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Opinion: 16 अगस्त 1946 में पाकिस्तान की मांग के लिये मुस्लिम लीग का डायरेक्ट एक्शन का दिन

पन्द्रह अगस्त 1947 को भारतीय स्वतंत्रता और यह वर्तमान स्वरूप सरलता से नहीं मिला. यह दिन मानों रक्त के सागर से तैरकर आया है.

Yenakshi Yadav by Yenakshi Yadav
Aug 16, 2024, 03:37 pm GMT+0530
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पन्द्रह अगस्त 1947 को भारतीय स्वतंत्रता और यह वर्तमान स्वरूप सरलता से नहीं मिला. यह दिन मानों रक्त के सागर से तैरकर आया है. बलिदानियों ने जितना बलिदान विदेशी आक्रांताओं से मुक्ति के लिये दिया, उतना ही बलिदान अपने स्वत्व को सुरक्षित रखने के लिये दिया है. और स्वतंत्रता के साथ हुए भारत विभाजन में तो भीषण नरसंहार हुआ ही था लेकिन इससे पहले भारत विभाजन की मांग को बल देने के लिये भी हत्यारों ने लाशों के ढ़ेर लगा दिये थे. यह नरसंहार 16 अगस्त 1946 से शुरू हुआ और मात्र पांच दिन में बंगाल और पंजाब में लाशों के इतने ढेर लग गये थे कि उन्हे उठाने वाले भी नहीं बचे थे. लोग हत्यारों के भय से भागकर जंगलों और अन्य प्रांतों में भाग गये थे. लाशों की सड़ाँध से बीमारियाँ और मौतें हुईं सो अलग. इन पर लगाम 21 अगस्त के बाद लग सकी.

अपने लिये पृथक देश पाकिस्तान की माँग को सशक्त बनाने केलिये मुस्लिम लीग ने इस डायरेक्टर एक्शन का आव्हान अचानक नहीं किया था. इसकी तैयारी सालों से की थी. एक अलग मुस्लिम राष्ट्र का वातावरण बनना 1887-88 के आसपास से आरंभ हो गया था. इसकी झलक सर सैय्यद अहमद के भाषणों से मिलती है. इसे आकार देने के लिये 1906 में मुस्लिम लीग अस्तित्व में आई और 1930-31 में पाकिस्तान नाम भी सामने आ गया था. उसी प्रकार इस डायरेक्ट एक्शन की तैयारी भी वर्षों से की जा रही थी. 1931 में मुस्लिम लीग ने बाकायदा सशस्त्र सैनिकों की भर्ती आरंभ कर दी थी. इसे “मुस्लिम लीग आर्म गार्ड” नाम दिया गया था. 1944 तक अलग-अलग नगरों में इनकी संख्या 22 हजार तक पहुँच गई थी. फरीदपुर में इसका प्रशिक्षण केन्द्र था. इसके एक प्रशिक्षण शिविर में बंगाल के मुख्यमंत्री सोहरावर्दी भी उपस्थित थे उन्होंने इस इन “आर्म गार्ड” को पाकिस्तान के लिए “उपलब्धि” बताया था. 1946 में ऐसे ही एक प्रशिक्षण शिविर में अब्दुल मोबेन खान ने संख्या बढ़ा कर एक लाख करने की आवश्यकता बताई थी. बंगाल में इनकी गतिविधि का केन्द्र कलकत्ता था. इसीलिए बंगाल का विवरण भारत में है. किंतु पंजाब और सिंध में इसका केन्द्र रावलपिंडी, लाहौर और मुल्तान में था. यह क्षेत्र अब पाकिस्तान में है इसलिये वहाँ का कोई विवरण अब भारत में नहीं मिलता.

