मंडी: छोटी काशी मंडी में सोमवार को पूरा दिन आसमां देव ध्वनि, ढोल नगाड़ों, बैंड बाजों व देवलुओं के गणपति मोरया उदघोष से गूंजता रहा. दस दिन पंडालों में विराजमान रही दो दर्जन से अधिक गणपति प्रतिमाएं सोमवार को ब्यास नदी की धारा में प्रवाहित कर दी गई. इससे पहले अपने अपने पंडालों से गणपति बप्पा अपने हजारों श्रद्धालुओं के साथ शोभायात्रा में निकले और पूरे शहर में नाचते गाते श्रद्धालुओं के साथ परिक्रमा करते हुए ब्यास घाट पहुंचे जहां पुलिस की कड़ी सुरक्षा के बीच पूरी सावधानी के साथ प्रतिमाओं को अगले वर्ष फिर आना के उदघोष के साथ विसर्जित कर दिया. हर पंडाल से अलग से शोभायात्रा निकली.
स्थानीय देवी-देवताओं की पालकियां भी साथ निकली. श्रद्धालु भी जमकर नाचे और खूब सजाई गई झांकियों में भक्तों ने सजधज कर भाग लिया. शंख ध्वनि व गणपति बप्पा मोरया के भजनों ने पूरे शहर को गणपति के रंग से सराबोर कर दिया. गणपति की तरह तरह की प्रतिमाएं इस बार देखी गई. छोटी से लेकर बड़ी से बड़ी प्रतिमाएं आकर्षक मुद्रा में पंडालों में सजी थी जो शोभायात्रा में निकली. प्राचीन नीलकंठ महादेव में दस फीट के लगभग प्रतिमा सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र रही जबकि सभी का अपना अपना अलग आकर्षण रहा. शहर के सेरी बाजार, चौहट्टा, स्कूल बाजार, कालेज रोड़, मोती बाजार, गणपति मुहल्ला, सन्यारडी, रामनगर मंगवाई, पैलेस कालोनी, जेल रोड़ समेत अन्य जगहों से चली शोभयात्राओं ने राजमाधव मंदिर, बाबा भूतनाथ व अन्य मंदिरों में जाकर शीश भी नवाया. घंटों तक पूरा शहर गणपति उत्सव के समापन की शोभायात्राओं में झूमता नजर आया. यह नजारा देखते ही बनता था.
हर शोभायात्रा के साथ पुलिस का भी पूरा इंतजाम देखा गया ताकि किसी तरह की हुड़दंगबाजी न हो. ब्यास नदी किनारे विसर्जन को देखने तथा अगले साल फि र आने का निमंत्रण देते हुए हजारों लोगों का समूह आह्वान देखते ही बनता था.
गौरतलब है कि पिछले कुछ सालों से मंडी में गणपति उत्सव मनाने की परंपरा लगातार बढ़ रही है. मंडी में 300 साल पुराना सिद्ध गणपति मंदिर भी है जहां से तीन दशक पहले गणपति उत्सव मनाने की यह परंपरा शुरू हुई थी जो अब शहर के हर कोने में होने लगी है. सोमवार को मंडी का पारंपरिक त्यौहार सायर भी मनाया गया. ऐसे में छोटी काशी में उत्सवी माहौल दोगुना रहा.
हिन्दुस्थान समाचार