नई दिल्ली: भारत और अमेरिका ने मंगलवार को 31 प्रीडेटर ड्रोन खरीदने के लिए 32 हजार करोड़ रुपये के सौदे पर हस्ताक्षर किए. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता वाली सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीएस) ने पिछले सप्ताह अमेरिका से 31 प्रीडेटर ड्रोन खरीदने के सौदों को मंजूरी दी थी. खरीदे जाने वाले ड्रोन के रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल के लिए देश में ही एमआरओ स्थापित किया जाएगा. भारतीय नौसेना को 31 में से 15 ड्रोन, जबकि सेना और वायु सेना को आठ-आठ ड्रोन मिलेंगे, जिनके शांतिकालीन निगरानी में गेम चेंजर साबित होने की उम्मीद है.
दरअसल, चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के संवेदनशील क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति मजबूत करने और निगरानी को बढ़ावा देने के लिए सेना, नौसेना और वायु सेना ने एमक्यू-9बी सशस्त्र ड्रोन की जरूरत जताई थी. खासकर हिंद महासागर क्षेत्र में नौसेना अपनी उपस्थिति बढ़ाना चाहती है. इस ड्रोन के आने के बाद हिंद महासागर पर चीन के खिलाफ घेराबंदी और मजबूत हो सकेगी. इसी क्रम में प्रीडेटर ड्रोन के सौदे को 15 जून, 2023 को रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) से मंजूरी मिली थी. इसके बाद पिछले सप्ताह 10 अक्टूबर को सीसीएस ने भी मंजूरी दे दी.
यह अत्याधुनिक ड्रोन सिर्फ भारतीय नौसेना के लिए खरीदे जाने थे, लेकिन बाद में इसे तीनों सेनाओं के लिए 31 ड्रोन खरीदने का फैसला लिया गया. भारतीय नौसेना इस सौदे के लिए प्रमुख एजेंसी है, जिसमें 15 ड्रोन अपनी जिम्मेदारी के क्षेत्र में निगरानी संचालन के लिए समुद्री बल को दिए जाएंगे. इसके अलावा सेना और वायु सेना को 8-8 ड्रोन मिलेंगे. सौदे के पहले चरण में छह ड्रोन तत्काल एकमुश्त नगद भुगतान करके खरीदे जाएंगे. मौजूदा जरूरतों को देखते हुए फिलहाल दो-दो ड्रोन तीनों सेनाओं को दिए जाएंगे. बाकी 24 ड्रोन अगले तीन वर्षों में हासिल कर लिए जाएंगे. तीनों सेनाओं के लिए खरीदे जाने वाले ड्रोन के लिए दोनों पक्षों ने वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में इस सौदे पर हस्ताक्षर किए गए.
एमक्यू-9 रीपर ड्रोन की खासियतएमक्यू-9 रीपर ड्रोन को सैन डिएगो स्थित जनरल एटॉमिक्स ने बनाया है, जो लगातार 48 घंटे उड़ सकता है. यह 6,000 समुद्री मील से अधिक दूरी तक लगभग 1,700 किलोग्राम (3,700 पाउंड) का पेलोड ले जा सकता है. यह नौ हार्ड-पॉइंट्स के साथ आता है, जो हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलों के अलावा सेंसर और लेजर-निर्देशित बम ले जाने में सक्षम है, जिसमें अधिकतम दो टन का पेलोड है. हथियारबंद ड्रोन से भारतीय सेना उस तरह के मिशन को अंजाम दे सकती है, जिस तरह का ऑपरेशन नाटो बलों ने अफगानिस्तान में किया था.
इसका इस्तेमाल पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकियों के ठिकाने पर रिमोट कंट्रोल ऑपरेशन, सर्जिकल स्ट्राइक और हिमालय की सीमाओं पर लक्ष्य को टारगेट बनाने में किया जा सकता है. पिछले साल भारतीय नौसेना ने पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ सीमा पर तनाव के बीच दो शिकारियों को लीज पर लिया था. इससे भारतीय नौसेना दक्षिणी हिन्द महासागर में घूमने वाले चीनी युद्धपोतों पर नजर रख रही है. वर्तमान में भारतीय सुरक्षा एजेंसियां इजरायली यूएवी, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के नेत्रा और रुस्तम ड्रोन का उपयोग करती हैं.
हिन्दुस्थान समाचार