मंडी: सुहागिन महिलाओं और कन्याओं का सामुहिक पर्व हरितालिका यानि चिड़त्री पर्व मंडी जनपद में गांव-गांव में मनाया गया. भाद्रपद माहिने की शुक्ल पक्ष की तृतीया पर ऐतिहासिक नगरी पांगणा-सुकेत-मंडी जनपद में हरतालिका तीज-चिड़त्री का व्रत रखा गया. इस अवसर पर सुहागिन महिलाओं और कन्याओं ने माता गौरी और भगवान शंकर की घर व मंदिरों में सामुहिक पूजा की.
कन्याओं ने अभिष्ट वर की प्राप्ती के लिए व महिलाओं ने प्रात:काल पानी में नीम और तुलसी की पत्तों को डालकर स्नानादि से निवृत होकर सोलह श्रृंगार कर अपने व पति की दीर्घायु तथा परिवार की सुख समृद्धि के लिए कदली का मंडप बनाकर शिव पार्वती व चिडिय़ों की मिट्टी से बनी मूर्तियों को प्रतिष्ठित कर सनातन विधि विधान से पूजन किया. चिडिय़ों के नाम से मनाए जाने वाले चिड़त्री पर्व की शिव मंदिरो मे विशेष रौनक रही.
वहीं पांगणा में व्रत धारण करने वाली महिलाएं और कँवारी लड़कियाँ ने देशराज गुप्ता के घर व मंदिरों में मिट्टी से बनाई चिडिय़ो़ और शिव-पार्वती की मूर्तियो की ऋ तु फलो, बिल्व पत्र, धतुरे व अन्य पुष्पों से पूजा करने के बाद घर लौटकर फलाहारजिसमें भरेसे की दड़ीटी, साबूदाने का मीठा, दही के साथ बनाए खट्टेआलू, गरी-छुआरे व सूखे मेवों को दूध मे पकाकर बनाए गए खवाणी आदि हल्का खाना खाकर दिन भर के प्रदोश उपवास का रात्रि में पारण किया . वहीं निराहार रहकर और अपनी मनोकामना की प्राप्ती के लिए रात्रि जागरण से भी व्रत धारण करने वाली महिलाएं व कन्याएं मात्र फल और दूध ग्रहण कर निराहार रहकर इस व्रत को पूर्ण किया.
पज्याणु गांव के संस्कृत विद्वान रमेश शास्त्री का कहना है कि हरितालिका तीज चिड़त्री की तैयारी एक सप्ताह पूर्व शुरू हो जाती है. शुभ मुहूर्त में चिकनी मिट्टी लाकर इसमें रूई मिलाकर पानी से गूंथकर चिडिय़ां, मोर, बतख आदि तथा वन्य जीव -जंतु और शिव-पार्वती के श्रीविग्रह बनाकर सूखने के बाद विभिन्न रंगों से सुसज्जित किए जाते है. इसके लएि एक सप्ताह पूर्व ही एक गमले में पूजा के लिए सतनाजा, हरियाली बीजकर इसकी नवीन कोपलों को चिड़त्री की पूजा के बाद शेष के रूप मे भेंट किया जाता है. शु्क्रवार प्रात: मिट्टी से निर्मित चिड़ियों को कन्याओु मेु वितरित कर चिड़त्री का त्योहार संपन्न हो जाएगा. महिलाएं इस व्रत को जहां अखंड सौभाग्य के लिए करती है. वहीं कुंवारी लड़कियां अपने मन के अनुरूप वर प्राप्ती के लिए चिड़त्री का व्रत करती हैं.
सुकेत संस्कृति साहित्य एवं जन कल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष डॉक्टर हिमेंद्र बाली हिम का कहना है कि माता पार्वती ने शिव को पतिरूप में प्राप्त करने के लिए इस व्रत को किया था. माता पार्वती ने शिव को पति रुप मे प्राप्त करने के लिए बारह वर्षों तक अधोमुखी होकर घोर तप किया था. मां पार्वती ने अन्न न खाकर पेड़ों के पत्ते चबाकर, विकराल सर्दी में जल में प्रवेश कर कठिन तप किया था. अनेक स्थानों पर सुहाग चाहने वाली स्त्रियां पार्वती व शिव-शंकर की मूर्तियां बनाकर आज भी पूजन करती हैं तथा व्रत करने वाली स्त्रियां माता पार्वती के समान सुखपूर्वक जीवन यापन कर अंत समय में शिवराम को प्रस्थान करती हैं.
सुभाषपालेकर प्राकृतिक खेती की जिला मंडी की सलाहकार लीना शर्मा व डॉक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि हरितालिका चिड़त्री का पर्व प्रकृति के विविध जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों, फूल-फल जैसे विविध रंगों तथा हमारी समृद्ध संस्कृति का श्रृंगार है. इसके मौलिक स्वरूप को उसी रूप में श्रृंगारित कर संरक्षित करने का देशराज , रविंद्र गुप्ता और पवन गुप्ता के परिजनों व शिव मंदिर समितियों का आज हरितालिका के अवसर पर पूजी जाने वाली मिट्टी की मूर्तियो के निर्माण का प्रयास बहुत ही स्तुत्य है.
हिन्दुस्थान समाचार