शिमला: शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने शिमला प्रवास के दौरान यहां प्रतिष्ठित राम मंदिर में गौ ध्वज स्थापित करने का अपना कार्यक्रम स्थगित कर दिया. इसके बाद शंकराचार्य ने गुरुवार काे जाखू मंदिर में गौ ध्वज की स्थापना की. शिमला के राम मंदिर में साईं की मूर्ति स्थापित हाेने के कारण शंकराचार्य ने अपना कार्यक्रम का स्थान बदल कर लोगों को अचंभित कर दिया. शंकराचार्य के इस अभियान के तहत देश में 33 स्थानाें पर गाै ध्वज स्थापित किया जा चुका है. अब 27 अक्टूबर काे वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में गाै ध्वज स्थापित करने के साथ ही शंकराचार्य के इस अभियान का समापन हाेगा.
दरअसल, उत्तर दिशा के ज्योतिष्पीठाधीश्वर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती 1008 का गुरुवार को शिमला के राम बाजार स्थित प्रतिष्ठित राम मंदिर पहुंचकर गौ ध्वज की स्थापित करने और महायज्ञ में शामिल हाेने का कार्यक्रम तय था. इस राम मंदिर में साईं की मूर्ति लगी होने की वजह से उन्हाेंने कार्यक्रम स्थल बदल दिया. शंकराचार्य यहां के राम मंदिर के स्थान पर जाखू मंदिर पहुंचे और वहां गौ ध्वज की स्थापना कर अपना सन्देश दिया.
दरअसल, शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती देशभर में गौ हत्या रोकने और गौ माता को राष्ट्रमाता का दर्जा दिलाने के लिए लाेगाें काे जागरूक कर रहे हैं. इसी कड़ी में शंकराचार्य काे हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में के राम मंदिर में गौ ध्वज की स्थापित करना था. इस राम मंदिर में साईं की मूर्ति होने की वजह से शंकराचार्य ने कार्यक्रम का बहिष्कार कर जाखू मंदिर में ध्वज स्थापना की और राममंदिर में महायज्ञ कार्यक्रम में शामिल हुए बिना ही वापस चले गए है.
शंकराचार्य गुरुवार को सबसे पहले शिमला के प्राचीन मंदिर जाखू पहुंचे और वहां गौ ध्वज की स्थापना कर अपना संदेश दिया है. इस संबंध में शंकराचार्य के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी शैलेंद्र योगिराज सरकार ने बताया कि राम मंदिर ट्रस्ट के पदाधिकारियों से साईं की मूर्ति हटाने को कहा गया, लेकिन मूर्ति नहीं हटाई गई. ऐसे में शंकराचार्य ने जाखू मंदिर से ही गाै ध्वज फहराया और वहीं से वापस देहरादून चले गए. उन्होंने बताया कि हिंदू धर्म में पहले ही 33 करोड़ देवी देवता है. ऐसे में किसी अन्य धर्म के व्यक्ति की मूर्ति (प्रतिमा) का कोई मतलब नहीं है. शंकराचार्य देशभर में जहां भी मन्दिर में साईं की मूर्ति है, वहां पूजा नहीं करते हैं, इसलिए उन्होंने इस कार्यक्रम का बहिष्कार किया है.
उल्लेखनीय है कि अयोध्या राम मंदिर के निर्माण में भी शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. उन्होंने शास्त्र और वेदों के माध्यम से अयोध्या में श्रीराम मंदिर बनने वाली भूमि को रामजन्म की भूमि होने का प्रमाण दिया था. गौ माता को पशु की श्रेणी से हटाकर राष्ट्र माता का दर्जा दिलाने के लिए उन्हाेंने राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू किया है. इसके लिए उन्हाेंने 22 सितंबर को अयोध्या में राम मंदिर में गाै ध्वज स्थापित कर अपनी इस अभियान की यात्रा शुरू की थी. तय कार्यक्रम के अनुसार 33 राज्यों की राजधानी में गाै ध्वज फहराया जाना है. शंकराचार्य की 25 हजार 600 किलोमीटर की यात्रा के बाद 27 अक्टूबर को वृंदावन बांके बिहारी मंदिर में गाै ध्वज फहराने के साथ समाप्त होगी.
हिन्दुस्थान समाचार
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