भारत विभाजन के लिये अंग्रेज और मुस्लिम लीग एक राय थे पर काँग्रेस में कुछ असमंजस थी इसलिए निर्णय की घोषणा में विलंब हो रहा था. काँग्रेस के हर नेता ने पहले विभाजन का विरोध किया था. काँग्रेस पर दबाव बनाने के लिये मुस्लिम लीग ने डायरेक्ट एक्शन के नाम पर यह नरसंहार किया था. डायरेक्ट एक्शन की घोषणा करने के पहले लीग ने खुली चेतावनी दी थी. जुलाई 1946 में मोहम्मद अली जिन्ना ने बॉम्बे में अपने घर पर आयोजित आयोजित पत्रकार वार्ता में घोषणा की थी कि- “मुस्लिम लीग संघर्ष शुरू करने की तैयारी कर रही है और “एक योजना भी तैयार कर ली है”. उन्होंने स्पष्ट कहा था- “यदि मुसलमानों को अलग पाकिस्तान नहीं दिया गया तो वे “सीधी कार्रवाई” शुरू करेंगे.” और अगले दिन जिन्ना ने 16 अगस्त 1946 को “प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस” ​​​​होने की घोषणा कर दी. जिन्ना ने कांग्रेस को चेतावनी दी- “हम युद्ध नहीं चाहते हैं, यदि आप युद्ध चाहते हैं तो हम आपके प्रस्ताव को बिना किसी हिचकिचाहट के स्वीकार करते हैं. हमारे पास या तो एक विभाजित भारत होगा या एक नष्ट भारत होगा.” जिन्ना की इस शब्दावली में भविष्य की पूरी तस्वीर का संकेत है. इसके साथ मुस्लिम लीग के सभी वरिष्ठ नेता संभावित पाकिस्तान के पूरे क्षेत्र में सक्रिय हो गये. बंगाल में इस अभियान की कमान मुख्यमंत्री सोहरावर्दी के हाथ में थी.

मुस्लिम लीग की इस चेतावनी के साथ ही बंगाल और पंजाब के मुस्लिम आबादी बाहुल्य इलाकों से हिन्दुओं का पलायन आरंभ हो गया था. हिन्दुओं में इस भय का कारण बंगाल और पंजाब में निरंतर बढ़ती साम्प्रदायिक घटनाएँ थीं. जिनमें 1930 के बाद तेजी आई. जिसमें पुलिस तटस्थ रहती. पुलिस के तटस्थ रहने का कारण यह था कि जहां मुस्लिम लीग समर्थक सरकारें थीं वहां पाकिस्तान समर्थक नौजवानों को योजनानुसार पुलिस में भर्ती किया गया था. और अन्य प्रांतों में सशस्त्र बालेन्टियर तैयार किये थे. इसलिये इन क्षेत्रों में हिन्दुओं में भय होना स्वाभाविक था और पलायन आरंभ हो गया था. अंततः 1946 में 16 अगस्त का दिन आया. धर्म स्थलों ने मिलकर इतनी हिंसा की जिसे देखकर समस्त भारत वासियों की आत्मा कांप गयी. और अंत में बंटवारे का मसौदा तैयार हो गया.

पाकिस्तान की माँग के लिये हुआ यह डायरेक्ट एक्शन कितना भीषण था इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि केवल तीन दिन में बंगाल और पंजाब की गलियाँ लाशों से पट गयीं थीं. लाखों घर तोड़ डाले गये थे लूट और महिलाओं से किये गये अत्याचार की गणना ही न हो सकी. यह डायरेक्ट एक्शन देशभर में अलग-अलग स्थानों पर अलग दिन चला तो कहीं एक दिन कहीं सप्ताह भर. कहीं-कहीं तो महीनों तनाव रहा. बंगाल के कंट्रोल रूम का नियंत्रण सीधा मुख्यमंत्री सोहरावर्दी के हाथ में था. वे वहीं बैठकर निर्देश दे रहे थे. अंत में 21 अगस्त को वायसराय ने बंगाल का प्रशासन अपने हाथ में लिया और सेना भेजी. तब 22 अगस्त से स्थिति नियंत्रण में आना आरंभ हुई. अलग पाकिस्तान की मांग पर अड़े मुस्लिम लीग और जिन्ना की पीठ पर अंग्रेजों का हाथ था. जिन्ना और उनकी टीम को हर काम करने और अभियान चलाने की मानो खुली छूट थी. इसका पूरा फायदा मुस्लिम लीग उठा रही थी. बंगाल की पुलिस के साथ मुस्लिम लीग के सशस्त्र नौजवान सक्रिय थे तो उत्तर प्रदेश, बिहार आदि अनेक स्थानों में लीग के सशस्त्र नौजवान खुले आम हिंसा कर रहे थे. ये नौजवान इशारा मिलते ही मैदान में आकर डट जाते थे.

