Sunday, June 1, 2025
No Result
View All Result
Nav Himachal

Latest News

पहलगाम आंतकी हमला, ऑपरेशन सिंदूर, सीजफायर से लेकर PM मोदी के संबोधन तक, जानें पूरी टाइमलाइन

‘हमले का जवाब भारत अपनी शर्तों पर देगा’, PM मोदी ने आदमपुर से आतंक को दिया कड़ा संदेश

CBSE12वीं के नतीजे घोषित, लड़कियों ने मारी बाजी, 88.39 प्रतिशत विद्यार्थी पास

PM मोदी ने आदमपुर एयरफोर्स स्टेशन का किया दौरा, जवानों को सफल ऑपरेशन की बधाई दी

IPL 2025 का बदला हुआ शेड्यूल जारी, 17 मई से फिर शुरू होगा टूर्नामेंट, 3 जून को फाइनल

  • राष्ट्रीय
  • प्रदेश
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • वीडियो
    • Special Updates
    • Rashifal
    • Entertainment
    • Business
    • Legal
    • History
    • Viral Videos
  • राजनीति
  • व्यवसाय
  • मनोरंजन
  • खेल
  • Opinion
    • लाइफस्टाइल
Nav Himachal
  • राष्ट्रीय
  • प्रदेश
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • वीडियो
    • Special Updates
    • Rashifal
    • Entertainment
    • Business
    • Legal
    • History
    • Viral Videos
  • राजनीति
  • व्यवसाय
  • मनोरंजन
  • खेल
  • Opinion
    • लाइफस्टाइल
No Result
View All Result
Nav Himachal
No Result
View All Result

Latest News

पहलगाम आंतकी हमला, ऑपरेशन सिंदूर, सीजफायर से लेकर PM मोदी के संबोधन तक, जानें पूरी टाइमलाइन

‘हमले का जवाब भारत अपनी शर्तों पर देगा’, PM मोदी ने आदमपुर से आतंक को दिया कड़ा संदेश

CBSE12वीं के नतीजे घोषित, लड़कियों ने मारी बाजी, 88.39 प्रतिशत विद्यार्थी पास

PM मोदी ने आदमपुर एयरफोर्स स्टेशन का किया दौरा, जवानों को सफल ऑपरेशन की बधाई दी

IPL 2025 का बदला हुआ शेड्यूल जारी, 17 मई से फिर शुरू होगा टूर्नामेंट, 3 जून को फाइनल

  • राष्ट्रीय
  • प्रदेश
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • वीडियो
  • राजनीति
  • व्यवसाय
  • मनोरंजन
  • खेल
  • Opinion
  • लाइफस्टाइल
Home Opinion

Opinion: ‘सांस्कृतिक मार्क्सवाद’ सॉफ्ट पॉवर कोलोनाइजेशन का हथियार

2004 में टाइम पत्रिका के दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों में से एक प्रसिद्ध ब्रिटिश-अमेरिकी इतिहासकार नियाल फर्गुसन ने कहा है, "सॉफ्ट पावर बहुत शांत होता है.

Yenakshi Yadav by Yenakshi Yadav
Nov 18, 2024, 05:51 pm GMT+0530
Urban Naxalism

Urban Naxalism

FacebookTwitterWhatsAppTelegram

2004 में टाइम पत्रिका के दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों में से एक प्रसिद्ध ब्रिटिश-अमेरिकी इतिहासकार नियाल फर्गुसन ने कहा है, “सॉफ्ट पावर बहुत शांत होता है. हमें सेना या आर्थिक हार्ड पावर को प्रयोग करने की आवश्यकता ही क्या है जबकि हमारे पास इससे बेहतर संसाधन सॉफ्ट पावर के रूप में मौजूद हैं.”

