International Kullu Dusshera Festival: भारत के हर राज्य में दशहरे का पर्व बड़े ही धूम-धाम व अनोखे तरीके से मनाया जाता है, लेकिन हिमाचल के कुल्लू में मनाए जाने वाला दशहरा पूरे विश्व में मशहूर है. इसका कारण है कुल्लू में एक हफ्ते तक आयोजित होने वाला अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव. जिसका आगाज 13 अक्टूबर को कुल्लू के ढालपुर मैदान में हो चुका है और आगामी 19 अक्टूबर तक यहां चलेगा. बता दें कि इसकी शुरुआत 16वीं शताबदी में कुल्लू के राजा जगत सिंह नेगी द्वारा की गई थी. राजा जगत सिंह के वक्त में भगवान रघुनाथ जी की मूर्ति अयोध्या से कुल्लू लाई गई थी, साथ ही उन्होंने अपना सारा राज-पाठ भी श्री रघुनाथ जी को सौंप दिया था. जिसके बाद से ही यहां अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव मनाया जाता है. इस दशहरा उत्सव में कुल्लू के कई ग्रामीण क्षेत्रों से देवी-देवता ढालपुर मैदान में 7 दिनों के लिए विराजते हैं. देवी-देवताओं के दर्शन करने और उनका आर्शीवाद लेने हेतु देश-विदेश से भारी मात्रा में श्रद्धालू यहां आते हैं.
सन् 1637, राजा जगत सिंह के शासन के दौरान मणिकर्ण घाटी के टिप्पर गांव में दुर्गादत्त नाम का एक गरीब ब्राहमण रहता था. किसी ने राजा को सूचना दी कि दुर्गादत्त के पास सूचे मोती हैं, लेकिन ब्राहमण ने बताया की उसके पास कोई भी ऐसे मोती नहीं है, हालांकि ब्राहमण से एक बार फिर राजा ने मोतियां मांगी. जिसके बाद वे डर गया और उसने एक दिन अपने घर में आग लगाकर अपने परिवार के साथ आत्महत्या कर ली. जिसका दोष राजा को लगा और उसे भारी नुक्सान हुआ. इस दोष की वजह से राजा को एक आसाध्य रोग भी हो गया.
बिमारी से परेशान राजा जगत सिंह को झीड़ी के बाबा जिनका नाम किशन दास था, उन्होंने सलाह दी कि राजा आयोध्या के त्रेतनाथ मंदिर से प्रभु राम, मां सीता और वीर हनुमान की मूर्ति लेकर आएं. साथ ही सभी की प्रतिमाओं को कुल्लू के मंदिर में स्थापित कर अपना पूरा राज-पाठ श्री रघुनाथ को सौंप दें, ऐसा करने के बाद राजा ब्राहमण के दोष से मुक्त हो जाएंगे. राजा ने अयोध्या से प्रभु श्री राम की मूर्ति लाने के लिए बाबा के चेले दामोदर दास को कहा. माना जाता है कि पं. दामोदर ने बड़ी ही कठिनाइयों से मूर्ति को चुराया, लेकिन उन्हें हरिद्वार में पकड़ लिया गया. जहां उनकी पिटाई कर मूर्तिर्यों को उनसे छीन लिया गया. इसके बाद अयोध्या के पंड़ित मूर्तियों को वापस ले जाने लगे तो मूर्ति का वजन अचानक बहुत भारी हो गया व कई लोगों से मूर्तियां उठाई तक भी नहीं गईं. लेकिन, वहीं जब दामोदर ने उन्हें उठाया तो वे फूल के समान हल्की हो गईं. जिसके बाद अयोध्या के पंडितों ने इससे भगवान की लीला मानकर मूर्तियों को कुल्लू ले जाने के लिए हाम्मी दे दी. जैसा की बाबा किशन दास ने कहा था, ठीक वैसा ही हुआ. इन मूर्तियों के दर्शन करके राजा जगत सिंह बिल्कुल स्वस्थ हो गए, साथ ही वे रोग मुक्ति भी हो गए. भगवान राम के इस चमत्कार के बाद साल 1660 में राजा ने ठीक होते ही अपना संपूर्ण जीवन श्री राम को अर्पण कर दिया. और स्वयं छड़ीबरदार बनकर सेवा करने लगे.
वर्ष 1660 में जब श्री राम की मूर्ति मकराहड, मणिकर्ण, हरिपुर, नगर के रास्ते कुल्लू पहुंची तभी से यहां दशहरे उत्सव का आयोजन होने लगा. अश्विन महीने में शुरु के 15 दिनों में राजा यहां के सभी 365 देवी-देवताओं को ढालपुर घाटी में रघुनाथ जी के सम्मान में यज्ञ करने के लिए निमंत्रित करते हैं. उत्सव के पहले दिन दशहरे की देवी, मनाली की हिडिंबा कुल्लू आती हैं. इन्हें राजघराने की देवी भी माना जाता है. कुल्लू आने पर जोरदार स्वागत और राजसी ठाठ-बाट से राजमहल में उनका प्रवेश किया जाता है. हिडिंबा के बुलावे पर राजघराने के सभी सदस्य उनका आशीर्वाद लेने आते हैं. इसके उपरांत ढालपुर में हिडिंबा का प्रवेश होता है.
बता दें कि वर्ष 1966 में कुल्लू दशहरे को राज्य स्तर का दर्जा मिला, वहीं 1970 में इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर का दर्जा देने की घोषणा तो हुई, किंतु इसे ये दर्जा मिल न सका. ऐसे में साल 2017 में इसे अंतरराष्ट्रीय उत्सव की मान्यता मिली. अंतराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव शारदीय नवरात्री के 10वें दिन विजयदशमी को भगवान रघुनाथ के रथ यात्रा के साथ आरंभ किया जाता है. इस दशहरे मेले का आयोजन जिला कुल्लू के ढालपुर मैदान में होता है. जिसका समापन अलगे 7 दिन यानी एक सप्ताह के बाद किया जाता है. इसे देवी- देवताओं का वार्षिक सम्मेलन भी कहते हैं. पौराणिक मानयताओं के अनुसार विजयदशमी के दिन प्रभु श्री राम ने रावण का वद्ध किया था. और बुराई पर अच्छाई की जीत हुई थी. यही वजह है कि कुल्लू में दशमी वाले दिन ही इस दशहरे उत्सव की शुरुआत होती है.
साल 2014 में सुल्तानपुर के ऐतिहासिक मंदिर से एक नेपाली युवक ने भगवान रघुनाथ समेत नरसिंह, हनुमान, गणपति और शालिग्राम की मूर्तियां चुरा ली थी. उस समय कुल एक किलो सोने व दस किलो चांदी की मूर्तियों के साथ अन्य सामान भी गायब हुआ था. इस चोरी के कारण ही हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में अंधेरा छा गया था. इसके अलावा कई दिनों तक रघुनाथपुर के साथ लगते क्षेत्रों में लोगों ने अपने घरों में चूल्हा तक नहीं जलाया था. हालांकि, साल 2015 के जनवरी माहिने में पुलिस ने इन सभी मूर्तियों को ढूंढ़ लिया था. जिसके बाद भगवान रघुनाथ की मूर्ति मिलने से यहां लोगो में खुशी की लहर दौड़ गई थी. साथ ही जनवरी में मनाया जाने वाला बसंत पंचमी का पर्व भी यहां बड़े ही जोरदार तरीके से मनाया गया था.