इस डायरेक्टर एक्शन में बंगाल में ढाका, कलकत्ता, चटगाँव के अलावा पंजाब सिंध में रावलपिंडी, मुल्तान, लाहौर, पेशावर, कैम्पबेलपुर, झेलम आदि स्थानों पर भारी हिंसा हुई. इस हिंसा के संख्या के अलग अलग दावे हैं. पंजाब में यह संख्या चालीस हजार तक अनुमानित है तो और बंगाल में बाईस हजार. मुस्लिम लीग के प्रभाव वाले स्थानों से जगह जगह एक निश्चित समय पर सशस्त्र भीड़ निकली. जो दिखा उसे मार डाला गया. पंजाब में कहीं कहीं प्रतिरोध भी हुआ और दंगे शुरू हुये लेकिन बंगाल में कोई प्रतिरोध न हो सका. वहां हिंसा एकतरफा रही थी इसका कारण यह था कि बंगाल में सत्ता के सूत्र सोहरावर्दी के हाथ में थे. उन्होंने अवकाश घोषित कर दिया था. सरकारी तंत्र में मौजूद जिन्ना और पाकिस्तान समर्थकों को अवसर मिला. सरकारी सैनिक भी हथियार लेकर निकल पड़े, जो गैर दिखा उसे मार डाला गया, मौत का तांडव हो गया.

अकेले कलकत्ता, नौवाखाली और ढाका में सोलह से 18 अगस्त के बीच बीस हजार मौतों का अनुमान है. जबकि पंजाब और बंगाल में लगातार हुये इस कत्ले-आम के सारे आकड़े जोड़ें तो एक लाख तक होने का अनुमान है. दहशत इतनी ज्यादा कि लोग लाशें उठाने तक न आये. लाशे हफ्तों तक पड़ी सड़ती रहीं. उससे बीमारियाँ फैली, घायलों की जो बाद में मृत्यु हुई उन आँकड़ों का विवरण कहीं नहीं है. अधिकांश विवरण तो पाकिस्तान चला गया. जो बचा है वह कलकत्ता, उत्तर प्रदेश, हैदराबाद, बिहार आदि के हैं.

अंततः सालभर बाद भारत विभाजित हो गया. पाकिस्तान को पंजाब और बंगाल के आधे-आधे हिस्से दिये गये. पाकिस्तान समर्थक पूरा पंजाब और पूरा बंगाल चाहते थे. जब बातचीत से बात न बनी और इन दोनों प्रांतों का विभाजन निश्चित हुआ तब पाकिस्तान समर्थकों ने पुनः हिंसा शुरू कर दी. वे हिंसा के द्वारा अधिक से अधिक भूमि पर कब्जा करने की रणनीति उतर आये. वे पुनः मारकाट पर उतर आये. आजादी के समझौते के अनुरूप ब्रिटिश सेना 10 अगस्त से अपना कैंप खाली करने लगी थी. और 13 अगस्त तक लगभग ज्यादातर कैंप खाली हो गये थे. इसका एक कारण यह भी था कि 1857 की क्रान्ति में अंग्रेजी सैनिक निशाना बनाये गये थे. इसलिये अंग्रेजी हुकूमत को अपने सैनिकों को सुरक्षित स्थानों पर पहले भेजना था. इससे हिंसक तत्वों का हौसला बढ़ा और उन्होंने फिर मारकाट शुरू कर दी. नतीजा क्या हुआ कितने लोग मारे गये यह सब इतिहास के पन्नो में दर्ज है. पंजाब और बंगाल की गलियाँ एक बार फिर लाशों से पट गईं. ये खूनी गलियों में से ज्यादातर अब पाकिस्तान में हैं और कुछ बंगलादेश में.

निःसंदेह भारत विश्व शक्ति बनने की ओर अग्रसर हो रहा है पर इतिहास की घटनाओं से सावधान होकर आगे बढ़ने क आवश्यकता है. इतिहास की घटनाएँ समूचे भारत वासियों को जाग्रत और संगठित रहने का संदेश देतीं हैं. जो घट गया है उसे बदला नहीं जा सकता है. आज अतीत की घटनाओं से सबक लेकर भविष्य की राह बनाने का समय है. सुरक्षित भविष्य के लिये भारत वासियों को संगठित रहने का संकल्प लेना होगा और अपने बीच किसी भी भेद कराने वाली बातों से सतर्क रहना होगा. तभी अमृत महोत्सव सार्थक हो सकेगा.

रमेश शर्मा

हिन्दुस्थान समाचार

Tags: August 16Direct Action DayDirect Action Day in BengalGenocide of Hindus in BengalPartition Vibhishika
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