पूरी दुनिया से योग और अध्यात्म की ज्योति को प्रज्वलित करने वाले स्वामी विवेकानंद की हर 4 साल जुलाई को पुण्यतिथि मनाई जाती है. स्वामी विवेकानंद का पूरा जीवन हमेशा से ही सभी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत रहा है. उन्होंने भारतीय वेदांग के दर्शन को पश्चिमी देशों तक पहुंचाने में अतुलनीय योगदान दिया. 1893 में विश्व धर्म संसद में उनके दिए गए भाषण ने उस समय भारत में एक नई चेतना भरने का काम किया था.
स्वामी विवेकानंद का बचपन
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी सन् 1863 में ओडीसा के कटक शहर में हुआ था, उनके बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था. कम उम्र में ही पिता की मृत्यु के बाद भयंकर गरीबी की मार झेलनी पड़ी मगर इसने भी बालक नरेंद्र के मन को विचलित नहीं होने दिया. बचपन से ही उन्हें साहित्य, संगीत, दर्शन आदि में विशेष रुची थी साथ ही तैराकी और घुड़सवारी और कुश्ती का भी शौक था. आगे चलकर उन्होंने भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था. इसके साथ विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो की भली-भांति अपना काम कर रहे है.
स्वामी विवेकानंद की पढ़ाई
विलक्षण प्रतिभाओं के धनी स्वामी विवेकानंद का पढ़ाई में प्रदर्शन ठीक-ठाक था. हाईस्कूल पास करने के बाद उन्होंने कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया था. इसके साल भर बाद उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज में प्रवेश किया, जहां उन्होंने फिलॉस्फी पढ़ी. साल 1881 में विवेकानंद ने एमए परीक्षा पास की थी. उनके विचारों और भाषणों की आवाज न केवल देश बल्कि विदेशों में भी सुनाई दी. शिकागो में हुए सम्मेलन में जब उन्होंने अपने भाषण की शुरूआत में जब ‘मेरे प्यारे भाईयो और बहनों’ बोला तो पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा, उस समय सभी भारतीयों का सर गर्व से ऊंचा हो उठा.
युवावस्था में ले लिया संन्यास
स्वामी विवेकानंद ने हिंदुत्व और भारतीय दर्शन को दुनिया से परिचित करवाया. उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का उनके जीवन में खास असर रहा, हमेशा तर्कों से बात रखने वाले स्वामी विवेकानंद को अपने गुरु से काफी कुछ सीखने को मिला, इसके बाद वो रामकृष्ण मिशन से भी जुड़ गए. यही कारण था कि मात्र 25 साल की उम्र में ही नरेंद्रनाथ दत्त सबकुछ छोड़कर संन्यासी बन गए. स्वामी विवेकानंद ने 4 जुलाई 1902 को बेलूर मठ के एक शांत कमरे में महासमाधि ली. उस समय उनकी उम्र केवल और केवल 39 साल 05 महीने और 24 दिन ही थी.