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत जी ने जब नागपुर में विजयदशमी के अवसर पर अपने संबोधन में ‘सांस्कृतिक मार्क्सवाद’ और ‘वोक संस्कृति’ पर अपना विचार रखा तो नियाल फर्गुसन की इस बात के दीर्घकालिक मायने भारत के परिप्रेक्ष्य में समझे जा सकते हैं. खुद को ‘जागृत’ या ‘वोक’ कहने वाले लोग आधुनिकता के नाम पर पारंपरिक मान्यताओं और व्यवस्थाओं को ध्वस्त करने का प्रयास कर रहे हैं. भागवत जी ने स्पष्ट रूप से कहा कि ये विचारधारा विनाशकारी और सर्वभक्षी है, जो भारतीय समाज के मूल्यों और उसकी सांस्कृतिक धरोहर के खिलाफ काम कर रही है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ये लोग न केवल भारत में, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी सुव्यवस्था, नैतिकता, उपकार और गरिमा के विरोधी हैं. उनके अनुसार, ये ताकतें समाज में अलगाव और भेदभाव पैदा करके उसे कमजोर करना चाहती हैं ताकि विनाशकारी शक्तियों का प्रभुत्व कायम किया जा सके.

‘वोक संस्कृति’ की आलोचना करते हुए भागवत जी ने कहा कि ये लोग शिक्षा और मीडिया पर नियंत्रण करके समाज को भ्रम, भय और घृणा के चक्रव्यूह में फंसाना चाहते हैं. उन्होंने बताया कि ‘वोक’ विचारधारा का उद्देश्य शिक्षा, संस्कृति, राजनीति और सामाजिक वातावरण को अराजक और भ्रष्ट बनाना है, जिससे समाज भीतर से कमजोर हो जाए. भागवत जी ने कहा कि इस विचारधारा से प्रभावित लोग नहीं चाहते कि भारत अपने दम पर खड़ा हो और इसलिए वे समाज की एकजुटता को तोड़ने के लिए सक्रिय हैं. उन्होंने देशवासियों से आह्वान किया कि वे भारतीय संस्कृति और मूल्यों पर आधारित सकारात्मक बदलावों के साथ आगे बढ़ें, जिससे न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया को सही दिशा मिल सके. कुल मिलाकर भागवत जी ने सॉफ्ट पॉवर कोलोनाइजेशन पर आघात करते हुए भारतीय समाज को इसके विरुद्ध जागरूक करने का प्रयत्न किया. आइये मोहन भागवत जी के इन विचारों का गहराई से जाननें का प्रयत्न करते हैं.

दुनिया में हुए लोकतांत्रिक जागरण एवं संचार क्रांति के द्वारा जब औपनिवेशिक शक्तियों के लिए सामाजिक व शारीरिक गुलामी संभव नहीं रही तो वैचारिक गुलामी का एक नया दौर प्रारंभ किया गया जिसे सॉफ्ट पॉवर कोलोनाइजेशन कहा जाता है. इस नए दौर की औपनिवेशक शक्तियां धर्मान्तरणकारी, पूंजीवादी और वामपंथी स्वरूपों में इस वैचारिक गुलामी को प्रभावी बनाते दिखाई देती हैं. वैश्विक स्तर पर इस्लाम एवं ईसाइयत के बीच चलने वाला घोषित युद्ध हो या पूंजीवादी देशों एवं वामपंथी विचारधारा के बीच का अघोषित युद्ध, भारत इन अधर्मी ताकतों के लिए जनसँख्या, भूगोल, जलवायु, आदि सभी रूपों से अपने प्रदर्शन के लिए सबसे सुखद संभावनाओं वाला देश दिखाई पड़ता है. दुनिया भर में 1991 में हुए साम्यवादी-वामपंथी शक्तियों के पराभव के बाद चीन धीरे-धीरे एक पूंजीवादी देश बन गया तथा भारतीय वामपंथी विचारधारा भारत में एक परिजीवी बनकर इस्लामिक एवं ईसाई धर्मान्तरण एवं पूंजीवादी ताकतों की बी टीम के रूप में कार्य कर रही है. इसका एकमात्र लक्ष्य है भारत की सनातन परंपरा का नुकसान कर इसे इस्लामिक एवं ईसाई ताकतों का उपनिवेश बना दिया जाए. इन्हीं उपरोक्त विचारों के क्रम में विगत 3 दशाब्दियों से वैश्वीकरण एवं उदारीकरण के नाम पर पूंजीवादी देशों (अमेरिका, यूरोप एवं चीन) के द्वारा भारत को आर्थिक उपनिवेश बनाने एवं धर्मान्तरण की शक्तियों द्वारा इसे अरब एवं वेटिकन का धार्मिक उपनिवेश बनाने हेतु भारत की कुटुंब प्रणाली पर लगातार आघात किया जा रहा है क्यों की यही परिवार व्यवस्था इन कुचक्रों हेतु सबसे बड़ी बाधा बन रहा है.

