Pt Deen Dayal Upadhyaya Birth Anniversary: देश में प्रखर राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक चिंतक व साहित्यकार के रूप में पहचान बनाने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 108वीं जयंती है. उनका जन्म आज के ही दिन यानी 25 सितंबर को हुआ था. पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जुड़ाव कई सालों तक राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से भी रहा. इतना ही नहीं जब से बीजेपी की स्थापना की गई तब पार्टी में उनके विचारों प्रेरणा की झलक भी मिलती है. यानी वो पार्टी की स्थापना से ही इसके वैचारिक मार्गदर्शक और नैतिक प्रेरणा-स्रोत रहे हैं.
मथुरा जिले के नगला चंद्रभान गांव में 25 सितंबर 1916 को जन्मे पं. दीन दयाल उपाध्याय के माता-पिता का देहांत उनकी छोटी आयु में ही हो गया था. इसके बाद वो ननिहाल में पले बढ़े. वो बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे. शुरुआती शिक्षा को पूरा करने के बाद पं. दीन दयाल उपाध्याय ने कानपुर के सनातन धर्म कॉलेज में बीए में एडमीशन लिया. इस दौरान वो साल 1937 में श्री बलवंत महाशब्दे से मिले और उनके ही कहने पर पं. दीन दयाल उपाध्याय आऱएसएस से जुड़ गए.
संघ में रहने के दौरान ही पं. दीन दयाल उपाध्याय की मुलाकात भारत रत्न नानाजी देशमुख और भाऊराव देवरस से हुई. माना जाता है कि पं. दीन दयाल उपाध्याय के भविष्य की दिशा तय करने में इन दोनों नेताओं ने ही अहम भूमीका अदा की. इसी बीच 21 अक्तूबर 1951 को श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की. जनसंघ से ही पं. दीन दयाल उपाध्याय ने अपनी राजनीति की शुरुआत की.
इसके बाद जब कानपुर में साल 1952 में कानपुर में जनसंघ के प्रथम अधिवेशन में पं. दीन दयाल उपाध्याय यूपी शाखा के महासचिव बने. इसके बाद उनको अखिल भारतीय महासचिव के पद पर नियुक्त किया गया. इसके अलावा पं. दीन दयाल उपाध्याय पत्रकार भी थे. उनके द्वारा तमाम पत्र-पत्रिकाओं का प्रकशन किया गया. उन्होंने मासिक राष्ट्रधर्म का प्रकाशन किया, इसके जरिये उन्होंने हिंदुत्व की विचाराधारा का प्रसार किया.
पं. दीन दयाल उपाध्याय पत्रकार ने शंकराचार्य और चंद्रगुप्त मौर्य की हिंदी में जीवनी भी लिखी. पं. दीन दयाल उपाध्याय दिसंबर 1967 में जनसंघ के 14वें कालीकट अधिवेशन में इसके अध्यक्ष बने, लेकिन वो महज 43 दिनों तक ही जनसंघ के अध्यक्ष की कुर्सी संभाल सके. क्योंकि 10 फरवरी 1968 वो लखनऊ से पटना के लिए ट्रेन में बैठे, लेकिन उनका ये सफर पूरा नहीं हो सका.
11 फरवरी को पं. दीन दयाल उपाध्याय का शव रेलवे लाइन के किनारे मिला. बताया जाता है कि वह जौनपुर तक जिंदा रहे. इसके बाद किसी ने उनको चलती ट्रेन से धक्का मार दिया, जिसके कारण उनकी मौत हो गई.