नाहन: दीपावली का पर्व पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. तो वहीं, सिरमौर जिला में दीपावली के विशेष अवसर पर एक पारंपरिक पहाड़ी व्यंजन, असकली बनाने की परंपरा अब भी जीवित है. इस व्यंजन को शुभ माना जाता है, और ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में लोग इसे बड़े चाव से तैयार करते हैं.
असकली बनाने के लिए एक खास प्रकार के पत्थर से बने सांचे का उपयोग किया जाता है. इसे पहले चूल्हे पर गर्म किया जाता है, फिर आटे को घोलकर स्वादानुसार मीठी, नमकीन और फीकी अस्कलियाँ बनाई जाती हैं. सांचे में रखकर मिट्टी के ढक्कन से ढक दिया जाता है, और फिर आग में गर्म किया जाता है. असकली को देसी घी, शहद, शक्कर, माश की दाल आदि के साथ परोसा जाता है, जो इसे विशेष स्वाद और पौष्टिकता प्रदान करता है.
स्थानीय निवासी सरिता राठौड़ ने बताया कि उनके परिवार में असकली बनाने की परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है. वह बताती हैं कि सुबह उठकर सबसे पहले आग जलाकर पत्थर के सांचे को गर्म करते हैं, फिर आटे का घोल बनाकर असकली तैयार करते हैं. यह न केवल स्वाद में लाजवाब है, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है. इसे देसी घी, दही, उड़द-राजमा की दाल और शहद के साथ खाया जाता है, जो इसे और भी खास बनाता है.
दीपावली के शुभ अवसर पर सिरमौर में असकली बनाने की परंपरा से न केवल पारंपरिक संस्कृति का सम्मान होता है, बल्कि समाज में खुशी और सम्पन्नता का संकेत भी माना जाता है.
हिन्दुस्थान समाचार