Digital Arrest: आज भारतीय समाज में डिजिटल अरेस्ट बहुत बड़ी समस्या बन कर उभरी है. यह साइबर क्राइम का नया स्वरूप है. पिछले कुछ महीनों से लोग बहुत तेजी से इसकी चपेट में आए हैं. हैरानी की बात यह है कि डिजिटल अरेस्ट का सबसे ज्यादा शिकार पढ़े-लिखे लोग मसलन डॉक्टर, अधिकारी, व्यवसायी, रिटायर्ड अधिकारी और सेना के अधिकारी हो रहे हैं. यह समस्या इतनी गंभीर होती जा रही है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी डिजिटल अरेस्ट के बारे में लोगों से सावधान रहने का आग्रह करना पड़ा.
इस गंभीर होती समस्या में दो बातें अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. पहला यह कि ज्यादातर पढ़े-लिखे लोग ही इसका शिकार क्यों हो रहे हैं? दूसरा, आखिरकार स्कैमर्स को लोगों का एकदम सटीक डेटा मिल कहां से रहा है?
यह मामला इतना गंभीर है कि पिछले तीन महीने में केवल दिल्ली-एनसीआर में डिजिटल अरेस्ट के 600 से अधिक मामले चुके हैं. इनमें लगभग 400 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी हुई है. ये सभी पंजीकृत मामले हैं. देश भर में रिपोर्टेड और अनरिपोर्टेड मामलों की संख्या बहुत अधिक है.
हम सभी को यह समझने की जरूरत है कि डिजिटल अरेस्ट होता क्या है? दरअसल, डिजिटल अरेस्ट एक तरह का साइबर फ्रॉड होता है जिसमें धोखेबाज आपको अज्ञात नंबर से फोन या वीडियो कॉल करके पुलिस या प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) या आयकर विभाग का अधिकारी बनकर धमकाता है और आपसे पैसे ऐंठने की कोशिश करता है. वह आपको बताता है कि आप किसी अपराध में शामिल हैं अथवा संलिप्त हैं. वह आपसे पैसे की डिमांड करता है और कहता है कि अगर आप पैसे नहीं देते तो आपको गिरफ्तार कर लिया जाएगा.
स्कैमर इस दौरान फोन कॉल डिसकनेक्ट नहीं करने देता और एक तरीके से वह आपको आपके घर या कार्यालय में ही डिजिटल अरेस्ट कर लेता है. वह आपको डराता है और कहता है कि आपके खिलाफ वारंट जारी हो चुका है या आपकी संपत्ति जब्त कर ली जाएगी. वह इस तरीके से फोन कॉल पर ही दबाव डालता है कि मामले को रफा-दफा करने के नाम से आपसे ऑनलाइन पैसे ट्रांसफर करा लेते हैं.
सबसे अहम सवाल यह है कि फ्रॉड करने वाले इन स्कैमर्स को आपका सटीक डेटा मिलता कहां से है? ऑनलाइन स्कैमर्स, लोगों का डेटा कई तरीकों से हासिल करते हैं. फिशिंग ई-मेल या वेबसाइट स्कैमर्स, ई-मेल या एसएमएस के जरिए फिशिंग लिंक भेजते हैं. ये लिंक क्लिक करने पर, यूजर फेक वेबसाइट पर पहुंच जाता है. वहां से स्कैमर्स, लोगों की जानकारी चुरा लेते हैं. स्कैमर्स, मोबाइल डिवाइस को मालवेयर से संक्रमित कर सकते हैं. इससे, डिजिटल वॉलेट ऐप से सीधे भुगतान जानकारी चुराई जा सकती है. स्कैमर्स, असली ऐप या वेबसाइट की तरह दिखने वाले नकली ऐप या वेबसाइट बनाते हैं. लोग कई बार ऐसे ऐप को अपने डिवाइस पर अनजाने में डाउनलोड कर लेते हैं. आज सोशल मीडिया का जमाना है और स्कैमर्स, सोशल इंजीनियरिंग हमलों का इस्तेमाल करके, यूजर को भुगतान डेटा साझा करने के लिए धोखा देते हैं. इसके अलावा स्कैमर्स, यूजर के डिवाइस और भुगतान टर्मिनलों के बीच संचार को बाधित करते हैं. उसके साथ ही वे भुगतान डेटा पर कब्जा कर लेते हैं.
कई बार ऐसा होता है कि हम सार्वजनिक स्थानों पर असुरक्षित वाई-फाई का इस्तेमाल कर लेते हैं. फ्राड करने वाले इसी दौरान हमारे डिवाइस पर ऐक्सेस लेकर हमारा डाटा चुरा लेते हैं. दूसरा अहम सवाल यह है कि पढ़े लिखे लोग भी स्कैमर्स के जाल में क्यों फंसते हैं? इसका प्रमुख कारण हैं लोगों के अंदर पुलिस और जांच एजेंसियों का डर. इस डर के दो कारण हो सकते हैं. पहला कारण जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली के बारे में है. उसे यह जानकारी नहीं होती कि क्या कोई जांच एजेंसी फोन और वीडियो कॉल पर स्टेटमेंट रिकॉर्ड करती है अथवा बचाने के नाम पर ऑनलाइन पैसा भी मांगती है. दूसरा कारण भी बहुत महत्वपूर्ण है. अगर पीड़ित व्यक्ति सचमुच गलत काम कर रहा है तो वह आसानी से स्कैमर्स के झांसे में आ सकता है. लेकिन अगर व्यक्ति गलत काम कर ही नहीं रहा तो उसके डरने का सवाल ही नहीं उठता. वह स्कैमर्स का डटकर मुकाबला करेगा और अगर वह चाह ले तो स्कैमर्स को एक्सपोज कर भी कर देगा.
आज जिस तरीके से डिजिटल अरेस्ट के मामले बढ़ रहे हैं, उसको देखते हुए लोगों को अत्यधिक जागरूक रहने की आवश्यकता है. अनावश्यक आने वाले लिंक, कॉल से सतर्क रहें. आज हर व्यक्ति को समझने की जरूरत है कि वे इस तरह के मामलों के झांसे में न आए. संदिग्ध या अनवाश्यक कॉल को न उठाए. इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि पुलिस या कोई भी सरकारी एजेंसी कभी भी फोन कॉल या वीडियो कॉल पर किसी भी तरह के मामले की जांच या स्टेटमेंट रिकॉर्ड नहीं करती है. अगर ऐसी कोई कॉल आपके पास आती है तो अपने घरवालों, परिवार और दोस्तों को इस तरह के फ्रॉड के बारे में बताएं ताकि वे भी सतर्क रहें. फ्रॉड का शिकार होने अथवा उसका शक होने पर डरने की जगह साइबर सेल से संपर्क कर इसकी जानकारी देकर आप देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनें.
डॉ. अनिल कुमार निगम
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं.)
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