कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है. इस बार धनतेरस आज यानी (29 अक्टूबर) को मनाया जा रहा है. शास्त्रों के अनुसार, इस तिथि को समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे इस वजह से ही धनतेरस या धनत्रयोदशी मनाई जाती है. धनतरेस को भगवान धन्वंतरि के अलावा मां लक्ष्मी, धन के देवता कुबेर और मृत्यु के देवता यमराज भी पूजे जाते हैं.
धनतेरस से ही दीपावली के त्योहार की शुरुआत हो जाती है. इस दिन सोना-चांदी या नए बर्तन खरीदना बहुत शुभ होता है. धार्मिक मान्यताओं अनुसार धनतेरस के दिन झाड़ू खरीदना बेहद शुभ माना जाता है. कहते हैं इससे घर में मां लक्ष्मी का आगमन होता है.
पौराणिक मान्यताएं
शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे. भगवान धन्वंतरि समुद्र से कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को निकले. भगवान धन्वंतरि समुद्र से कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए इस अवसर पर बर्तन खरीदा जाता है और ये एक परंपरा बन गई है. धार्मिक मान्यताओं अनुसार धनतेरस के दिन झाड़ू खरीदना बेहद शुभ माना जाता है. कहते हैं इससे घर में मां लक्ष्मी का आगमन होता है. भगवान धन्वंतरि को विष्णु भगवान का अंश कहा जाता है. भगवान धन्वंतरि ने पूरी दुनिया में चिकित्सा विज्ञान का प्रचार किया. इस दिन को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में भी मनाते हैं. भगवान धन्वंतरि के बाद माता लक्ष्मी दो दिन बाद समुद्र से प्रकट हुई थीं. इसलिए उस दिन दीपावली मनाई जाती है.
धनतेरस की एक कथा भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी है. इस कथा के अनुसार, भगवान वामन ने कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर ही असुराज बलि से दान में तीनों लोक मांग लिए थे और देवताओं ने जो संपत्ति और स्वर्ग खो दिया था वो उन्हें प्रदान किया था. वहीं धनतेरस की एक पौराणिक कथा के अनुसार, एकबार मृत्यु के देवता यमराज ने यमदूतों से प्रश्न किया कि क्या कभी मनुष्य के प्राण लेने में तुमको कभी किसी पर दया आती.
इस पर यमदूतों ने कहा कि नहीं महाराज, हम तो केवल आपके दिए हुए निर्देषों का पालन करते हैं. फिर यमराज ने यमदूतों से बेझिझक होकर बताने को कहा. तब एक यमदूत ने कहा कि एकबार ऐसी घटना हुई है, जिसको देखकर हृदय पसीज गया. एक दिन हंस नाम का राजा शिकार पर निकला और वो जंगल के रास्ते में भटक गया. राजा भटकते-भटकते दूसरे राजा की सीमा पर पहुंच गया.
वहां एक हेमा नाम के राजा का शासन था. उसने अपने पड़ोस के राजा का खूब आदर-सत्कार किया. उसी दिन राजा हेमा की पत्नी को एक पुत्र पैदा हुआ. ज्योतिषों ने उस नवजात बालक के ग्रह-नक्षत्र को देखकर उसके विवाह के चार दिन बाद ही उसके मर जाने की भविष्यवाणी कर दी. इसके बाद राजा ने उस बालक को यमुना तट पर एक गुप्त गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखने का आदेश दिया. जहां कोई भी न आ पाए, लेकिन विधि के विधान कुछ और ही लिखा था.
संयोग से राजा हंस की पुत्री भटकते हुए यमुना तट की उस गुफा में चली गई, जहां राजा का पुत्र था. वहां उसने राजा के पुत्र को देखा. उस राजकुमार को भी वो कन्या भा गई. इसके बाद दोनों ने गन्धर्व विवाह कर लिया. विवाह के चार दिन बाद राजा के पुत्र की मौत हो गई. पति को मरा देख राजकुमारी जोर जोर से रोने लगी. यमदूत ने कहा कि उस नवविवाहिता का रोना सुनकर हृदय पसीज गया था.
यमराज ने सारी बातें सुनी. फिर बोले क्या करें, ये तो विधि का विधान है और हमको मर्यादा में रहकर काम करना ही होगा. फिर यमदूत ने यमराज से पूछा कि क्या कोई ऐसा उपाय है, जिससे अकाल न हो. तब यमराज ने कहा कि धनतेरस के दिन विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करने और दीपदान करने से अकाल मृत्यु नहीं होती. इसी घटना के कारण के धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है और दीपदान किया जाता है.
धनतेरस का शुभ मुहूर्त
29 अक्टूबर को बुध के गोचर से धनतेरस पर लक्ष्मी नारायण योग बन रहा है, जिसे बहुत ही शुभ माना जा रहा है. आज यानी मंगलवार को सुबह से देर रात तक खरीदारी का मुहूर्त है.
इस दिन सोना, चांदी, वाहन, जमीन, घर इलेक्ट्रॉनिक्स आदि खरीदना सुख और समृद्धि का कारक माना गया है. पंडित मनोज पांडेय ने सोमवार को बताया कि अथर्ववेद में बताया गया है कि धन्वन्तरि भगवान विष्णु के तेरहवें अवतार हैं.
ऋषिकेश पंचांग के अनुसार धनतेरस के दिन अभिजीत मुहूर्त दिन के 11.42 बजे से 12.27 बजे तक है. विजय मुहूर्त दोपहर 1.56 से 2.41 तक है. कुंभ लग्न दोपहर 1.29 बजे से 3 बजे तक है. वहीं, वृष लग्न शाम 6.07 बजे से 8.04 बजे तक है. दोपहर से प्रदोष काल 12.36 बजे से शाम 5.33 बजे तक में वाहन जैसे चलायमान सामग्री लेने का शुभ मुहूर्त है उन्होंने ने बताया कि संध्या काल में धन के देवता कुबेर की पूजा होगी.
धनतेरस के दिन ऐश्वर्य में वृद्धि की कामना से भगवान गणेश, माता लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की विधिवत पूजा की जाएगी. यह पूजा संध्या काल स्थिर वृष लग्न में 6.19 से रात 8.15 बजे के बीच की जाएगी.