा सुनिश्चित कर रही है.
हिन्दुस्थान समाचार