शिमला: हिमाचल प्रदेश के शिमला शहर से सटे धामी इलाके में शुक्रवार को दो पक्षों के बीच पथरबाजी हुई. लोगों ने एक-दूसरे पर पत्थर बरसाए. यह किसी तरह के उपद्रव व मारपीट की घटना नहीं है, बल्कि अनोखे मेले से जुड़ा पारंपरिक आयोजन है. दरअसल शिमला जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर शिमला ग्रामीण विधानसभा हल्के के तहत धामी के हलोग में पत्थरों का अनोखा मेला लगता है. सदियों से मनाए जा रहे इस मेले को पत्थर का मेला या खेल कहा जाता है. दीपावली से दूसरे दिन मनाए जाने वाले इस मेले में दो समुदायों के बीच पत्थरों की जमकर बरसात होती है. जिसका नमूना शुक्रवार को भी धामी में देखने को मिला. जहां दोनों तरफ से पत्थरों की जमकर बरसात हुई. ये सिलसिला तब तक जारी रहा, जब तक कि एक पक्ष का कोई व्यक्ति लहूलुहान नहीं हो गया. मेले की शुरुआत राजपरिवार के नरसिंह पूजन के साथ होती है.
सालों से चली आ रही इस परंपरा में सैंकड़ों की संख्या में लोग धामी मैदान में शामिल हुए. धामी रियासत के राजा पूरे शाही अंदाज में मेले वाले स्थान पर पहुंचे. माना जाता है कि पहले यहां हर वर्ष भद्रकाली को नर बलि दी जाती थी. लेकिन धामी रियासत की रानी ने सती होने से पहले नर बलि को बंद करने का हुक्म दिया था. इसके बाद पशु बलि शुरू हुई, कालांतर में इसे भी बंद कर तत्पश्चात पत्थर का मेला शुरू किया गया.
राज परिवार के उतराधिकारी जगदीप सिंह ने बताया कि इस मेले में पत्थर से लगी चोट के बाद जब किसी व्यक्ति का खून निकलता है तो उसका तिलक मां भद्रकाली के चबूतरे में लगाया जाता है. उन्होंने दावा किया है कि आज तक पत्थर लगने से किसी की जान नहीं गई है. इस दौरान यदि राज परिवार में किसी की मौत हो जाती है तो पहले मेले की रस्म निभाई जाती है, उसके बाद दाह संस्कार किया जाता है.
हिन्दुस्थान समाचार