नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन को बड़ी राहत दी है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ बंधक मामले में मद्रास हाई कोर्ट में चल रही कार्रवाई को रद्द कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट का इस तरह की याचिका पर जांच का आदेश देना पूरी तरह अनुचित है.
कोर्ट ने कहा कि पिता की याचिका गलत है, क्योंकि दोनों लड़कियां बालिग हैं और वे अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि इस फैसले का असर सिर्फ इसी केस तक सीमित रहेगा. सुप्रीम कोर्ट ने 3 अक्टूबर को ईशा फाउंडेशन की जांच के मद्रास हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी. ईशा फाउंडेशन की ओर से पेश रोहतगी ने कहा कि ये धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे हैं. हाई कोर्ट मौखिक बयानों पर ऐसी जांच शुरू नहीं कर सकता.
दरअसल, ईशा फाउंडेशन पर दो महिलाओं को अवैध रूप से बंधक बनाने का आरोप है. तीन अक्टूबर को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दोनों महिलाओं से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये बात की थी. बातचीत में दोनों महिलाओं ने कोर्ट को बताया था कि वे 24 और 27 साल की उम्र से अपनी मर्जी से ईशा फाउंडेशन के आश्रम में रह रही हैं और वे आश्रम से बाहर जाने को स्वतंत्र हैं. उनके माता-पिता भी उनसे मिलने आते रहे हैं. कोर्ट ने एक महिला से पूछा था कि क्या आपको मालूम है कि आपके पिता ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की है, तब महिला ने कहा था कि हां, हम इस मामले में हाई कोर्ट में उपस्थित थे और हमने बताया था कि हम अपनी इच्छा से आश्रम में रह रहे हैं.
मद्रास हाई कोर्ट ने 30 सितंबर को डॉ. एस कामराज की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश जारी किया था. डॉ. कामराज ने कहा था कि उनकी बेटियों को आश्रम में बंदी बनाकर रखा गया है और उन्हें रिहा किया जाए.
हिन्दुस्थान समाचार