उपभोक्तावाद के निशाने पर भारतीय:

उपभोक्तावाद वह सिद्धांत है जिसके अनुसार ऐसे विचार गढ़े जाते हैं की जो व्यक्ति बड़ी मात्रा में वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग करते हैं, वे बेहतर स्थिति में होते हैं. थोरस्टीन वेबलन 19वीं सदी के अर्थशास्त्री और समाजशास्त्री थे, जिन्हें अपनी पुस्तक “द थ्योरी ऑफ़ द लीजर क्लास” (1899) में “विशिष्ट उपभोग” शब्द गढ़ा. विशिष्ट उपभोग किसी की सामाजिक स्थिति को दिखाने का एक साधन है, खासकर जब सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित सामान और सेवाएँ उसी वर्ग के अन्य सदस्यों के लिए बहुत महंगी हों. आमतौर पर उपभोक्तावाद का मतलब पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में रहने वाले लोगों की अत्यधिक भौतिकवाद की जीवनशैली अपनाने की प्रवृत्ति से है, जो कि रिफ्लेक्सिव, अत्यधिक उपभोग के इर्द-गिर्द घूमती है. सांस्कृतिक पारिवारिक ढांचे में एक ओर जहाँ एक भाई दुसरे के सुख दुःख में भाग लेकर, अपने माता पिता की सेवा करने में सुख और शांति महसूस करता था, उसे अब उपभोक्तावाद ने कमाई के अनुरूप अपने भौतिक सुखों की वृद्धि के मानक पर विभाजित कर दिया.

उपभोक्तावाद ने विज्ञापन उद्योग के माध्यम से अपने उपभोक्ताओं को जन संस्कृति के अगुआ के रूप में स्थापित करती है जो सक्रिय और रचनात्मक लोगों के बजाय ब्रांडों द्वारा नियंत्रित लोगों को लोकप्रिय बनती है. ऐसे नियोजित पूर्वाग्रह उपभोक्तावाद को जन्म देते हैं. अगर इन पूर्वाग्रहों को खत्म कर दिया जाए, तो बहुत से लोग कम उपभोक्तावादी जीवनशैली अपनाएंगे. उपभोक्तावाद का एक उदाहरण हर साल मोबाइल फोन के नए मॉडल पेश करना है. जबकि कुछ साल पुराना मोबाइल डिवाइस पूरी तरह से काम करने लायक और पर्याप्त हो सकता है, उपभोक्तावाद लोगों को उन मोबाइल को छोड़ने और नियमित आधार पर नए मोबाइल खरीदने के लिए प्रेरित करता रहता है. जबकि यही पैसा परिवार के भाई, भतीजे, बेटी, बुजुर्ग माता-पिता की जरूरतों में खर्च हो सकता था लेकिन उपभोक्तावाद ने इस सामाजिक साहचर्य को ख़त्म कर दिया. इसी उपभोगवादी समाज में अब अपने रिश्तेदारों मामा, चाचा, फूफा के यहाँ रहकर पढ़ने-लिखने, जीवन बनाने जैसे उदहारण भी दिखना लगभग शून्य हो चुका है. इस अर्थ में, उपभोक्तावाद को पारंपरिक मूल्यों और जीवन के तरीकों के विनाश, बड़े व्यवसायों द्वारा उपभोक्ता शोषण, पर्यावरण क्षरण और नकारात्मक मनोवैज्ञानिक प्रभावों में योगदान देने के लिए व्यापक रूप से समझा जा सकता है.

