इंदौर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि हम रामराज्य की कल्पना करते हैं और अहिल्या बाई होलकर का राज्य रामराज्य जैसा ही रहा. सन् 1992 के बाद लोग बोलते थे कि मंदिर वही बनाएंगे, तारीख नहीं बताएंगे. पिछले वर्ष मंदिर की प्रतिष्ठा हुई. कोई झगड़ा नहीं हुआ. कोई कलह सामने नहीं आई. देवी अहिल्या ने अपना राज्य रामराज्य की तरह चलाया. प्रतिष्ठा द्वादशी 11 जनवरी को मनाई गई. अयोध्या में मंदिर बन गया.
सरसंघचालक डॉ. भागवत सोमवार की रात इंदौर में राजेंद्र नगर स्थित लता मंगेशकर ऑडिटोरियम में देवी अहिल्या पुरस्कार वितरण समारोह में उपस्थित लोगों को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने समारोह में श्री रामजन्म भूमि तीर्थ ट्रस्ट के महामंत्री चंपत राय को देवी अहिल्या राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया. इस बार यह पुरस्कार राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के ज्ञात-अज्ञात कारसेवकों और राम मंदिर निर्माण के सहभागियों को समर्पित किया गया है.
खुशहाली का रास्ता भी राम मंदिर से होकर जाता है- भागवत
सरसंघचालक डॉ. भागवत ने कहा कि लोग पूछते थे कि राम मंदिर क्यों जरूरी? रोजगार, गरीबी, स्वास्थ्य और मूलभूत सुविधाओं की बात क्यों नहीं करते. मैं कहता था कि रोजगार, खुशहाली का रास्ता भी राम मंदिर से होकर जाता है. उन्होंने कहा कि हमने हमेशा समाजवाद, रोजगार, गरीबी की बात की, लेकिन क्या हुआ. हमारे साथ चले जापान-इजरायल आज कहां से कहां पहुंच गए.
देश का संविधान स्व से बना है- संघ प्रमुख
उन्होंने कहा कि देश का संविधान स्व से बना है. स्व का अर्थ है राम, कृष्ण और शिव. इस तरह राम, कृष्ण, शिव ही भारत को जोड़ते हैं. भले ही हमारी पूजा पद्धतियां बदल गई, लेकिन हमारा स्व लागू है. इससे कोई इनकार नहीं कर सकता. राम दक्षिण भारत को उत्तर भारत से जोड़ते हैं. कृष्ण पूर्व से पश्चिम को और शिव भारत के कण-कण में व्याप्त हैं.
भारत राम को प्रमाण मानता है- मोहन भागवत
सरसंघचालक ने कहा कि भारत राम को प्रमाण मानता है और यह हमारी प्रकृति में भी है. भारत की 5000 वर्ष पुरानी परंपराओं ने ही सेक्युलरिज्म सिखाया है. राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन स्व की जागृति का आंदोलन था. भारत की रोजी-रोटी का रास्ता राम मंदिर से होकर जाता है. भारत जीवन के मूल्यों के लिए जाना जाता है यही विचार दुनिया को दिग्दर्शित कर रहा है.
यह भारत की मूंछ का मंदिरः चंपत राय
श्री रामजन्म भूमि तीर्थ ट्रस्ट के महामंत्री चंपत राय ने कहा कि अयोध्या में श्री राम का मंदिर भारत की मूंछ का भी मंदिर है. मंदिर कार्य पूर्ण होने से पूरी दुनिया में भारत और हिंदू समाज की प्रतिष्ठा को चार चांद लगे हैं. मैं निमित्त मात्र हूं. उन्होंने कहा कि अयोध्या का श्रीराम मंदिर कई ज्ञात-अज्ञात कारसेवकों, प्रशासकों, अधिकारियों, अधिवक्ताओं और अन्य नागरिकों का सहयोग का नतीजा है. हजारों संतों ने राम मंदिर के प्रति जागरण किया. ये किसी एक व्यक्ति से संभव नहीं हुआ. इतने सालों में कितने लोगों का जीवन गया, कितने बलिदान हुए ये कोई नहीं जानता.
चंपत राय ने अशोक सिंघल, बूटा सिंह, कोठारी बंधु सहित अन्य कई लोगों का जिक्र करते हुए कहा कि अयोध्या, मथुरा, काशी के देव स्थानों को मुक्त करने का समय आ गया है. यह बात कांग्रेस सांसद दाऊ दयाल ने सबसे पहले 1983 में एक आयोजन में उठाई थी. फिर धीरे-धीरे यह आंदोलन के स्वरूप में आ गया. राम जन्मभूमि के लिए 75 लड़ाइयां लड़ी गईं. यह पुरस्कार उन सभी को समर्पित है.
गौरतलब है कि देवी अहिल्या पुरस्कार की शुरुआत 1996 में हुई थी. पहला पुरस्कार नानाजी देशमुख को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दिया था. अब तक 21 व्यक्तित्वों को यह पुरस्कार दिया जा चुका है. अब तक राजमाता सिंधिया, पांडुरंग शास्त्री आठवले, पद्मश्री डॉ. रघुनाथ अनंत माशलेकर, सुधा मूर्ति, साध्वी ऋतंभरा और डॉ. प्रणव पंड्या जैसे प्रमुख व्यक्तियों को यह पुरस्कार मिल चुका है. वहीं, इसे देने वालों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, कल्याण सिंह, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज, सुषमा स्वराज और शिवराज सिंह चौहान जैसे प्रमुख लोगों के नाम शामिल रहे हैं.
हिन्दुस्थान समाचार