Lala Lajpat Rai 160th Birth Anniversary: लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) ने भारत को आजादी दिलाने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय के अहम योगदान ने भारत के इतिहास पर अमिट छाप छोड़ी है. इन्हें ‘पंजाब केसरी’ के नाम से भी जाना जाता है. लाला लाजपत ने ब्रिटिश शासकों के खिलाफ भारतीय जनता को जागरुक करने के लिए आवाज उठाई. लाला लाजपत राय के विचार आज भी हम सभी को अपने कर्तव्य पथ पर चलने की प्रेरणा देते हैं. 28 जनवरी यानी आज पूरा भारत सबसे सम्मानित स्वंत्रता सैनानी लाला लाजपत राय की 160वीं जयंती (Lala Lajpat Rai 160th Birth Anniversary) मना रहा है.
28 जनवरी 1865 को लाला लाजपत राय का जन्म पंजाब के मोगा जिले में हुआ था. उनके पिता लाला राधाकृष्ण स्कूल में अध्यापक थे और माता गुलाबी देवी एक धार्मिक महिला थी. लाला लाजपत ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई मोगा में स्थित स्कूल से की थी. उसके बाद उच्च शिक्षा लाहौर के फॉरमैन क्रिश्चियन कॉलेज से प्राप्त की.
लाला लाजपत राय ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1880 के दशक की थी. वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए. और कुछ ही समय में वह कांग्रेस के प्रमुख नेता बन गए. भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए वह सक्रिय रुप से शामिल हुए. लाला लाजपत राय ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कई सारे आंदोलन में भाग लिया. उन्हीं आंदोलनों में से एक था पंजाब आंदोलन. साल 1907 में हुए पंजाब आंदोलन में लाला लाजपत ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कई सारे प्रदर्शनों और सत्याग्रहों का नेतृत्व किया था.
पहला स्वदेशी बैंक किया था स्थापित
लाला लाजपत राय ने साल 1894 में पहला स्वदेशी बैंक स्थापित किया था. जिसका नाम पंजाब नेशनल बैंक है. इसके अलावा उन्होंने पंजाब में आर्य समाज और लक्ष्मी इंश्योरेंस नाम की कंपनी स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई थी.
साइमन कमीश्न के विरोध में गवांई अपनी जान
साल 1928 में भारत के संविधान को सुधारने के लिए साइमन कमीश्न लाया गया था. लेकिन लाला लाजपत राय ने इसका खूब विरोध किया क्योंकि इसमें विधानसभा का कोई भारतीय प्रतिनिधि शामिल नहीं था. लाला लाजपत के नेतृत्व में चल रहे विरोध और आंदोलन को रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार ने बर्रबरता पूर्वक लाठी चार्ज किया. जिस दौरान लाला लाजपत राय को बहुत चोट लगी थी. इसी के चलते 17 नवंबर, 1928 को लाला लाजपत राय का निधन हो गया था. उनकी निधन की खबर सुनकर पूरे देश में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आक्रोश फैल गया था.