परिवार/विवाह संस्कार पर आघात:

कुटुंब व्यवस्था का आधार स्तम्भ है विवाह संस्कार. पति एवं पत्नी मिलकर वंश परंपरा में तीन पीढ़ियों का पलान-पोषण करते हैं, जिसमें उनके माता-पिता एवं बच्चे शामिल होते हैं. पूंजीवादी शक्तियों के भारत में पनपने में यह सबसे बड़ी बाधा हैं क्योंकि एक ही छत के नीचे स्त्रियाँ मिलकर सभी गृहकार्य कर लेती हैं और पुरुष मिलकर आर्थिक एवं सामाजिक दायित्व निभाते हैं. बजुर्ग, बच्चों के साथ संवाद कर उनके जिज्ञासाओं को पुष्ट करते हुए उन्हें सामाजिक संस्कार देते हैं. कल्पना करिए कि यही विवाह संस्कार टूटने से क्या प्रभाव पड़ेगा. बुजुर्गों को मोटी फीस देकर वृद्धाश्रम में रहना पड़ेगा, उनके लिए नर्स, कुक, क्लीनर आदि सेवक सेविकाएँ सब पैसे पर आयेंगे. इसके अलावा सभी स्त्री एवं पुरुष जो एकल जीवन शैली में रहेंगे वो भी अपनी सभी जीवन से जुडी आवश्यकताओं हेतु बाजार पर निर्भर होंगे. घर से रसोई कक्ष खत्म होगा तो रेस्टोरेंट व्यवसाय को गति मिलेगी. इसके अलावा कपड़े धुलने हेतु लांड्री, सफाई हेतु क्लीनर आदि सभी आवश्यकताओं हेतु व्यक्ति बाजार पर निर्भर होगा. ‘यूज एंड थ्रो’ की संस्कृति विकसित होने से पूंजीवाद पर निर्भर व्यक्ति एक इकाई के रूप में भाव शून्य होकर केवल पैसे कमाकर अपनी जरूरतों को पूर्ण करने का एक यन्त्र बन जाएगा.

विवाह परंपरा के समाप्त होने से व्यक्ति का कुटुंब समाप्त होगा तो एकल व्यक्ति का ब्रेनवाश करना धर्मान्तरण गिरोहों के लिए बेहद आसान होगा. किसी को वृद्धाश्रम की सेवा के नाम पर मतांतरित किया जायेगा तो किसी को सांसारिक मुक्ति के नाम पर. बच्चे जो अपने बाबा-दादी से अलग परिचारिकाओं के संरक्षण में पलेंगे, या माता-पिता के साथ एकाकी जीवन में होंगे तो उनके भीतर मानवीय संवेदनाएं और सामाजिक संस्कार शून्य होंगे. इससे उनका ब्रेनवाश आसानी से संभव होगा. अभी सम्पूर्ण विश्व ने आईएसआईएस के द्वारा यूरोप के बच्चों को आतंक हेतु इन्टरनेट पर प्रभावित करते देखा गया जिससे वैश्विक स्तर पर चिंताएं बढ़ी हैं. यह उदहारण अब केरल और बंगाल आदि भारतीय प्रदेशों में भी दिखाई दे रहे हैं.

फ्री-सोल और DINK संस्कृति के कुचक्र में नई पीढ़ी:

“DINK” एक संक्षिप्त नाम है जिसका अर्थ है “डबल इनकम, नो चाइल्ड्स”, जो उन दम्पतियों को संदर्भित करता है जो स्वेच्छा से निःसंतान हैं. विवाह परंपरा का विरोध और यौन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु लिव-इन संबंधों के प्रचार द्वारा भारत के सामाजिक चरित्र हरण के पीछे धर्मांतरणवादी समूहों का योगदान है. इसके लिए इस प्रकार के विमर्श को प्रमुखता दी जाती है जिसमें युवाओं को बताया जाता है की आप मुक्त इकाई हो, “जिंदगी न मिलेगी दोबारा” आदि जुमलों को आधार बनाकर माता, पिता, समाज एवं परम्पराओं को धता बताकर केवल अपने करियर निर्माण पर ध्यान देने की बात कही जाती है. इससे पूंजीवादी कंपनियां एक मानव को पारिवारिक इकाई से औद्योगिक इकाई के रूप में परिवर्तित कर केवल अपना उल्लू सीधा करते हैं और जब एक आयु और उर्जा के बाद आप को एहसास होता है की परिवार और समाज की आवश्यकता है तब तक देर हो चुकी होती है और समाज के प्रवाह में पीछे छुट गए युवा डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं. यही अवसादग्रस्त युवा हॉस्पिटल, नशीली दवाओं, शराब, नाईट क्लब के व्यव्साय को फलने फूलने में मदद करते हैं और जब जवानी का आवेग थमता है तो निराश और एकाकी जीवन धर्मांतरणवादी समूहों का सबसे उपयुक्त शिकार बन जाता है.

फ्री-सोल माधुरी गुप्ता की कहानी: माधुरी गुप्ता भारतीय विदेश सेवा की वरिष्ठ अधिकारी थीं. वे 52 साल की थीं, लेकिन अविवाहित थीं. उन्होंने मिस्र, मलेशिया, जिम्बाब्वे, इराक और लीबिया समेत कई देशों में वरिष्ठ पदों पर काम किया था. उर्दू पर उनकी अच्छी पकड़ के कारण उन्हें पाकिस्तान भेजा गया, जहाँ उन्हें वीज़ा के साथ मीडिया का प्रभार भी दिया गया. पाकिस्तान में माधुरी गुप्ता की मुलाकात जमशेद उर्फ जिम्मी नाम के 30 साल के शख्स से हुई. युवक ने अपनी वाकपटुता और हाजिरजवाबी से माधुरी गुप्ता का दिल जीत लिया. इतना ही नहीं माधुरी गुप्ता ने इस्लाम धर्म भी अपना लिया. माधुरी गुप्ता जमशेद के प्यार में देशद्रोही हो गई है और वो भारत की गुप्त सूचनाएं जमशेद को दे रही थी. दरअसल जमशेद आईएसआई का जासूस था. आईएसआई ने उसे ट्रेनिंग दी और माधुरी गुप्ता को फंसाने के लिए उसका इस्तेमाल किया क्योंकि जब आईएसआई को पता चला कि माधुरी गुप्ता 52 साल की उम्र में अविवाहित है तो वो जरूर किसी साथी की तलाश में होगी.

भारतीय त्योहारों पर कुचक्र:

भारत की परिवार व्यवस्था पर आघात करने के लिए ऐसे सभी भारतीय तीज त्यौहारों पर आघात किया जा रहा है जिसे भारतीय परिवार मिलजुल कर मनाते हैं. इसके लिए औपनिवेशिक मानसिकता वाले धर्मांतरण गैंग स्कूलों, विश्वविद्यालयों एवं कॉरपोरेट संस्थाओं आदि में ईसाइयों के त्योहार पर छुट्टियां प्रदान करते हैं परंतु हिंदू त्योहारों पर धीरे-धीरे लंबी छुट्टियां को समाप्त कर एकदिवसीय छुट्टी दी जाती है. कॉन्वेंट आधारित स्कूली शिक्षा एवं वामपंथी नेक्सस के द्वारा नियंत्रित होने वाले विश्वविद्यालयों के द्वारा जानबूझकर बच्चों की परीक्षाओं को हिंदू त्योहारों के इर्द-गिर्द डाला जाता है जिससे चाहते हुए भी कोई परिवार इकट्ठा होकर त्योहारों का आनंद न ले सके. कॉर्पोरेट कंपनियों में 15 दिसंबर से लेकर 31 दिसंबर तक घोषित रूप से छुट्टियां कर दी जाती हैं क्योंकि इस दौरान इसाई क्रिसमस के लिए छुट्टियां मनाते हैं लेकिन तर्कसंगत बात यह है कि हिंदुओं के लिए ऐसी छुट्टियों का क्या मतलब?

पूंजीवादी वामपंथी नेक्सस ने भारत में एक बड़ा विमर्श खड़ा कर दिया की दीपावली मनाने से प्रदूषण होता है, होली मनाने से पानी की बर्बादी होती है, दशहरा मनाने से वायु प्रदूषण होता है. करवाचौथ जैसे पति-पत्नी के पवित्र त्यौहार को पितृ सत्तात्मक कहकर इसलिए आलोचना की जाती है क्योंकि यह अब्राहमइक मज़हबी बहुपत्नी व्यवस्था के विरुद्ध एक पत्निधर्म संबंध की मजबूती को दर्शाता है. पश्चिमी त्योहारों जैसे वैलेंटाइन डे, थैंक्सगिविंग, क्रिसमस आदि पर महंगे उपहार के द्वारा पूंजीवाद को प्रमोट किया जाता है.

LGBT एक सुनियोजित षड़यंत्र:

वामपंथ का लम्बे समय तक हाशिये पर जाने के बाद यूरोप में इसकी वापसी अचानक एक नए कलेवर में हुई. अचानक जगह-जगह यूरोप में गे-प्राईड, LGBT प्राइड रैली आदि होने लगी और उसके प्रायोजक यह बड़े-बड़े फैशन ब्रांड है क्योंकि इन फैशन ब्रांड को यह लगता है कि जब आदमी के पास पैसा होगा तब आदमी उनके ब्रांड पर पैसा खर्च करेगा और किसी भी आदमी की कमाई का 90% हिस्सा उसके परिवार पर खर्च हो जाता है इसीलिए यह फैशन ब्रांड LGBT कल्चर को खूब बढ़ावा दे रहे हैं. बिजनेस हाउस चाहते हैं कि लड़के और लड़कियां विवाह ना करें अपनी यौन कुंठा एक-दूसरे के साथ मिटाएं ताकि उनकी जो कमाई है वह कमाई परिवार पर खर्च ना हो फिर इस तरह की फैशन मैगजीन में तस्वीरें देखकर उनके ब्रांड पर पैसे खर्च करें. अमेरिका भी तेजी से इसकी गिरफ्त में आ रहा है. मुझे बराक ओबामा की वह चेतावनी याद आ रही थी कि जब वह अमेरिकी युवको को संबोधित करते हुए कह रहे थे अगर तुम अभी भी नहीं जागे तब भारत के युवा तुम्हारी सारी नौकरी-बिजनस खा जाएंगे.

अमेरिका, आयरलैंड और दूसरे तमाम देशों में गर्भपात पर ईसाइयत का हवाला देकर प्रतिबंध लगवा देता है. गर्भपात की इजाजत नहीं देता वही देश दुनिया भर में गे और लेस्बियन कल्चर पर खामोश क्यों है ? इसका उत्तर है की पूंजीवाद की चर्च से जुगलबंदी एवं वामपंथ की खोल में छुपकर प्रकट हुआ इस्लाम अपने अपने स्वार्थों हेतु बाजार में संयुक्त होकर भारत के संस्कृति और संस्कारों के विनाश हेतु तैयार हैं.

उपरोक्त परिस्थितियों से हम भारतीय परिवारों के लक्षित रूप से टूटने की भयावहता को समझ सकते हैं और इसके दुष्परिणाम भारतीय समाज पर पड़ना दिखाई देना प्रारंभ हो चुका है. ऐसे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कुटुंब प्रबोधन कार्यक्रम देश विदेश में फैले भारतवंशी परिवारों हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण है क्यों की यही परिवार सम्पूर्ण भारत के सांस्कृतिक, सामाजिक, वैज्ञानिक और अध्यात्मिक विरासत के परिचायक हैं.

ओटीटी जैसे नए मंचों से षड्यंत्र:

भारत में ओटीटी प्लेटफार्म्स की तेजी से बढ़ती लोकप्रियता ने मनोरंजन के नए द्वार खोले हैं, लेकिन इसके साथ ही कुछ नकारात्मक प्रभाव भी सामने आए हैं. इन प्लेटफार्म्स पर कई ऐसे वेब सीरीज और फिल्मों का प्रसारण हो रहा है, जिनमें हिंसा, अश्लीलता और आपत्तिजनक सामग्री को प्रमुखता दी जाती है. इन प्लेटफार्म्स पर आसानी से उपलब्ध कंटेंट में जाति, धर्म और सामाजिक मुद्दों को ऐसे तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है, जो समाज में नफरत और विभाजन को बढ़ावा देता है.

ओटीटी कंटेंट पर नियंत्रण की कमी और सेंसरशिप न होने के कारण, निर्माता अक्सर विवादास्पद विषयों का सहारा लेते हैं, जिनसे धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं. कई सीरीज में धर्म और सांस्कृतिक प्रतीकों का अपमानजनक चित्रण होता है, जिससे समाज में तनाव और असहमति बढ़ती है. दर्शकों को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि वह किस प्रकार की सामग्री का सेवन कर रहे हैं और उसका उनके विचारों और आचरण पर क्या प्रभाव पड़ रहा है. सरकार और समाज को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ओटीटी प्लेटफार्म्स पर प्रसारित सामग्री स्वस्थ, जिम्मेदार और समाज को एकजुट करने वाली हो, ताकि आने वाली पीढ़ियां एक सुरक्षित और सकारात्मक सामाजिक वातावरण में विकसित हो सकें.

डॉ. मोहन भागवत द्वारा उठाए गए बिंदु यह दर्शाते हैं कि ऐसी विचारधाराएं जो सांस्कृतिक मार्क्सवाद या वोक विचारधारा के तहत आती हैं, भारतीय समाज में भेदभाव, भ्रम, और अव्यवस्था फैलाने की कोशिश करती हैं. इनका उद्देश्य पारंपरिक सांस्कृतिक व्यवस्थाओं और मूल्यों को ध्वस्त करना है, ताकि समाज में अराजकता और विभाजन पैदा हो सके. वोक संस्कृति के प्रति सावधानी बरतते हुए हमें अपने समाज की एकता, सांस्कृतिक धरोहर और नैतिकता को बनाए रखना होगा. यह अत्यावश्यक है कि भारतीय समाज अपने सांस्कृतिक मूल्यों पर गर्व करे और अपने रास्ते पर अडिग रहते हुए अपने सांस्कृतिक मूल्यों को अपनी शक्ति बनाकर विश्व मंच पर सॉफ्ट पॉवर के रूप में प्रसारित करें जैसे वर्त्तमान में विश्व योग, आध्यात्म और आयुर्वेद के रूप में हमारी सांस्कृतिक विरासत को स्वीकार कर रहा है. इस तरह से भारत अपने दम पर खड़ा होकर दुनिया के सामने एक सशक्त और समृद्ध राष्ट्र के रूप में उभरेगा जिसका नेतृत्व लम्बे समय तक विश्व को आलोकित कर सकेगा.

(लेखक, IIM कलकत्ता से शिक्षित व लोकनीति विश्लेषक हैं.)

शिवेश प्रताप

हिन्दुस्थान समाचार

Tags: Cultural MarxismDr Mohan BhagwatOpinionUrban Naxalism
ShareTweetSendShare

RelatedNews

(Opinion) बुद्ध पूर्णिमा विशेष: महात्मा बुद्ध दया – करुणा और मानवता के पक्षधर
Opinion

(Opinion) बुद्ध पूर्णिमा विशेष: महात्मा बुद्ध दया – करुणा और मानवता के पक्षधर

Opinion: आतंक पर भारत का सटीक प्रहार
Opinion

Opinion: आतंक पर भारत का सटीक प्रहार

ऑपरेशन सिंदूरः बदला हुआ भारत, बदला लेना जानता है
Opinion

ऑपरेशन सिंदूरः बदला हुआ भारत, बदला लेना जानता है

पंचायती राज दिवस विशेष: विकसित भारत की नींव में गांव और युवाओं की भूमिका
Latest News

पंचायती राज दिवस विशेष: विकसित भारत की नींव में गांव और युवाओं की भूमिका

Opinion: होली खेलें पर सावधानी के साथ
Latest News

Opinion: होली खेलें पर सावधानी के साथ

Latest News

न किसी ने देखा चेहरा, न किसी ने सुनी आवाज…जानिए 2022 से अब तक पाकिस्तान में अज्ञात बंदूकधारियों ने कितने आतंकी किए ढेर

न किसी ने देखा चेहरा, न किसी ने सुनी आवाज…जानिए 2022 से अब तक पाकिस्तान में अज्ञात बंदूकधारियों ने कितने आतंकी किए ढेर

पहलगाम आंतकी हमला, ऑपरेशन सिंदूर, सीजफायर से लेकर PM मोदी के संबोधन तक, जानें पूरी टाइमलाइन

पहलगाम आंतकी हमला, ऑपरेशन सिंदूर, सीजफायर से लेकर PM मोदी के संबोधन तक, जानें पूरी टाइमलाइन

‘हमले का जवाब भारत अपनी शर्तों पर देगा’, PM मोदी ने आदमपुर से आतंक को दिया कड़ा संदेश

‘हमले का जवाब भारत अपनी शर्तों पर देगा’, PM मोदी ने आदमपुर से आतंक को दिया कड़ा संदेश

CBSE12वीं के नतीजे घोषित, लड़कियों ने मारी बाजी, 88.39 प्रतिशत विद्यार्थी पास

CBSE12वीं के नतीजे घोषित, लड़कियों ने मारी बाजी, 88.39 प्रतिशत विद्यार्थी पास

PM मोदी ने आदमपुर एयरफोर्स स्टेशन का किया दौरा, जवानों को सफल ऑपरेशन की बधाई दी

PM मोदी ने आदमपुर एयरफोर्स स्टेशन का किया दौरा, जवानों को सफल ऑपरेशन की बधाई दी

IPL 2025 का बदला हुआ शेड्यूल जारी, 17 मई से फिर शुरू होगा टूर्नामेंट, 3 जून को फाइनल

IPL 2025 का बदला हुआ शेड्यूल जारी, 17 मई से फिर शुरू होगा टूर्नामेंट, 3 जून को फाइनल

हर्षवर्धन चौहान ने की 23 करोड़ की संपर्क सड़क योजना की शुरुआत, हजारों को होगा लाभ

हर्षवर्धन चौहान ने की 23 करोड़ की संपर्क सड़क योजना की शुरुआत, हजारों को होगा लाभ

‘पानी और खून एक साथ नहीं बह सकता’, देश के नाम संबोधन में बोले PM मोदी

‘पानी और खून एक साथ नहीं बह सकता’, देश के नाम संबोधन में बोले PM मोदी

भारतीय सेना ने पाकिस्तान को फिर दिखाया आईना, कहा- हम अगले मिशन के लिए तैयार

भारतीय सेना ने पाकिस्तान को फिर दिखाया आईना, कहा- हम अगले मिशन के लिए तैयार

ऑपरेशन सिंदूर के बाद खुला कांगड़ा का गगल एयरपोर्ट, कमर्शियल फ्लाइटों ने भरी उड़ान

ऑपरेशन सिंदूर के बाद खुला कांगड़ा का गगल एयरपोर्ट, कमर्शियल फ्लाइटों ने भरी उड़ान

  • Home
  • About Us
  • Contact Us
  • Privacy Policy
  • Terms & Conditions
  • Disclaimer
  • Sitemap

Copyright © Nav-Himachal, 2024 - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • राष्ट्रीय
  • प्रदेश
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • वीडियो
  • राजनीति
  • व्यवसाय
  • मनोरंजन
  • खेल
  • Opinion
    • लाइफस्टाइल
  • About & Policies
    • About Us
    • Contact Us
    • Privacy Policy
    • Terms & Conditions
    • Disclaimer
    • Sitemap

Copyright © Nav-Himachal, 2024 - All Rights Reserved.